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दुर्लभ लगती अब साली है

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Positive India:Rajesh Jain Rahi:

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कहने को ही खुशहाली है,
मन का हर पन्ना खाली है।

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परिवर्तन मंजूर किसे है,
ताली, ताली, दे ताली है।

भीड़ बहुत है रिश्तों की पर,
मैं, बच्चे, बस घरवाली है।

सिमटे हैं परिवार सभी के,
दुर्लभ लगती अब साली है।

शीतलता ए सी के दम पर,
उपवन में बेबस माली है।

गजल कहीं कोने में दुबकी,
मंचों पर भी अब गाली है।

सरकारों के दम पर देखो,
सुरभित मदिरा की प्याली है।

धरने वाले सत्ता में हैं,
भूख नहीं अब तो थाली है।

हार गए वो बेशक लेकिन,
गालों पर अब भी लाली है।

चोरों की परवाह किसे है,
ई वी अम की रखवाली है।

‘राही’ लिखना सोच समझ कर,
मुश्किल अब आने वाली है।

लेखक:कवि राजेश जैन राही

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