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क्या इवीएम ही विपक्ष के डूबते के तिनके का सहारा है?

इवीएम पर ही ठीकरा फोड़ने का काम भी चालू हो गया है।

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
कल मतगणना है और हार जीत कल तय होगी । पर एग्जिट पोल के उपर ही हाय तौबा मच गयी है । जहा एक ओर विधवा विलाप चालू हो गया है वही इवीएम पर ही ठीकरा फोड़ने का काम भी चालू हो गया है । इन्हे अपनी हार जहां बर्दाश्त नही हो रही वहीं हार स्वीकार करने का नैतिक साहस भी नही है । यही कारण है इवीएम ही इनके डूबते के तिनके का सहारा है । इवीएम के नाम से ये चुनाव आयोग गये वहाँ पर भी इनकी अवैधानिक मांगो को अस्वीकार कर दिया गया है । वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी याचिका को ही खारिज कर दिया है । अब इनके पास संवैधानिक विकल्प खत्म हो गये है । फिर एक ही तरीका बचा है कि इवीएम पर इतना हल्ला करो की जनता में इसके प्रति अविश्वास पैदा हो जाये । ये कुल मिलाकर अराजकता की स्थिति बनाना चाहते है । पर इनके मंसूबे कामयाब नही होंगे । चलो विपक्ष की बात पर ही सौ प्रतिशत विश्वास कर लिया जाए । मान लिया जाए कि इवीएम से धांधली संभव है । इवीएम के नतीजो पर विश्वास करना देश व लोकतंत्र के साथ धोखा है । इसलिए अभी तक इवीएम पर जितने चुनाव हुए है उन्हे भी खारिज कर देना चाहिए । कल मतगणना के पहले विपक्ष अगर देश को विश्वास मे लेना चाहता है तो उसे उस चुनाव को भी अमान्य कर देना चाहिए जो इवीएम के माध्यम से ये लोग सत्ता मे काबिज हुए है । ऐसे मे दिल्ली, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना आदि राज्यो को कल के मतगणना के पहले इस्तीफा देकर जनमानस को और देश को विश्वास मे लेना चाहिए । ऐसा नही की हम चुने जाये तो ठीक और मोदी जी आये तो इवीएम गलत ? मतगणना को समय है अगर सही में इवीएम के लिए चुनौती देना है तो स्वंय को भी अग्नि परीक्षा देनी होगी । ऐसा नही की मीठा मीठा गपगप, कड़वा कड़वा थू थू का सिद्धांत नही चलेगा। इवीएम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करने के लिए, विश्वास मे लाने के लिये अब तो इन्हे भी आहूति देनी होगी । देश की जनता इतनी भी मूर्ख नही की कोई भी डमरू बजाये उसके साथ हो चले । लोगो ने सोच समझकर मतदान किया है इसे स्वीकार करना होगा । अगर कल कही एग्जिट पोल गलत साबित होते है तो ये लोग मिली हुई सत्ता को इसलिए अस्वीकार कर देंगे की चुनाव इवीएम से हुआ है । पर जो भी करना है इन्हे आज ही करना है । जिससे विपक्ष पर विश्वास बैठ सके।

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लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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