द केरला स्टोरी को फिल्मकारों ने फिल्म नहीं बनाया बल्कि एक पूरी इन्वेस्टिगेशन डॉक्यूमेंट्री बनाई है
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
फिल्में बनाना और फिल्में चलाना दो अलग-अलग चीजें हैं। द केरला स्टोरी(The Kerala St पर इंटरव्यू देते हुए सुदीप्तो सेन ने जब 32000 के आंकड़े वाले प्रश्न को जस्टिफाई करना शुरू किया, प्रोड्यूसर विपुल शाह ने बीच में ही रोक दिया। केरल के विधान परिषद में पूर्व सीएम द्वारा रखी गई रिपोर्ट से शुरू करते हुए, आंकड़ों के सपोर्ट में तमाम प्रमाण सुदीप्तो ने जुटाए हैं। विपुल शाह कहते हैं कि सारे प्रमाण जरूरत पड़ने पर दिए जाएंगे। संभवतः तब फिल्म का प्रतिरोध अपने पीक पर होगा। ऐसा लग रहा फिल्मकारों ने फिल्म नहीं बनाया बल्कि एक पूरी इन्वेस्टिगेशन डॉक्यूमेंट्री बनाई है। सुदीप्तो बताते हैं कि उन्हें 7 वर्ष तैयारी में लगा है। कितनी हैरानी की बात है कि फूहड़पना से लेकर नैरेटिव गढ़ने वाले तक तमाम फिल्में बनती हैं, लेकिन जब फिल्म के नाम पर समाज का एक दर्पण तैयार किया जाता है, तब तथ्यों के प्रमाण के नाम पर फिल्म को सुप्रीम कोर्ट तक घसीटा जाता है।
फिल्म मेकर्स ने इस बाबत एक आरटीआई भी केरला गवर्नमेंट में डाला था। सुदीप्तो बताते हैं कि आरटीआई के प्रश्न दो हिस्सों में थे। पहला, केरल विधान परिषद में पूर्व सीएम द्वारा रखी गई रिपोर्ट से संबंधित और दूसरा, केरल से कितनी लड़कियां गायब हुईं, उनमें से कितनी वापस आईं, से संबंधित। लेकिन दोनों ही प्रश्नों का केरल गवर्मेंट की ओर से कोई जवाब नहीं आया। लेकिन प्रतिवर्ष 2800-3000 लड़कियों के कैसेस से संबंधित डॉक्यूमेंट पूर्व सीएम ओमान चांडी ने विधान परिषद में रखे थे। इस हिसाब से 10 वर्ष का कैलकुलेशन फिल्म में प्रयोग किया गया है। सुदीप्तो सेन बताते हैं कि पूरा आंकड़ा 32000 से और भी कहीं ज्यादा है। जोकि 50,000 के करीब है। संवेदना को आंकड़ों से तोलने वाले क्रूर बुद्धिजीवियों में विवेक का यही स्तर होता है, कि तीन लड़कियों के साथ ऐसी घटनाएं हुई हैं, तो फिर इसमें 32000 के आंकड़े क्यों डाले गए?
द कश्मीर फाइल्स के विरोध के क्रम में पूरा वामपंथी धड़ा ऐसा लग रहा अच्छी खासी उर्जा हो चुका है। क्योंकि ये धड़ा अब तक 32000 आंकड़े वाले प्रश्न को भी इतना मजबूत नहीं कर पाया है कि फिल्मेकर्स को सप्रमाण जवाब देना पड़े। यहां तक कि विपुल शाह ने बताया है कि कायदे से ऐसा उनसे अभी तक किसी ने पूछा भी नहीं। हाँ, यूट्यूब से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक फिल्म के खिलाफ सामाजिक और विधिक, दोनों स्तर पर पूरी ताकत से विरोध की जा रही है। पूरी स्टोरी को ही नकारने की कोशिश है। लेकिन अच्छी बात है कि मुख्यधारा मीडिया के साथ सोशल मीडिया पर सामाजिक विमर्श में भी फिल्म विरोधियों का डटकर मुकाबला किया जा रहा और सुप्रीम कोर्ट से भी फिल्म रिलीज के रोक वाली याचिका का खारिज हो जाना, विधिक स्तर पर भी हमारी मजबूत उपस्थिति को दर्शाता है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)