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क्या आपको मालूम है कि राजा सगर ने भारत सागर का निर्माण कराया?

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
गङ्गा(Ganga)
पुराण कहते हैं, कपिल मुनि की दृष्टि पड़ते ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र जल कर भष्म हो गए। साठ हजार पुत्र? मतलब इससे अधिक जनबल संसार में किसी के पास सम्भव नहीं। पारिवारिक शक्ति का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण है ही नहीं। यह भी कथा है कि उन्होंने ही भारत सागर का निर्माण कराया। तो जो महासमुद्र का निर्माण करा दे, उसके धनबल का भी कोई जोड़ होगा? सम्भव ही नहीं।

तो जो व्यक्ति संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति है, सर्वाधिक धनवान व्यक्ति है, वह भी एक ऋषि के तेज का सामना नहीं कर सकता। ऋषि की एक दृष्टि उनका नाश कर सकती है। यह धर्म की शक्ति है, यह तप की शक्ति है। धर्म की एक दृष्टि बलशाली के बल का नाश कर सकती है।

एक और बात पर ध्यान दीजियेगा। सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया था, उसी घोड़ा ढूंढने निकले उनके पुत्रों ने कपिल मुनि के साथ अभद्रता की और भष्म हुए। राजसूय या अश्वमेघ यज्ञ किया जाता था चक्रवर्ती सम्राट कहलाने के लिए। मतलब फलाँ राजा इस यज्ञ को पूर्ण करने के बाद समूची पृथ्वी का सम्राट होगा! अब आप पुराणों में वर्णित हर राजसूय या अश्वमेघ यज्ञ को याद कीजिये, आप देखेंगे कि हर बार यज्ञकर्ता के कुल का अहित हुआ है। हर बार… पृथ्वीपति तो केवल ईश्वर हैं दोस्त! कोई और हो ही नहीं सकता। होने का अहंकार पालोगे, तो जल जाना पड़ेगा।

राजा सगर की समस्या यह कि अकाल मृत्यु मरे पुत्रों की मुक्ति कैसे होगी? ऋषि द्वारा दंडित होंने का अर्थ ही है प्रतिष्ठा का चला जाना। यह राजकुल पुनः अपनी प्रतिष्ठा कैसे प्राप्त करे? तो राह उसी ऋषि ने बताई, जिन्होंने दण्ड दिया। दण्डाधिकारी अपराधी का शत्रु नहीं होता। वह अपराध के लिए दंडित करता है, तो मुक्ति का मार्ग भी वही बताता है।

ऋषि ने कहा, गङ्गा को उतारो! स्वर्ग से धरा धाम पर… क्षमा का दान माता से अधिक कोई नहीं दे सकता। फिर गङ्गा तो सबकी माता है, वह सारे अपराध क्षमा कर देगी। सगर ने पूछा, “माता गङ्गा कैसे आएंगी?” तो ऋषि ने कहा- तप से! स्वयं को अहंकार से मुक्त करो, सांसारिक कुरीतियों से मुक्त करो, राजा होने के लोभ का त्याग करो और फिर पुकारो! माँ तो सुन ही लेगी…

सगर की महानता यह थी कि उन्होंने ऋषि की आज्ञा का पूर्ण रूप से पालन किया। राजा सिंहासन छोड़ कर वन में तप करने लगे… उनकी यात्रा पूरी हुई तो उनके पुत्र तप करने लगे, फिर उनके पुत्र, फिर उनके… कोई राजसी चिन्ह नहीं, कोई राजसी भाव नहीं, कोई सुख नहीं… एक मासूम बालक के जैसी करुण पुकार! माँ! मुक्ति दो मेरे पूर्वजों को… मुक्ति दो हमें… अहा! अपने पुरुखों के प्रति यह समर्पण, यह लगाव, यह छटपटाहट… मॉं कैसे न सुनती भाई?

गङ्गा उतरीं। सगर कुल के लिए, समूची मानवजाति के लिए, समस्त जीवों के लिए… सबकी माता, जगत माता… अब प्रश्न था कि उनका वेग कैसे सम्भले? तो शिव ने जटा खोली। सृष्टि के सबसे महान तपस्वी की जटा… युगों युगों की तपस्या में निर्मित हुई जटा… महादेव की जटा! ऐसा क्या है जो न थम जाय उनमें?
तो गङ्गा थम गयीं। सगर का कल्याण हुआ। उनके जल से भारत का निर्माण हुआ। सबका कल्याण करतीं माता गङ्गा, सबके अपराधों को क्षमा करतीं माता, सबको मुक्ति देतीं माता…
हर हर गङ्गे!

साभार:सर्वेश कुमार तिवारी (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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