इलेक्टोरल बांड: चुनावी भ्रष्टाचार इस देश में कोई मुद्दा ही नहीं रहा
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
चुनावी भ्रष्टाचार इस देश में कोई मुद्दा ही नहीं रहा । हमारे नौसेना से सेवानिवृत्त मित्र ने ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ने के लिए निश्चय किया और इस सम्बन्ध में मुझसे परामर्श चाहा । मैंने कहा ज़रूर लड़िये दो दिन में ही औक़ात पता चल जायेगी । पर्चा दाखिल करने के तीसरे दिन ही उन्हें नाम वापस लेना पड़ा । कार्यकर्ताओं की बोतल मुर्ग़ा की डिमांड से ही वह दहल गये ।
वोटर(Voter) को आपके भ्रष्ट होने से कोई सरोकार नहीं है उसे अपना हिस्सा चाहिए । मुफ़्त की रेवड़ी मिलती रहे तो आपके भ्रष्ट होने से उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । सिपाही को लड़ने के लिए उच्च गुणवत्ता वाला गोला बारूद चाहिए बढ़िया बुलेट प्रूफ़ पोशाक चाहिए और पोषक आहार चाहिए बाक़ी आप कितनी दलाली खाते हैं इससे उसे कोई सरोकार नहीं है । सब जानते हैं कि दलाली के बिना इस मुल्क में कोई भी न घर ख़रीद सकता है और न बेच सकता है और तो और घर किराए पर लेने देने के लिए भी दलाली देनी ही पड़ेगी । तो भला तोप बिना दलाली के कैसे मिल जायेगी ?
चुनावी बांड(Electoral Bond) तो इंदिरा विकास पत्र की तर्ज़ पर जारी ही किये गये थे । काग़ज़ के नोट की तरह इन्हें कोई भी किसी को दे सकता था, किसी लिखा पढ़ी की ज़रूरत नहीं होती है । बस पंद्रह दिन में पार्टी को भुनाना होता था । पार्टी तो जानती ही थी कि किसने यह चंदा दिया है सारी गोपनीयता बस जनता से ही छुपाने की थी । नोटबंदी के बाद नक़द लेन देन बहुत मुश्किल हो गया तो यह तरकीब निकाली गई । इस हमाम में सभी नंगे है ।
लोग बस क़यास लगा सकते हैं अपनी अपनी कल्पना की उड़ान से पर नतीजा कुछ नहीं निकलना है । ईडी की छापेमारी से भी चंदावसूली का कोई सीधा संबंध नहीं है । सत्ताधारी पार्टी दूसरे को चंदा देने वाले के घर भी छापेमारी कर सकती है । १३६८ करोड़ के चुनावी बांड के ख़रीदार फ्यूचर गेमिंग वाले सैंटियागो मार्टिन का संबंध तो तमिलनाडु से है जहाँ अखिल भारतीय दल आज भी जगह नहीं बना पाए हैं सारा संघर्ष द्रमुक और अन्ना द्रमुक के बीच रहता है ।
कुल मिलाकर चुनावी बांड में इतने पेंच हैं कि लोकसभा चुनाव तो क़यास आराई में ही बीत जायेंगे । जिन्हें जीतना होगा वे जीत भी जायेंगे । अगले चुनाव में चुनावी बांड को लेकर कोई और विकल्प सोचा जायेगा ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)