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शत्रु आखिर किसके मित्र??

हीरो के लिए रील लाइफ और रीयल लाइफ मे विरोधाभास रहता है इस पर अब शत्रु जी ने भी मुहर लगा दी है

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Positive India :शत्रु आखिर किसके मित्र है इस पर चर्चा लाजिमी है । पर इस पर जितनी बात निकलेगी उतनी दूर तलक जायेगी । एक लेख मे मैने लिखा था कि हीरो के लिए रील लाइफ और रीयल लाइफ मे विरोधाभास रहता है, इस पर अब शत्रु जी ने भी मुहर लगा दी है । इतने सालो से भाजपा की राजनीति कर रहे इस नेता ने अचानक दो तीन साल से पार्टी के खिलाफ एक तरह से मोर्चा ही खोल रखा था । जब उन्होंने देखा कि अब मंत्री पद की संभावना क्षीण हो गई है तो उन्हे दल के अंदर की खामिया दिखनी चालू हो गई । कितना दुर्भाग्य है ऐसा व्यक्तित्व जिसे अपने काम के लिए, पहचान के लिए, किसी पद की दूर दूर तक आवश्यकता नही थी । वे तो बगैर पद के भी कोई भी काम कर सकते थे । सत्ता के लिए कोई भी कही तक जा सकता है, अब इसका ताजा उदाहरण शत्रु जी हो गए है । चलो भाजपा से सीधे कांग्रेस की राजनीति अर्थात सिद्धांतो के साथ पूरा यू टर्न ही है । सिद्धांतो के तहत राजनीति कौन करता है? बीजेपी से निकलकने तक वो ये तय नही कर पा रहे थे कि जाना कहा है ? वो अपने राजनीति की पूर्ण संभावना की तलाश कर रहे थे । इसलिए भाजपा विरोधी रैलियो मे बढ चढ़कर हिस्सा ले रहे थे । इसलिए सभी दल के हाईकमान उन्हे अपने से लग रहे थे । हर बड़े नेता के साथ अपने निजी संबंध पर जरूर बात करते थे । इसीलिए लालू यादव से पारिवारिक संबंधो की बात करते थे । अंततः उन्होंने कांग्रेस से राजनीति करने का निर्णय ले लिया, वही कांग्रेस ने भी उन्हे पटना साहब से टिकट देकर शायद अपना वादा निभाया होगा । अब तो फार्म भी भर दिया है । पर इस दरमियान श्रीमती पूनम सिन्हा ने भी समाजवादी पार्टी के तरफ से गृहमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ उम्मीदवार बन रही है । इसका मतलब साफ हो गया कि पति पत्नी के रास्ते और सिद्धांत भी अलग है । पर यहा तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी । महोदय जी पति धर्म निभाने के कारण श्रीमती सिन्हा के रैली मे शामिल होकर नामांकन मे भी गये । फिर वो ये भूल गए कि नये नवेले कांग्रेसी भी है; उन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए वोट मांगकर वहा के कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य प्रमोद कृष्णन के साथ दगा कर दिया । जिसकी शिकायत आचार्य कृष्णन ने की । समाजवादी पार्टी के वे इतने कृतघ्न हो गये कि उन्होंने अखिलेश यादव को प्रधानमंत्री का बेहतर उम्मीदवार ही बता दिया । ऐसा कर उन्होंने राहुल गांधी के साथ भी बेइंसाफी कर दी । कुल मिलाकर निज स्वार्थ के लिए कोई कही तक भी जा सकता है । कल ही उन्होंने जिन्ना के लिए कसीदे पढते हुए कांग्रेस का सदस्य बताया । कुल मिलाकर न देश के न पार्टी के न अपने नेता के न अपने मतदाता के तब से मेरे को एक प्रश्न कौंध रहा था कि आखिर शत्रु किसके मित्र ?
लेखक: डा. चंद्रकांत रामचंद्र वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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