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क्या आप भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की महिमा जानते है?

- सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
…. और इस तरह अहंकारी रावण का अंत हुआ, धर्म की विजय हुई, और मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की कृपा से लंका में विभीषण का धर्मदंड स्थापित हुआ। फिर? क्या अधर्म सदैव के लिए समाप्त हो गया? नहीं।
अधर्म कभी समाप्त नहीं होता। सृष्टि के अंत तक धर्म के साथ साथ अधर्म की भी उपस्थिति बनी रहती है, धर्म और अधर्म के बीच द्वंद चलता रहता है। प्रभु श्रीराम ने अपने युग के अधर्मियों का नाश कर दिया था, पर इससे मानवता सदैव के लिए सुरक्षित नहीं हुई। उनके बाद की पीढ़ी को भी धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष करना ही पड़ा। यही सृष्टि का विधान है।
राम- रावण युद्ध के समय कुंभकर्ण की पत्नी कर्कटी राजमहल से बाहर एक पर्वत पर अपने नन्हे बेटे के साथ रहती थी। पुत्र तनिक बड़ा हुआ तो माता ने उसे पिता की मृत्यु की समूची कथा सुनाई। बच्चे के मन में प्रतिशोध की भावना भरने वाली माता ने उसे राक्षसों के अत्याचार के बारे में नहीं बताया, बस भगवान श्रीराम को दोषी ठहरा दिया। घृणा के बीज सदैव इसी तरह रोपे जाते हैं। जिस लंका में स्वयं जगतनियन्ता ने धर्म की स्थापना की थी, कुछ ही वर्षों में उसी लंका में पुनः अधर्म का अंकुर फुट पड़ा। इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं, यह सहज ही है।
तो अधर्म के नए प्रतीक उस महाबलशाली योद्धा का नाम हुआ भीमा। भीमा ने ब्रम्हदेव की कठिन तपस्या की और विजयी होने का वरदान पाया। और फिर एक दिन भीमा ने राजा विभीषण से सत्ता छीन कर लंका में पुनः अधर्म का शासन स्थापित किया और संसार पर अधिकार जमाने लगा।
ईश्वरीय सत्ता को चुनौती दी जाने लगी। भीमा के अनुयायियों ने धर्मकाज का विरोध करना शुरू किया, यज्ञों का विध्वंस होने लगा। जिस ब्रह्मदेव ने भीमा को शक्ति दी थी, उन्ही ब्रह्मदेव के उपासकों को मारा, प्रताड़ित किया जाने लगा।
महाविपत्ति के क्षणों में संसार के साथ साथ स्वयं देवता भी जिस महाशक्ति की ओर टकटकी लगा कर देखते हैं, उन्ही का नाम सदाशिव है। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान भोलेनाथ आये, भीमा से भीषण युद्ध किया और उसे पराजित किया। जिस स्थान पर भोलेनाथ ने भीमा को पराजित किया था, देवताओं की प्रार्थना पर उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। वही पवित्र देवस्थल है भीमाशंकर।
लोक ईश्वर से किस तरह अपनत्व गांठ लेता है, इसके सबसे सुन्दर उदाहरण हैं भीमाशंकर महादेव। यहाँ का शिवलिंग सामान्य से अधिक मोटा है, इसलिए इन्हें स्थानीय लोग मोटेश्वर महादेव भी कहते हैं। वही बात है, ईश्वर हमें भयभीत नहीं करते बल्कि हमारे लिए वे पिता की तरह सहज हैं।
सह्याद्रि की हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य यह स्थान बहुत ही सुन्दर है। प्राचीन मंदिर के शिखर का निर्माण अठारहवीं सदी में नानाजी देशमुख ने कराया था, सो मन्दिर में पुरानी और नई संरचना का मेल हो गया है।
तो समय मिले तो कर आइये महादेव के दर्शन। इस वर्ष के अंतिम श्रावणी सोमवार की।हर हर महादेव।

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार है)
गोपालगंज, बिहार

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