फ़िरोज़ गांधी सिर्फ सरोजनी नायडू की बेटी के अलावा लखनऊ की एक और औरत पर फ़िदा हुए
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के आपसी झगड़े जब बहुत बढ़ गए तो नेहरु ने फिरोज गांधी और इंदिरा को लखनऊ भेज दिया । लखनऊ में रहने के लिए फिरोज गांधी को नेशनल हेराल्ड का काम धाम थमा दिया । लखनऊ के शाहनज़फ़ रोड पर एक बंगले में फिरोज और इंदिरा गांधी रहने लगे थे। लेकिन झगड़े खत्म होने के बजे बढ़ने लगे । फिरोज इंदिरा गांधी को किक कर ज्यादा समय सरोजनी नायडू की बेटी के साथ राजभवन में बिताने लगे । सरोजनी नायडू उन दिनों उत्तर प्रदेश की राज्यपाल थीं । फिर फ़िरोज़ गांधी सिर्फ सरोजनी नायडू की बेटी के अलावा लखनऊ की एक और औरत पर फ़िदा हुए । वह औरत तब कविताएं लिखती थी । महत्वाकांक्षी बहुत थी । बाद के दिनों में राजनीति में भी आई । ताकतवर मंत्री रहीं ।
फिरोज गांधी के निधन के बाद भी इंदिरा गांधी उस औरत को हमेशा सिर पर बिठा कर रखती रहीं । कि वह कहीं कोई निजी बात न बोल दे । सो मुख्यमंत्री कोई हो , सरकार में ताकतवर मंत्री बन कर यह औरत हमेशा रही , जब तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही । मंत्री रहते एक से एक अजब-गज़ब फैसले लिए । जैसे एक बार जब छात्र संघ आंदोलन पूरे उत्तर प्रदेश में सरकार की सांसत का सबब बन गया तो बतौर शिक्षा मंत्री सभी वाईस चांसलर की मीटिंग बुला कर कह दिया कि सभी जगह सेशन अनियमित कर दिए जाएं । कहीं जुलाई में सेशन शुरू हो तो कहीं जनवरी में । सेशन अनियमित रहेंगे तो छात्र एकजुट नहीं हो पाएंगे और आंदोलन टूट जाएगा । यही हुआ भी । इस चक्कर में कई जगह सेशन दो-दो साल पीछे हो गए , रद्द हो गए । छात्रों का जो नुकसान हुआ सो हुआ , सरकार सांसत से बच गई । ऐसे और भी कई सारे फ़ैसले और घटनाएं हैं ।
एक बार एक दारोगा का ट्रांसफर रोकने के लिए वह एस एस पी , लखनऊ पर बहुत दबाव बनाती रहीं । एस एस पी ने हाथ खड़े कर दिए । कहा कि बात डी जी पी तक पहुंच गई है , उन्हीं से बात करें । डी जी पी से भी कहा । डी जी पी ने भी उस दारोगा का ट्रांसफर नही रोका तो एक दिन सारा प्रोटोकाल तोड़ कर वह डी जी पी के आफिस पहुंच गईं । डी जी पी पर बरसने लगीं । एक चतुर्वेदी जी तब डी जी पी थे । जब बहुत हो गया तो उन्हों ने कमरे में टंगी अपनी फ़ोटोदिखाते हुए कहा , मैडम यह फ़ोटो यहां टंग गई है , अब उतरेगी नहीं । बोर्ड पर डी जी पी की सूची में लिखा अपना नाम दिखाया और कहा कि अब यह मिटेगा नहीं । बाकी आप माननीय मिनिस्टर हैं , जो चाहें कर सकती हैं । लेकिन इस दारोगा का ट्रांसफर मेरी कलम से नहीं रद्द होने वाला । वह जैसे भड़भड़ाती हुई आई थीं , वैसे ही भड़भड़ाती हुई चलीं गईं । संयोग से तब मैं चतुर्वेदी जी के साथ ही बैठा था , एक ख़बर के सिलसिले में । मैं ने पूरा विवरण लिख दिया । खबर उछाल कर छपी अख़बार में ।
सुबह-सुबह चतुर्वेदी जी का फोन मेरे पास आया । वह बहुत नाराज थे । बोले , कम से कम यह ख़बर आप को नहीं लिखनी चाहिए थी । एक बार मुझ से पूछ तो लिया होता । दिन में जब आफिस पहुंचा था मंत्री जी का खंडन और फोन दोनों आ चुका था । मंत्री जी ने लिखा था , खबर पूरी तरह मनगढ़ंत है । मैं कभी डी जी आफिस नहीं गई थी । न ऐसे किसी दारोगा को वह जानती हैं । प्रोटोकाल के मुताबिक उन्हें डी जी पी आफिस जाना भी नहीं चाहिए था । मैं ने फोन कर चतुर्वेदी जी को बताया कि आप की मैडम का खंडन आ गया है जिस में उन्हों ने लिखा है कि वह आप के पास कभी गई ही नहीं । न ऐसे किसी दारोगा को जानती हैं । अमूमन संजीदा और गंभीर रहने वाले चतुर्वेदी जी हंसे और बोले , फिर आप भी भूल जाईए और कोई फालोअप न ही लिखें तो अच्छा रहेगा । इन मंत्री मैडम के ऐसे और भी बहुत किस्से हैं जो फिर कभी । वह घोड़े पर सर्वदा इस लिए सवार रहती थीं कि फ़िरोज़ गांधी की सूची में वह कभी रही थीं और कि इंदिरा गांधी उन्हें सिर पर बिठाए रखती थीं ।
एक बार एक सेक्सलाजिस्ट के खिलाफ मैं ने खबर लिखी । इन मंत्री जी ने उस खबर को रोकने की जी तोड़ कोशिश की । खबर रुक भी गई तब । मालिकान ही रोक दिए उस खबर को । लेकिन संपादक की दिलचस्पी के चलते कुछ दिन बाद वह खबर छप गई । मंत्री मैडम धड़धड़ाती हुई संपादक की केबिन में पहुंची । और जो-जो नहीं कहना चाहिए था , कहा । संपादक ने हंसते हुए पूछ लिया कि , मैडम इस डाक्टर से आप भी अपना इलाज करवाती हैं क्या ? वह बिलकुल चुप हो गईं और चुपचाप चली गईं ।
एक पुराने राजनीतिज्ञ कान में फुसफुसा कर बताते थे कि जब यह औरत फ़िरोज़ से मिलने जाती थी , तो जाने के पहले बाथटब में शराब भर कर कुछ देर उस में लेट जाती थी। अजब नुस्खा था यह भी । इंदिरा गांधी भी खाली नहीं रहीं । तब के उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ उन का समय गुजरने लगा था । शाहनज़फ़ रोड पर इन सब चीजों को ले कर इंदिरा और फ़िरोज़ के बीच झगड़े जब बहुत बढ़ गए , झगड़े का शोर सड़क तक सुनाई देने लगा तो नेहरु ने दोनों को लखनऊ से वापस दिल्ली बुला लिया ।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)