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दो नरेन्द्र! स्वामी विवेकानंद तथा नरेंद्र मोदी

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Positive India:Kanak Tiwari:
अद्भुत समाजवादी विचारक राममनोहर लोहिया ने मौलिक बातें कही हैं। इस असाधारण चिंतक को हिन्दुस्तान में जतन से महिमामंडित किए गए नेताओं की दौड़ में शामिल नहीं किया गया। डाॅ. लोहिया ने मारक बात कही व्यक्ति का हो न हो, इतिहास का पुनर्जन्म होता है। आज होते तो उलटबांसी देखते। इतिहास का नहीं व्यक्तिवाचक नाम का पुनर्जन्म भंजाया जा रहा है। वह प्रतिइतिहास में बदल रहा है। नरेन्द्र मोदी के नाम के पीछे नाम का दुहराव भी है। असली नरेन्द्र थे जो विवेकानंद में तब्दील हुए। विवेकानंद का यश और इतिहास पर कायम रहने का दबाव स्थायी है। वक्त और मूल्य चाहे जितने बदलें। असली नरेन्द्र यादों में केवल झिलमिलाते नहीं। प्रकाश पुंज की तरह भविष्य के लाइट हाउस बने रोशनी देते रहेंगे।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उसका सपना और निश्चय है भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा। हिन्दू, हिन्दुइज्म, हिन्दुत्व, हिन्दुस्तान, हिन्दूवादी जैसे शब्दों का खेल लेखक और मीडियाकर्मी करते हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस भूलभुलैया से अछूता या फारिग नहीं होता। उसकी आड़ में जातिवादी ढकोसला डैने पसारता है। जातिवाद ने देश में जहर भरा है। नरेन्द मोदी के भाषणों, इंटरव्यू और लेखन में जातिवादी बुराइयों के खिलाफ लड़ने का आह्वान कम दिखाई देता है। सामाजिक समरसता की चूलें हिल रही हैं।

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सबसे पहले विवेकानंद ने भारतीय समझ में सबको शामिल करने का नायाब तर्क दिया। उनके अनुसार हिन्दुस्तान अकेला है जहां सबसे ज्यादा धर्मोें मसलन ईसाई, मुस्लिम, यहूदी, पारसी और तमाम छोटे बड़े धर्मकुलों को पनाह दी गई। ये भारत में शरणार्थी बनकर आए। भारतीय संस्कृति और तहजीब ने उन्हें अपना बना लिया। भारत को मादरे वतन समझकर अधिकार के साथ रहते हैं। अधिकारों का संघर्ष करते हैं। ऐसा दुनिया में कहीं नहीं है। विवेकानंद भारतीय संस्कृति और इस्लामी सभ्यता का यौगिक बिखेरना चाहते थे। असली नरेन्द्र में हिन्दुस्तानी समझ की आंखें हैं।

नए नरेन्द्र दो आंखें रखकर भी एक ही नजर से देश को देख रहे हैं। आदिवासी और दलित तथा पिछड़े वर्ग के आरक्षण से समाज में जितनी उथलपुथल हुई वैसी अन्य किसी घटना से नहीं हुई। उच्च वर्ग अपनी उच्चता में आत्ममुग्ध और गाफिल रहे। नरेन्द्र मोदी ने अलबत्ता लीपापोती करने की राजनीतिक कोशिश की। बिहार में खमियाजा उठाना पड़ा। उत्तरप्रदेश में बोनस मिला। सामाजिक कुलीनता की खलनायकी को लगातार सत्तानशीन होने का मौका मिलता रहा है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ग के लोगों के पास देश की अधिकांश दौलत और राजनीतिक सत्ता है। पुराने नरेन्द्र सफल वकील विश्वनाथ दत्त के बेटे में साधुत्व भर गया था। मां और बहन की फाकामस्ती दूर करने भोजन तक का इंतजाम नहीं कर पाए। पानी पीकर जिए लेकिन मकसद हासिल किया। हिन्दुतान की आवाज, सांस और सुगंधि बन गए।

नए नरेन्द्र की अगुवाई में देश का एक बड़ा धड़ा संविधान के उद्देश्य पंथनिरपेक्षता का मजाक उड़ाता है। शासकीय पंथनिरपेक्षता और सामाजिक धर्मसहजता भारत का चरित्र है। इसमें भेद विभेद कहां है। नए नरेन्द्र शुरुआती विवेकानंद के नामधारी हैं। कहते जरूर हैं लेकिन रामकृष्ण मिशन की शिक्षाओं का सेक्युलर यश उनके खाते में नहीं आया। एक वाक्य बेचा जा रहा है। विवेकानंद ने कहा था ‘गर्व से कहो मैं हिन्दू हूं।‘ इसके आगे विवेकानंद ने बहुत कुछ कहा था। वे कहते गरीबों, मुफलिसों, चांडालों, भिक्षुओं, बीमारों और हर तरह के अकिंचन हिन्दुओं के साथ हिन्दू हैं।

नए नरेन्द्र ऐसी सभाओं में नहीं जाते जहां गंदगी, बदबू, गरीबी, प्रदूषण वगैरह की बयार बह रही है। वे पांच सात सितारा होटलों और एयरकंडीशन्ड कमरों के साथ इंद्रधनुषी विदेशी सभागृहों में मुखातिब होते हैं। नए नरेन्द्र अपनी डिग्री तक नहीं बताते। देश को सूचना के अधिकार के तहत भी उनकी शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानकारी नहीं है। इसके बावजूद ओडिसा में फादर स्टेन्स एवं बच्चों की हत्या से संदिग्ध रहे अब मंत्री बन गए ओडिसा से केन्द्रीय मंत्री प्रतापचंद्र सारंगी ने मोदी की तुलना विवेकानन्द से कर दी। देखें मोदी जी इस पर क्या स्वीकार करते हैं। बाबा रामदेव तो उन्हें पहले ही राष्ट्रऋषि घोषित कर चुके हैं।

साभार:कनक तिवारी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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