नहीं सामाजिक समता की बात तो महात्मा बुद्ध भी करते थे , कार्ल मार्क्स भी
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India: Dayanand Pandey:
आरक्षण की खीर खाने के लिए कुतर्क करते रहिए। मौज करते रहिए। नो प्रॉब्लम। लेकिन आरक्षण की बैसाखी ले कर आप सरकारी नौकरी पा सकते हैं। सुविधाएं भी। पर सम्मान कभी नहीं। आरक्षण के बूते कभी बड़ा वैज्ञानिक , बड़ा डाक्टर , बड़ा फिलासफर , बड़ा खिलाड़ी , बड़ा अभिनेता , बड़ा लेखक , बड़ा पत्रकार और बड़ा नेता नहीं बन सकते। जातियों का रखवाला बन कर अपनी जाति को पीछे धकलने वालों की लंबी फ़ौज है। लेकिन जाति छोड़ कर आगे बढ़ने वाले कम लोग दीखते हैं।
ए पी जे अब्दुल कलाम को लीजिए। अगर इस्लाम की चौहद्दी में रह कर तेली के बैल बने रहते तो इतना बड़ा वैज्ञानिक नहीं बनते। इतना सम्मान नहीं पाते। रही राष्ट्रपति की बात तो खैर कई सारे बड़े लोग भी बने हैं और कई गधे भी। सामाजिक न्याय की बात कर आप अपने को धोखा दे सकते हैं , लालू , मुलायम , मायावती जैसे नेताओं का हथियार बन सकते हैं लेकिन रहेंगे जातिवादी ही। नहीं सामाजिक समता की बात तो महात्मा बुद्ध भी करते थे। पर सत्य और अहिंसा के रास्ते। भ्रष्टाचार , जाति और आरक्षण के रास्ते नहीं।
बुद्ध तो क्षत्रिय थे , राजकुमार थे पर सामाजिक समता के लिए राजपाट छोड़ कर आए थे। एक कार्ल मार्क्स भी हुए हैं जो सामाजिक समता की बात करते थे। लेकिन हिंसा और तानाशाही के रास्ते। इसी लिए असफल हो गए। दुनिया भर में बदनाम हो गए। इन दिनों भारत में आरक्षण बहादुर लोग भी सामाजिक न्याय की बात बहुत जोर-जोर से करते हैं।
जातियों में आबादी का अनुपात की बहुलता दिखाते हुए। कुल कसरत आरक्षण की खीर खाने की होती है। सामाजिक न्याय की नहीं। मनुवाद , ब्राह्मणवाद का खौफ दिखाते-दिखाते आरक्षण की बैसाखी थामे यह लोग इस बैसाखी को सदा सर्वदा के लिए अपनी जागीर मान चुके हैं। इतना कि बदबू मारने लगे हैं। सामाजिक समता जैसे सर्वोत्तम लक्ष्य को गाली बना बैठे हैं। बस एक आरक्षण की खीर खाने खातिर। सामाजिक न्याय के अलंबरदार यह जातिवादी लोग , सामाजिक न्याय के सब से बड़े दुश्मन हैं। यह लोग जाति हटाने की बात भी लोगों की आंख में धूल झोंकने के लिए ढोल , नगाड़े के साथ निरंतर करते रहते हैं। पूरी धूर्तई के साथ।
मैं कहना चाहता हूं कि पहले अपने दिमाग से जहर निकालिए। आरक्षण की बैसाखी से छुट्टी लीजिए। जाति स्वत : समाप्त है। जाति है कहां ? आज कौन सी व्यवस्था है जो जाति या मनुवाद से चलती है ? हां , इस का डर दिखा कर , हिंसा का भय दिखा कर आरक्षण की व्यवस्था ज़रूर चलती है। चलिए चला लीजिए। जिन जातियों को आरक्षण मिल रहा हैं , उन्हीं को आर्थिक आधार पर लेने दीजिए। पर नहीं इस में भी मनुवाद का डर दिखा कर आरक्षण की बैसाखी पूरी ताक़त से पकड़ कर खूब जोर-जोर से सामाजिक न्याय , सामजिक न्याय की बात करने लगते हैं। अब बंद भी कीजिए सामाजिक न्याय के नाम की यह नौटंकी। अपने ही भाइयों का हक़ बहुत छीन चुके। बहुत नुकसान कर चुके देश और समाज का। महेश अश्क याद आते हैं :
हम चाहते रहे कि कोई ढंग की बात हो
वह पूछते रहे कि कहो कौन ज़ात हो।
होने को घर-घराने के बहुतेरे हैं खिलाफ़
पर यह भी चाहते हैं यही ज़ात-पात हो।
यह क्या कि हाथ खींच क बैठे हैं यार लोग
कुछ चोट-वोट चलती रहे, घात-वात हो।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)