Positive India: Sushobhit:
यह चिड़िया कैसे मरी थी? साल १९७४ की बात है। गुजरात में नवनिर्माण आन्दोलन चल रहा था। अहमदाबाद में आन्दोलन उग्र हो उठा, पुलिस को गोलीबारी करने पर मजबूर होना पड़ा। एक आवारा और बेपरवाह गोली एक मासूम चिड़िया को जा लगी। उसका काग़ज़ सरीखा हलका शरीर किसी टूटे पत्ते की तरह धरती पर जा गिरा!
कुछ भलेमानुष बाद में वहाँ से गुज़रे तो उन्होंने चिड़िया के उस शव को पाया। उनके भीतर रौशनी की तरह, इलहाम की तरह यह गूँजा कि प्रकृति की यह सुन्दर सन्तान पूर्णतया निर्दोष थी, उसका कोई भी दोष नहीं था, तब भी उसे मनुष्यों के बीच चल रहे फ़साद का शिकार होना पड़ा। आत्मग्लानि ने उन्हें बेध दिया। उन्होंने उस मृत चिड़िया का एक स्मारक बनवाने का निर्णय लिया। वह स्मारक आज भी अहमदाबाद के अस्टोडिया में पक्षियों के दाना चुगने के लिए बनाए गए अढ़ाई सौ चबूतरों के साथ मौजूद है।
चिड़िया का स्मारक! स्मारक तो साधारण मनुष्यों का भी नहीं बनता, केवल विशिष्टजनों की मृत्यु के बाद ही उनके लिए शिलालेख बनाए जाते हैं। तब उन नेक लोगों ने चिड़िया का स्मारक बनाकर यह संदेश दिया कि हर चिड़िया विशिष्ट है! चिड़िया ही नहीं, हर प्राणी, हर जीव, हर चेतना विशिष्ट है। सभी के जीवन और जीवन की अस्मिता का समान महत्त्व और मूल्य है! प्रकृति के लिए अपनी कोई सन्तान हीन नहीं होती!
चिड़िया का वह स्मारक हमें हमेशा बताता रहेगा कि अभी, इसी क्षण इस पृथ्वी को स्वर्ग बनाया जा सकता है, बशर्ते हम में औरों के जीवन और चेतना के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान हो, और उन औरों में मनुष्यों के साथ ही पशु-पक्षी-प्राणी भी शामिल हों। जब तक ऐसा न होगा, मनुष्यता का महास्वप्न अधूरा ही रहेगा!
इस विशिष्ट स्मारक का चित्र जीवदया पर एकाग्र मेरी सद्य-प्रकाशित पुस्तक “मैं वीगन क्यों हूं” में एक शुभंकर की तरह आरंभिक पृष्ठों पर प्रस्तुत किया गया है!
Writer:Sushobhit-(The views expressed solely belong to the writer)