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अयोध्याजी के सन्देश को अपमान मत समझिये।

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
राष्ट्र की राजनीति केवल पाँच वर्षों का खेल नहीं है, इसे अनवरत चलते रहना है। तबतक, जबतक यह संसार है। जबतक देश है, सभ्यता है… इस लम्बी यात्रा में कोई एक हार या जीत केवल भविष्य के लिए सन्देश देने भर का काम करती है। उस सन्देश को पढ़ कर सीख लेने वाले खिलाड़ी ही लम्बे समय तक खेल पाते हैं।

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सतही दृष्टि से देखेंगे तो भगवान श्रीराम का बनवास उस युग की सबसे दुखदाई घटना थी। किन्तु यदि दृष्टि को विस्तार देंगे तो दिखेगा कि उस घटना के बाद ही सभ्यता को मर्यादा पुरुषोत्तम मिले । अयोध्याजी की राजनीति ने अपने युवराज को बनवास दिया था, पर जब वे लौटे तो उसी अयोध्या ने उन्हें देवता के रूप में स्वीकार किया। अयोध्याजी तो अपने देवता से इतना प्रेम करने लगीं कि उनके साथ असंख्य लोगों ने सरयू में समाधि ले ली। इस राष्ट्र की मूल भावना यही है दोस्त! राम का बनवास भी होता रहेगा, और वे सबके हृदय में भी रहेंगे।

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युवराज राम प्रभु श्रीराम हुए, क्योंकि उन्होंने अयोध्या के सन्देश का सम्मान किया। बनवास की यात्रा को उन्होंने दंड नहीं, अवसर समझा। वे समाज के हर हिस्से से जुड़े। नगर से दूर बसे निषादों से, वन में रहने वाले ऋषियों से… वे गहन वन में प्रतीक्षा करती शबरी से मिल कर अपनी करुणा दिखाए, तो खर-दूषण जैसे दैत्यों को भी अपनी शक्ति से परिचित कराया। एक धर्म परायण गिद्ध मिला तो उसे पिता का सम्मान दे कर गले लगाया, और अधर्मी बाली मिला तो सामर्थ्यवान होने के बाद उसका तिरस्कार किया।

अपने पराए के मध्य स्पष्ट रेखा कैसे खींचते हैं, यह उनसे सीखिये। अधर्म के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति उनसे सीखिये। आपदा में अवसर कैसे तलाशते हैं, यह उनसे सीखिये। और अंततः विपरीत परिस्थितियों को कैसे अपने अनुकूल बनाते हैं, यह भी उनसे सीखिये। संसार के सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक जिनके आराध्य हों, वे एक छोटी सी पराजय से विचलित नहीं होते दोस्त! है कि नहीं?

राजनीति में भावुकता का कोई मोल नहीं होता। जनता का मन पढ़ना होता है, उसकी बात सुननी होती है, और उसकी इच्छानुसार अपने व्यवहार में परिवर्तन करना होता है। कई बार उसकी अनैतिक मांग पर भी विचार करना होता है। यह भी याद दिलाऊं, या समझ रहे हैं आप?

एक हार से चिढ़ कर जनता को गाली देने वाले समर्थक वस्तुतः अपनी पार्टी का ही नुकसान करते हैं। पाँच साल बाद भी आपको उसी जनता के सामने जाना है। तब अमेरिका से लोग आ कर वोट नहीं करेंगे, वही जनता करेगी।

अयोध्याजी की हार इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, कि दस सीटों की पराजय भी आपको उतना विचलित नहीं करती, जितना यह चोट कर रही है। आप इसपर 5 साल सोचते रहेंगे, और यही आपके लिए सुखद होगा। 400 तक पहुँचने के मार्ग का द्वार अयोध्याजी में ही खुलेगा दोस्त! आज नहीं तो कल…

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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