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अति राजनीतिक चर्चा हिन्दू जागरण नहीं है

-कुमार एस की कलम से-

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Positive India:Kumar S:
#अति_राजनीतिकचर्चा को यदि हिन्दू जागरण समझ लिया है तो इस भूल को सुधार लें।
सोशल मीडिया के अभ्युदय के बाद राजनीतिक जागरूकता और जानकारी बढ़ी।
लोग हरेक घटना पर अपना मन्तव्य देने लगे।
यहीं से राजनीति समझने और उस पर टिप्पणी करने की प्रवृत्ति बढ़ी।
फिर तो ऐसा हुआ कि लोग घण्टों तक बैठकर cm, pm, मंत्री बनाने की बातें करने लगे।

अब भारतीय राजनीति का तो ऐसा है कि वह लगभग हिन्दू विरोधी ही रही है तो वह सब आना ही था। हिंदुत्व विषयक राजनीतिक चर्चा को लोगों ने हिंदुत्व की सेवा समझ लिया।
ज्ञानम भारम् क्रियाम विना।
यह जन जन तक फैल गया।
परिणाम यह हुआ कि हिन्दू-विरोधी और हिन्दू-केंद्रित राजनीति वाली बहस को हमने हिन्दू जागरण जैसा समझ लिया।

प्रत्येक धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक घटना को भी राजनीति से जोड़कर देखने का चलन बढ़ा है और उस पर चर्चा करके हमें लगता है हमने हिंदुत्व की सेवा कर दी।
फोटोकॉपी वाले, किराने के गल्ला संभालने वाले, हड्डी के डॉक्टर, बाइक पर मौजमजा लूटने वाले, प्रतियोगी परीक्षा में असफल, इतिहास की टोटम व्याख्या वाले, विज्ञान की किताब बेचने वाले और महिलाओं को दाम्पत्य पर सलाह देने वाले भी #हिंदुत्व_सेवक बन गए।
आरम्भ में व्याख्याकार बने, फिर सीधे केंद्र सरकार के सलाहकार बन गए और वहां से कई तो संघ के नेतृत्व परिवर्तन तक पहुंच गए। बैलगाड़ी की छांव में चलने वाले श्वान की भांति कइयों को गलतफहमी हो गई कि जो कर रहे हैं हम ही कर रहे हैं।
जब पूर्तियाँ नहीं हुई तो भयंकर फ्रस्ट्रेट हो गए।

देखिए भई!
हिंदुत्व जागरण आदिकाल से हो रहा है।
सफल वही हुआ जो गैर राजनीतिक था। जो समन्वयवादी और सृजनशील था। जो तपस्वी था।
इनके अतिरिक्त हिन्दू समाज अपने बाप की भी नहीं सुनता।
आपकी आवाज के पीछे तप कितना है, यही आपके प्रभाव की कसौटी है।
किसी उपदेशक की भांति पहले ज्ञान देना, फिर सलाह देना और बाद में विद्रोही बनकर नेतृत्व को गालियां देना हिन्दू जागरण नहीं है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव बड़े नेताओं, लच्छेदार भाषणों या प्रभावशाली पदों के रहते नहीं बढ़ा है।
वह कार्य 100 वर्ष की सतत साधना का परिणाम है।
बहुत साधारण लोगों ने यह कार्य किया है।
जो न अधिक ज्ञानी थे न अधीर अज्ञानी।
उनमें जो कुछ है वह ठोस है। क्रियात्मक है। उनका अज्ञान अथवा कम जानकारी भी पूजनीय है क्योंकि वे लगे रहते हैं। अपने तरीके से कार्य करते हैं। समय देते हैं। सम्पर्क करते हैं। घर से निकलते हैं। व्यक्तिगत कार्यो को बिगाड़कर भी सौंपे गए लक्ष्य के लिए भागते फिरते हैं।
समाज ने भी इनकी पर्याप्त फिरकी ली। ठोक बजाकर आजमाया। कड़वे फल खिलाये।

एक बार एक प्रचारक मोटरसाइकिल से किसी गांव में गये तो वहां लोग मिलकर छत की पट्टियां चढ़ा रहे थे। उन्होंने प्रचारक को कहा “पहले आओ हमारे साथ इन पत्थरों को कंधा दो, आदमी कम पड़ रहा है, फिर तुम्हारी हिन्दू वाली बात सुनते हैं।”
प्रचारक ने दिन भर गांव वालों के साथ काम किया तब जाकर शाम को उसकी बात किसी ने सुनी।
1980 से 2010 तक के संघ कार्यकर्ताओं के पास ऐसे अनुभवों की पूरी किताब है।
यह सब अचानक नहीं हुआ।

हो सकता है विस्तार के बाद, 2014 के पश्चात #गुड़_पर_बैठी_मक्खियों की तरह कुछ लोग चिपक गये हों लेकिन मूल आकर्षण अब भी गुड़ है।
संघ के आयाम आज शताधिक मार्गों से समाज परिवर्तन में लगे हैं।
वही वास्तविक हिन्दू जागरण है।

साभार:कुमार एस-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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