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दिलजीत दोसांझ,अपने पूर्वजों के बलात्कारियों और हत्यारों का दिल जीत कर,ऑर्गेज्म का अनुभव करना चाहता हैं

-तत्वज्ञ की कलम से-

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Positive India:Tatvagya:
अपने म्यूज़िक कॉन्सर्ट में,दिलजीत दोसांझ ने एक पाकिस्तानी फैन को बड़ी बेशर्मी से कहा कि,ये सीमाएं राजनेताओं ने बना रखी हैं,हम पंजाबियों के लिए तो हिंदुस्तान पाकिस्तान सब बराबर हैं।

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तो दिलजीत दोसांझ जी,आपको गलतफहमी है,तो ठीक है,पर अपनी गलतफहमी,अगली पीढ़ी तक मत फैलाओ ना..

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भारत और पाकिस्तान की सीमाएं,राजनेताओं ने नहीं,अपितु अब के पाकिस्तान के इलाके में रहने वाली कब्जाधारी कौम की भीड़ ने बनाई है,जिनके हिंदुओं और सिक्खों के ख़ून से सने,तलवे,आप अपनी जिह्वा से साफ़ करने की,लगातार असफल कोशिश कर रहे हैं,कुछ वर्षों से।

दिलजीत दोसांझ जी और उनके फैंस ये जान लें,कि,मार्च 1947 की गर्मी में,रावलपिंडी नरसंहार में कब्जाधारी कौम की भीड़ ने 7000 से अधिक सिखों और हिंदुओं के साथ बलात्कार,अत्याचार और नरसंहार किया था।

इतनी भारी संख्या में,और जघन्य तरीके से,सिख और हिंदू महिलाओं के साथ,सामूहिक बलात्कार किया गया,कि उन्होंने उससे बचने हेतु,कुओं में कूदना चुना।

उस समय के,कई सिख प्रत्यक्षदर्शियों ने अपने ऊपर हुए उस जघन्य अपराध का वर्णन किया,उन्होंने बताया कि रावलपिंडी के लगभग सभी कुएं ऊपर तक,महिलाओं और लड़कियों के शवों से,इतने भरे हुए थे,कि बाकी महिलाएं उसमें अब कूद कर आत्महत्या भी नहीं कर सकते थीं।

एक के बाद एक गुरुद्वारे,नरसंहार का शिकार हुए। हिंदुओं और सिक्खों को जीते जी भूनने के लिए,हिंदुओं के मंदिरों,सिक्खों के गुरुद्वारों और दोनों समुदायों के घरों को नरकीय आग की भट्टियों में,परिवर्तित दिया गया था। 6–8 महीने की,गर्भवती महिलाओं से लेकर,70 से 80 साल की महिलाओं,बच्चों,पुरषों,को जीते जी आग लगाने से पूर्व कब्जाधारी कौम की भीड़ ने उनको,उनके घरों के भीतर बांध दिया था,और घरों को गोधरा ट्रेन के पैटर्न की भांति ही बाहर से भी,पूरी तरह कटीले तारों
और कीलों से बंद कर दिया था।

रावलपिंडी में,उस रात,केवल दर्दभरी चीत्कार,ज़िंदा मानव मांस के जलने की बू ही आ रही थी,वो आग जो लगाई थी,मंदिरों में,गुरुद्वारों में,घरों में,
वो हफ्तों तक यूं ही सुलगती रही…

कब्जाधारी कौम द्वारा,हिंदुओं और सिक्खों के इस नरसंहार और क्रूर उत्पीड़न के कारण,80,000 से अधिक सिखों और हिंदुओं को रावलपिंडी से और अन्य इलाकों से पलायन करने हेतु मजबूर होना पड़ा,वो हिस्सा,वो घर,वो मोहल्ला,वो गुरुद्वारे,वो मंदिर छोड़ने पड़े,जो बाद में पाकिस्तान का हिस्सा बने और कब्जाधारी कौम ने अपना कब्जा स्थापित कर लिया,
जैसा वो शताब्दियों से करते आए हैं।

हिंदुओं और सिक्खों की लाशों पर,नव निर्मित पाकिस्तान के जन्मदाता,जिन्ना ने एक बार भी इसकी निंदा नहीं की,जिन्ना से लेकर यूनुस खां उसी ढर्रे पर चल रहे हैं..

पर दिलजीत दोसांझ,अपने पूर्वजों के बलात्कारियों और हत्यारों का दिल जीत कर,ऑर्गेज्म का अनुभव करना चाहते हैं,और चाहते हैं,कि सारा ठीकरा,राजनेताओं पर फोड़ दिया जाए,और कब्जाधारी कौम के अपराधों को भुला दिया जाए।

दिलजीत दोसांझ एक टिपिकल बॉलीवुडिया है,जो अपनी बॉलीवुडिया बिरादरी की भांति,स्टॉक होम सिंड्रोम से पीड़ित है,और दूसरों को भी इंफेक्ट करने की,प्रबल इच्छा रखता है,पर जब वक्त आएगा,इन जैसों को कब्जाधारी कौम सबसे पहले काटेगी,क्योंकि वो जो अपने पंथ का न हुआ,वो जो अपने धर्म का न हुआ,वो जो आपने राष्ट्र का न हुआ,वो उनका क्या ही होगा।

हां हमारे यहां,भले ही अवसरवादी, आत्ममुग्ध,अहंकारी गद्दारों को,पाला पोसा जाता है,उनको बार–बार क्षमा करने की,मूर्खता की जाती है,वो चाहे आपका कितना ही अपमान क्यों न करते हों,आप उनकी बार बार चरण वंदना करते हैं,पर कब्जाधारी कौम,उन्हीं के चरणों में,उनका रक्त से सराबोर कटा हुआ शीष फेंक देती है,और थूकती है..उनके कटे हुए ,शीष पर..

जीतते रहो दिल,दिलजीत..जीतते रहो..
जीतने के चक्कर में,सब कुछ हारते रहो..
तुम भी,तुम्हारे फैंस भी ..

लेखक ✒️: तत्वज्ञ देवस्य-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
एक भारतीय सैनिक का पुत्र
आश्विन शुक्ल द्वितीय
नवरात्रि,माँ ब्रह्मचारिणी पूजा🙏🏻🔱🚩
🐅 शुक्रवार,४ अक्टूबर २०२४
विक्रम संवत् २०८१

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