Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
कौन किससे लड़ रहा है, इससे जनता भी दिग्भ्रमित है । महाराष्ट्र मे उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण मे कुछ अलग ही नजारा था । सत्ता मे सहयोग पर दिल का पूर्ण रूप से न मिल पाने की कहानी, नेताओ की अनुपस्थिति बयां कर रही थी । उल्लेखनीय है कि न्यौता देने भी विशेष रूप से जाया गया था । शपथ ग्रहण समारोह मे भगवा झंडा के साये तले कही कही घड़ी व पंजे के भी झंडे लहरा रहे थे । अजीब संयोग है, सब एक दूसरे को मिलने का प्रमाण पत्र दे रहे थे । सत्ता जो न करा दे कम है ।
जिस विदेशी मूल के नाम से पार्टी बनी, उसी दल से विगत दशको से राजनीति कर रहा है, फिर विरोध किस बात का ? वहीं, संसद मे कांग्रेस साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के गांधीजी के उनके व्यक्तव्यय पर कोहराम मचाये हुए है । उस समय उस दल के साथ शपथ ग्रहण भी कर रहे है जिनके मुखपत्र मे गोडसे को देशभक्त कहा गया था । यह दोहरा मापदंड सिर्फ राजनीति मे ही संभव है । बात अहिंसा की, पर ये सिर्फ दूसरे के लिए । जब इंदिरा जी की हत्या के बाद खुलेआम सिक्खो का नरसंहार हो रहा था तब अहिंसा के इन दूतो मे से किसी एक की भी आवाज नही आई कि इसे रोका जाए। जब काश्मीर में हिन्दू पंडितो के साथ बर्बरता हो रही थी तब अहिंसा के इन पुजारीयो ने मौन साध रखा था ।
एक सियासत दान को साध्वी प्रज्ञा के व्यक्तव्यय पर भारी रोष है ये वही महानुभाव है जिनके छोटे भाई पंद्रह मिनट के लिए देश से पुलिस हटाने की बात कर रहे है मंशा साफ है कि पूरी तरह से साफ करने का निश्चय जहा दिखाई देता हो वो गांधीजी के सिद्धांत पर आंसू बहा रहे है। जैसे सुना पढ़ा कि गांधीजी ने गोडसे को माफ कर दिया था, फिर ये लोग किस बात पर हाय तौबा मचाये हुए है । अगर यह गांधीजी के सिद्धांत से पूर्ण रूप से अवगत है तो गोडसे की किताब “गांधी हत्या और मै” पर बंदिश लगानी ही नही थी ।
ये वो देश है जहा आतंकवादी अजमल कसाब को भी फांसी के विरोध मे सर्वोच्च न्यायालय तक जाने की छूट थी । वही याकूब मेमन के लिए ये अहिंसा के पुजारी रात को दो बजे सर्वोच्च न्यायालय को खुलवा कर ही दम लिये थे । जबकी उस घटना मे एक सौ सत्तर निर्दोष लोगो की जान गई थी । जब मेमन को माफ किया जा सकता है । मुखपत्र मे गोडसे को देशभक्त कहा जा सकता है वहा उनके साथ गले मिलने का काम किया जा सकता है तो फिर किस नैतिकता से साध्वी का विरोध किया जा रहा है ?
कुल मिलाकर राजनीति साधी जा रही है, बस फायदा हो, उठा लो, सिद्धांत जाये तेल लेने । राजनीति का यह कटु सत्य है कि किसी भी दल को गांधीजी से दूर दूर तक लेना देना नही है। इसे इन्होंने वोट का सामान बना कर रखा हुआ है, अन्यथा राजनीति मे इतना भ्रष्टाचार, चरित्र हीनता दिखाई ही नही देती । पूरी राजनीति परिवारवाद पर चल रही है । पहले के राजा चले गये, अब नये लोकतांत्रिक नरेशो ने जगह ले ली है । कौन सा दल है जो गांधीवाद को सिर्फ पांच प्रतिशत भी अनुसरण करता है? एक भी नही है । अन्यथा ये देश तू कहां से कहां पहुंच जाता । यह है आज की राजनीति का कटु सत्य ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)