“फना” फिल्म की कथानक एक कश्मीरी अलगाववादी को आम जनता में लेजिटिमेसी दिलाने पर केंद्रित थी
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
काजोल की फना फिल्म आई थी, 2006 में। फिल्म को लेकर मेरी समझ उस वक्त प्राथमिक शिक्षा स्तर की थी, कारण कि मैं प्राथमिक शिक्षा हाल ही में कंप्लीट किया था। मुझे क्या पता था फिल्म की कथानक एक कश्मीरी अलगाववादी को आम जनता में लेजिटिमेसी दिलाने पर केंद्रित है। पूरे फिल्म में अलगाववाद के कारण जगह-जगह होने वाली आतंकवादी घटनाओं को इनसरजेंशी अर्थात विद्रोह के रूप में स्थापित की गई। और आमिर खान को इनसरजेंट अर्थात विद्रोही के रूप में प्लॉट किया गया था।
अपने नजदीक के ही सिनेमा हॉल में मैं फिल्म देखने गया। आमिर खान का रोल उस फिल्म में पूरी तरह से रोमांटिसाइज्ड था। इतना कि हीरोइन काजोल के साथ उसकी इंटिमेसी तक हुई। एक अलगाववादी की भूमिका को इतना पॉजिटिव बना दिया गया कि दर्शकों को लगे अलगाववाद एक बहुत ही सूफियाना विमर्श है। आज डेढ़ दशक बाद ऐसी कोई फिल्म आ जाए तो देश की जनता फिल्मेकर्स की कुल काबिलियत निकाल देंगे। लेकिन उस वक्त पूरे भारत में सब कुछ अच्छा रहा, सिर्फ एक राज्य को छोड़कर, जहां फिल्म पर प्रतिबंध लग गया था। राज्य का नाम था गुजरात और नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे।
तब पूरी फिल्म देखने के बाद आज तक मुझे बस इतना ही याद है कि काजोल अंधी थी। मतलब जूनी नाम की एक दृष्टिहीन की भूमिका में थी। काजोल ने अपना रोल इतना बढ़िया से किया था कि आज भी जब किसी पैपराजी के कैमरे में काजोल को देखता हूँ, तो मुझे वह अंधी ही नजर आती है। काजोल का ऐसा दिखना मुझे आज तक लग रहा था यह मेरे छोटी सोच का नतीजा है। लेकिन काजोल के हालिया बयान से मुझे लगता है मैं सही साबित हुआ हूँ।
काजोल ने बयान दिया है कि इस देश में अशिक्षित नेताओं द्वारा शासन किया जा रहा है। जिसके पास कोई भी विजन नहीं है। ‘अंधी’ काजोल को इतना तक पता नहीं कि मोदी की जितने साल राजनीतिक आयु नहीं होगी, उतने साल के लिए उन्होंने देश का विजन तय कर दिया है। उन्होंने तय कर दिया है कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है । इसके लिए उन्होंने पूरा रोड मैप और उसको लागू करने के पूरे एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया है। भारत के इस मजबूत एजेंडे से बहुत से लोग इस देश में खुश नहीं हैं। सिर्फ एक काजोल ही ऐसी नहीं है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)