इस सच्चाई को पढ़कर आपकीं आंखें खुल जाएंगी
क्या महर्षि चरक और महर्षि सुश्रुत से भी बड़ा ज्ञानी है रामदेव.?
Positive India:Satish Chandra Mishra:
इस सच्चाई को पढ़कर आपकीं आंखें खुल जाएंगी…
यह घटना भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की इतिहास पुस्तिका के स्वर्णिम पृष्ठों में से एक है और लगभग 90 साल पुरानी है। उस समय आज़ादी की जंग चल रही थी। भगतसिंह और उनके साथी जेल में बंद थे। स्वयं को राजनीतिक बंदी का दर्जा दिए जाने की उनकी लड़ाई तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के साथ चल रही थी। उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो भगतसिंह समेत उनके साथियों ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया था। कुछ साथियों की हालत बिगड़ी तो जेल प्रशासन ने उन्हें अस्पताल भेजना चाहा। लेकिन भगतसिंह के साथी अस्पताल नहीं गए। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अपने उस आमरण अनशन युद्ध के 63वें दिन 13 सितंबर 1929 को केवल 24 वर्ष की आयु में महान बलिदानी क्रांतिकारी जतिन्द्र नाथ दास (जतिन दास) देश के लिए बलिदान हो गए थे। लाहौर से कलकत्ता लाए गए जतिन दास के पार्थिव शरीर की शवयात्रा में पूरा कलकत्ता उमड़ पड़ा था। उनकी उस अंतिम यात्रा में शामिल हुए लोगों की भीड़ कई किलोमीटर लम्बी हो गयी थी। उनकी चिता की भस्म माथे से लगाने की होड़ इतनी प्रचंड थी कि उस स्थान पर लोगों के अंगूठों की रगड़ से गड्ढा हो गया था, जहां जतिनदास की चिता जलायी गयी थी। आप अनुमान लगा सकते हैं कि उन्हें अंतिम विदा देने के लिए कैसा जनसैलाब उमड़ा था।
जतिन दास की मृत्यु के पश्चात भगतसिंह ने अपने अन्य साथियों की गम्भीर स्थिति को देखते हुए उन्हें अनशन से रोक दिया था। लेकिन स्वयं उस जंग को जारी रखा था। भगतसिंह की सलाह को अनदेखा कर बटुकेश्वर दत्त उनके साथ आमरण अनशन पर डटे रहे थे। उस दौरान हथकड़ियों में जकड़े भगतसिंह को स्ट्रेचर पर अदालत लाया जाता था।जतिन दास की मृत्यु के समाचार तथा जेल में जारी भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त के अनशन की खबरों से देश उद्वेलित हो उठा था और कई स्थानों पर प्रदर्शन होने लगे थे। अतः 116 दिन बाद ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा था भगतसिंह की मांगे मान कर उनका अनशन खत्म कराया गया था।
आज अपनी इस पोस्ट की शुरुआत उपरोक्त घटना के साथ इसलिए की है ताकि आगे जो लिखने जा रहा हूं उसे समझने में आप मित्रों को आसानी हो।
पहली बात तो यह जान समझ लीजिए कि भगतसिंह और उनके उन साथियों का किसी प्रकार का कोई लेनादेना किसी योगविद्या या ऐसी किसी अन्य विद्या से नहीं था, जिसके कारण वो इतना लंबा आमरण अनशन कर पाए।
दूसरी बात यह भी ध्यान रखिए कि आज से ठीक 10 वर्ष पूर्व 2011 में इसी जून के महीने में खुद को देश का सबसे बड़ा योगाचार्य कहने वाले व्यक्ति ने आमरण अनशन किया था और सातवें दिन ही उसकी आंखें पलटने लगीं थीं। सांसे उखड़ने लगीं थीं। ब्लडप्रेशर 40 से 80 के बीच पहुंच गया था। हालत इतनी बिगड़ गयी थी कि आनन फानन में एम्बुलेंस में लाद कर उस योगचार्य को एक ऐलोपैथिक अस्पताल में पहुंचाया गया था जहां ऐलोपैथिक डॉक्टरों ने उस योगचार्य की जान बचायी थी। (पुष्टि के लिए देखें पहला कमेंट) उस योगचार्य का नाम था रामदेव। उल्लेख कर दूं कि रामदेव की तबियत अपने उसी आवास पर बिगड़ी थी जहां उसका तथाकथित आयुर्वेदिक अस्पताल भी है। लेकिन अपनी खुद की तबियत बिगड़ने पर उसने उस अस्पताल में अपना इलाज कराने के बजाए ऐलोपैथिक अस्पताल जाने में ही भलाई समझी थी। ध्यान यह भी रहे कि 2019 में अपनी जान बचाने के लिए AIIMS के ऐलोपैथिक डॉक्टरों की शरण में पहुंचे रामदेव के चेले बालकिशन नेपाली की तरह रामदेव की तबियत अचानक नहीं बिगड़ी थी। जिस अनशन के कारण उसकी तबियत बिगड़ी थी वो 7 दिनोँ से चल रहा था। अतः अपने इलाज की व्यवस्था कर लेने का पूरा समय रामदेव के पास था।
आज यह घटनाक्रम इसलिए याद दिलाया क्योंकि लगातार बेलगाम हो रहे रामदेव ने अब भारतीय विरासतों पर भी हमला करना शुरू कर दिया है। उसने ज्योतिष विज्ञान पर जिस तरह हमला किया वैसा हमला तो कांग्रेस कम्युनिस्ट और मुसलमानों ने भी नहीं किया। उसके द्वारा ज्योतिष पर किए गए इस हमले ने यह भी सिद्ध कर दिया कि रामदेव का आयुर्वेद ज्ञान शून्य है। आयुर्वेद के मामले में वो शत प्रतिशत अनपढ़ है।
प्राचीन ग्रंथ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता आदि में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि जो भी चिकित्सक आयुर्वेद पद्धति से उपचार करता है, उसे ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिये । रोगी के उपचार करने के लिये प्रकृति से वनस्पत्ती लेने, वनस्पत्ती से औषधि निर्माण करने, और रोगी को औषधि देने के लिए मुहूर्त और ग्रह नक्षत्रों की स्थितियां देखना चाहिये। यही कारण है उस समय के आयुर्वेदाचार्य आयुर्वेद में पारंगत होने के साथ-साथ ज्योतिष के भी अच्छे जानकार होते थें ।
अतः स्वयं सोचिए कि… क्या महर्षि चरक और महर्षि सुश्रुत से भी बड़ा ज्ञानी है रामदेव.?
दरअसल उपरोक्त सभी घटनाक्रम डंके की चोट पर यह गवाही दे रहे हैं कि अपनी आयुर्वेदिक टिकिया पुड़िया बेचने के लोभ लालच में लोगों को ऐलोपैथिक के खिलाफ भड़काने की लम्पटई कर के रामदेव उनके जीवन को ख़तरे में डालने से बाज नहीं आ रहा है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा(ये लेखक के अपने विचार)