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क्या राहुल गांधी ने संसद में बहुत बुद्धिमानी की बात की ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
जब देश ने एक नारा सुना था, ‘भारत तेरे टुकड़े-टुकड़े होंगे’, तब एक स्वर में पूरे देश ने कहा था, ‘देशद्रोह है यह’। और यहीं पर खेल हो गया। क्योंकि देशद्रोह तो कुछ राष्ट्र विरोधी तत्व करते ही रहते हैं और हम एक खतरनाक विचारधारा को पहचानने से वंचित रह गए। राहुल गांधी ने उस विचारधारा को पहचान लिया और अपनी पार्टी में उसकी सदस्यता दिला दी। अब वे बड़े कायदे से संसद में अपने विचार को एड्रेस करते हैं। एक गलती फिर करेंगे हम यदि टुकड़े-टुकड़े की इस ताकत को एड्रेस के बजाय राहुल गांधी को उनकी बुद्धिहीनता पर उत्तर देने लगेंगे।

राहुल गांधी ने संसद में बहुत बुद्धिमानी की बात की। उन्होंने जो भाषण दिया एक बहुत पढ़ा लिखा कम्युनिस्ट ही वैसा भाषण दे सकता है। इसका उत्तर उन्हें हमें एक समझदार नागरिक की तरह देना पड़ेगा। क्योंकि मसला देश के खिलाफी ताकतों का है। केरल, तमिलनाडु, बंगाल या राजस्थान जैसे राज्यों का नाम लेकर राहुल गांधी ने कहा उनकी एक अपनी संस्कृति, अपना इतिहास, अपना गौरव है। इसलिए हमें उनके साथ निगोशियेसन के चलना पड़ेगा, ना कि एक सेंट्रलाइज्ड फोर्स के जरिए रूल करना होगा। विविधता का यही वह विचार है जिसके अतिरेक भाव को हवा देकर भारत विरोधी ताकते टुकड़े-टुकड़े का हवाला देती हैं।

सुषमा स्वराज ऐसे ही किसी सवाल पर सोमनाथ चटर्जी को संसद में एक बार जवाब देती हैं कि राष्ट्र भावनाओं से बनता है। कि जब बंगाल में जन्म लिया किसी व्यक्ति का मां-बाप अपने पुत्र का नाम गुजरात में स्थित किसी मंदिर के नाम पर सोमनाथ रखता है। राहुल गांधी ने भी संसद में केरल के संस्कृति और गौरव की बात की, बंगाल की बात की, राजस्थान और तमिलनाडु की भी अलग-अलग बात की। लेकिन उन्हें मैं जवाब देना चाहता हूं कि एक राष्ट्र के तौर पर भारत की भी अपनी संस्कृति अपना गौरव और इतिहास रहा है। और यही भावना है कि संविधान में राज्यों का संघ लिखे होने के बावजूद भारत टुकड़े-टुकड़े ताकतों से बेपरवाह एक राष्ट्र के रूप में कायम है।

मुझे पूरा विश्वास है कि संप्रदायिक ताकतों और उन्हें तरजीह देने वाले महात्मा गांधी के समान विभाजनकारियों को छोड़ दिया जाए, तो केवल विविधतामूलक विचार भारत में पर्याप्त नहीं कि यह देश के टुकड़े-टुकड़े का कारण बने। बल्कि इस विविधता से एक अलग ही राष्ट्र भावना को बल मिलता है। संघ होते हुए भी भारत कोई सोवियत संघ नहीं कि टूट जाएगा। भारत में विविधता से बनने वाली राष्ट्र भावना की एकता को शायद कोई विदेशी रक्त चरित्र नहीं परख सकता। किताबें पढ़कर कम्युनिज्म प्राप्त कर भारत पर चोट करने से भारत यदि टूटता तो अब तक टुकड़े-टुकड़े हो चुका होता। पर भारत को तोड़ने के लिए तो कोई संप्रदायिक ताकत चाहिए और मुहर लगाने के लिए एक महात्मा गांधी।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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