Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
दिवाली हिन्दूओ का सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा उत्साह वाला त्योहार है । इस उत्सव को अच्छे से संपन्न करने के लिए घर के मुखिया को कितना मैनेजमेंट करना पड़ता है, यह वही जानता है । जमाना कोई भी रहा हो सीमित संसाधन के चलते आने वाले बेतहाशा खर्च निश्चित ही कुछ समय के लिए असहज तो कर ही देते है । वही हर किसी की साल भर की ख्वाहिश को पूर्ण करने की जिम्मेदारी घर के हेड होने के कारण उन्ही के कंधे पर रहती है । फिर प्राथमिकता तय करनी पड़ती है कि किसे पूरा करे । एक की मांग पूरी करो तो दूसरा असंतुष्ट हो जाता है । त्योहार होने से कही मदद की संभावना भी कम हो जाती है । आज लोगो के रहन सहन का स्तर बदल गया है । आज का परिवार बाजार मार्केटिंग का भी शिकार हो रहा है । उत्सव मे छूट के लोक लुभावने विज्ञापन यह सोचने को एक बार मजबूर कर देता है कि ऐसा मौका पुनः मिलेगा कि नही ? इसलिए इन दिनो भीड़ भाड़ मे वो चीज भी ले लेता है जो सोच के गया नही रहता था । दूकान मे अमीर ग्राहक पर ज्यादा तवज्जो रहती है, क्योंकि दूकान वाला उसे ही ज्यादा चिपका सकता है ।
हिन्दूओ मे मुहुर्त का भी बेजा फायदा बाजार उठाता है । किसी भी दिन का अखबार उठा लो, एक दो दिन के आड मे ये लोग ऐसी तिथि निकाल लेते है जो कभी सत्तर साल पहले कभी-कभी सौ साल की तिथि दिखाकर बाजार की तरफ रुख करने के लिए विवश कर ही देते है । पर इस सबमे घर का मुखिया अंत मे सब की मांग पूरी कर अपने जरूरत को पीछे छोड़कर त्योहार मे सब आर्थिक गम को दरकिनार कर शामिल होता है । घर वाले जरूर बोलते है कि आपने कुछ नही लिया तो छदम हंसी के साथ मेरे पास सब कुछ है; कहकर बात मे विराम लगा देता है । संपन्न लोगो को चिंता नही रहती, वही निम्नवर्ग मे न होने की बात कर वह वही हाथ खड़ा कर देता है । कुल मिलाकर यह त्योहार अच्छे से संपन्न हो सके । इसके अलावा उसे काम करने वालो का एडवांस और दिवाली ईनाम उसकी और परीक्षा ले लेता है ।
ईनाम वालो की अघोषित और अनगिनत फौज और खड़ी होती है जो इसका हक तो नही रखती पर तथाकथित स्टेटस को रखने के लिए न चाह कर भी उसे संतुष्ट तो करना पड़ता है । कुल मिलाकर यह जंग से कम नही है ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ, अभनपुर