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तुझे अँधेरे की सलाइयों से, जिंदगी का उजाला बुनना है,

जाग मेरी मासूम कली

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Positive India:Neelima Mishra:
जहाँ तक मुझे याद है ,मैं पाँचवी कक्षा मे थी तब पत्र लेखन में मैने पिता को पत्र लिखा था तो हमारे गुरुजी नृपेन गांगुली बहुत ख़ुश हुये थे और मेरी हिन्दी को बहुत उत्कृष्ट कहा था।इसके बाद क्रमश:ऊँची क्लास में मेरी हिन्दी की बहुत प्रशंसा होती रही।
शायद कॉलेज में मैने अपनी सहेली के जन्मदिन पर ग्रीटिंग कार्ड में पहली कविता लिखी।मुझे याद है वो ठंड की शुरुआत थी और मैं अपने लिये कार्डिगन बुन रही थी। ग्रीटिंग कार्ड में अंधेरे से बैकग्राऊँड में खिलती हुई गुलाब की कली बनी थी।
ऊन ,सलाई और अंधेरा तथा गुलाब की कली को लेकर मैने लिखा —-
जाग मेरी मासूम कली,
तुझे अँधेरे की सलाइयों से,
जिंदगी का उजाला बुनना है,
उठ तेरी नई सुबह का कहार ,
अपने काँधे पर ख़ुशियों की,
डोली लिये खड़ा है,
जिसमें बैठ तुझे
जीवन का लम्बा रास्ता ,
तय करना है।।

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इस कविता को हमारे कॉलेज में निकलनी वाली वार्षिक पत्रिका
“ऋचा”में एकदम उपेक्षित सा आख़िरी पन्ने के कोने में छपवाया गया।क्योंकि मैं बी.एस सी. अंतिम वर्ष की छात्रा थी और पत्रिका विभाग में आर्ट्स वालों का बोलबाला था।
मज़े की बात देखिये ।जब पत्रिका का विमोचन हुआ तब मैं पास अॉऊट हो चुकी थी।पत्रिका का विमोचन करने श्री ललित सुरजन आये थे और उन्होंने मेरी कविता की दो पंक्तियों से विमोचन किया।
तुझे अँधेरे की सलाइयों से ,
जिंदगी का उजाला बुनना है।

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उन्होंने कहा कि ये दो पंक्तियाँ मेरे ह्रदय को छू गईं।और उन्होंने अपने द्वारा संपादित पेपर “देशबंधु” में छापा भी।
बाद में इसी कविता को थोड़ा फेर बदल कर अपनी बेटी के शादी के कार्ड में भी छपवाया।
लेखिका:नीलिमा मिश्रा-रायपुर।

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