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ई-लर्निंग : भारत का डिजिटल भविष्य

Post COVID-19, E-Learning is the future of India.

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Positive India:विनीत दूबे,1 मई 2020:
“ई-लर्निंग : भारत का डिजिटल भविष्य”
परिवर्तन प्रकृति का नियम है । बड़े-बड़े विद्वानों, महापुरुषों का मानना है कि हर एक-दो अरसे में प्रकृति अपने पुरातन कलेवर को बदल कर एक नया रूप ले लेती है । कभी यह परिवर्तन सुखद होता है और कभी दुखद , लेकिन यह अपनी परिधि में एक वृहत्तर समाज को समेटे रहता है।

आज समूचे विश्व में यह चर्चा का विषय है कि कोविड-19(COVID-19) के बाद की दुनिया कैसी होगी ? मानव सभ्यता को चुनौती देने वाली इस वैश्विक महामारी से उबरने के बाद हमारी सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों में, पारिवारिक और मानवीय मूल्यों में, पर्यावरण और वातावरण में कौन-कौन से आमूलचूल परिवर्तन होंगे । यह सच है कि परिवर्तन हमेशा सुखद नहीं होते, लेकिन यह भी सत्य है कि वे कोई ना कोई सुखद परिणाम अवश्य दे कर जाते हैं । कोरोना नाम का यह अदृश्य वायरस भी वैश्विक परिवर्तन के रूप में हमारे सामने आया है , जिसके लिए दुनियाँ का हर इंसान शारीरिक और मानसिक रूप से अपने आप को तैयार कर रहा है । यह मनुष्य के सीखने का दौर है । हम भविष्य के संभावित बदलावों को देखकर उनके अनुसार अपने मन और मस्तिष्क को तैयार कर रहे हैं ;फिर चाहे लक्ष्य-प्राप्ति का उद्देश्य हो या दैनिक जीवन की जरूरत, कारण जो भी हो । हम भविष्य की चुनौतियों को समझते हुए वर्तमान में उसकी रूपरेखा तैयार कर रहे हैं ।

सूचना एवं प्रौद्योगिकी का विस्फोट हुए दो दशक से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन प्रदेश में जो ऑनलाइन शिक्षा रेंग रही थी ; कोरोना संक्रमण ने उसे एकाएक गति दे दी है । जिन सरकारी शिक्षण-संस्थानों में शिक्षक और शिक्षार्थी अभी तक डिजिटल लर्निंग से जी चुराते थे, वही अब परिषदीय स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक की परंपरागत शिक्षा पद्धति को ई-लर्निंग(E-Learning) में बदल में लगे है ।

यह संभव है कि हम कोरोना(Corona) के वर्तमान स्वरूप पर नियंत्रण पा लें, लेकिन उसके अस्तित्व को मिटाने में समय लग सकता है । ऐसे में ई-लर्निंग, ई-क्लासेस एक बेहतर विकल्प के रूप में हमारे सामने हैं । शिक्षा का डिजिटल प्लेटफॉर्म निश्चित ही शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाएगा ।

‘वर्क फ्रॉम होम'(Work from home) की विचार पद्धति से बड़े-बड़े संस्थान, कंसल्टेंसी फर्म, सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र इस कठिन दौर में भी अपनी उत्पादकता बनाए रखने में समर्थ हैं । कार्य करने की यह नवाचारी संस्कृति मजबूरी का उपकरण बन गई है । सामाजिक कार्यक्रमों, बैठकों, गोष्ठियों आदि के लिए भी डिजिटल प्लेटफार्म का सहारा लिया जा रहा है । वर्तमान में सहूलियत के लिए प्रयोग की जाने वाली यह पतली पगडंडी भविष्य में बैठकों और संगोष्ठियों का नया राजमार्ग खोलेगी ।

कोरोना वायरस(Coronavirus) केवल एक बीमारी के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रश्न के रूप में हमारे सामने खड़ी है कि विश्वगुरु बनने की चाहत रखने वाले देश का विकास मॉडल क्या और कैसा होना चाहिए । आज स्वास्थ्य सुविधाओं से संपन्न देश जहां इस वायरस के सामने घुटने टेक चुके हैं , वहां भारत इससे जूझने और जीतने में लगा हुआ है । हमारे लिए यह आत्मगौरव का विषय हो सकता है कि सीमित स्वास्थ्य-सुविधाओं के बावजूद हमने इस वायरस को अभी तक नियंत्रित दशा में रखा है ।

भारत के लिए यह एक अवसर है , जब यह अपनी सनातनी आरोग्य प्रणाली का चमत्कार दिखाकर पूरी दुनिया के सामने एक ‘आदर्श स्वास्थ्य मॉडल’ रख सकता है । तथाकथित विकसित देशों की स्वास्थ्य सुविधा ‘इलाज केंद्रित’ है यानी वे बीमार पड़ने पर इलाज मुहैया कराते हैं, लेकिन भारतीय आरोग्य प्रणाली कम बीमार होने पर जोर देती है, यानी भारतीय आयुर्वेदिक स्वास्थ्य प्रणाली व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की बात करती है, जिससे भविष्य में एेसे संक्रमणों से बचा जा सके।

अत: देश को एेसे उपायों पर चिंतन करने की आवश्यकता है, जिनसे नई और विकसित चिकित्सकीय पद्धति की खोज की जा सके । इस वैश्विक महामारी से उपजे अनुभव हमारे रहन-सहन ,पर्यावरण, शारीरिक-मानसिक शुद्धता तथा स्वच्छता के प्रति दृष्टि को स्थायी रूप से प्रभावित करेंगे । वर्तमान में हम जिस प्रकार का जीवन जी रहे हैं, वह हमारी कल्पना से परे है, लेकिन भविष्य के अनुभवों की सीख हमें इसी दौर में मिल रही है और ई-लर्निंग भारत का भविष्य है।

लेखक:विनीत दूबे- एडवोकेट, इलाहाबाद हाईकोर्ट।

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