गाँधी ने किसी को अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र क्रांति करने से रोका था क्या?
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India: Rajkamal Goswami:
गाँधी ने किसी को अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र क्रांति करने से रोका नहीं था । जिन्हें क्रांति करनी थी वे क्रांति करते और कुछ क्रांतिकारियों ने अपने ढंग से क्रांति करने की कोशिश की भी । गाँधी का अपना रास्ता था सत्याग्रह का अहिंसा का और अपने शत्रु से भी प्रेमपूर्ण व्यवहार करने का ।
कोई यह आशा करे कि गाँधी स्वाधीनता के लिए सशस्त्र क्रांति करते या उसका नेतृत्व करते तो यह गाँधी के लिए संभव नहीं था । अंग्रेजों के विरूद्ध १८५७ के विद्रोह का परिणाम वे देख चुके थे जब हडसन ने गाँव के गाँव जला दिए थे । बहादुर शाह ज़फ़र के शाहज़ादों को गोलियों से भून दिया था । रानी लक्ष्मीबाई को घेर कर मार डाला था । जलियाँवाला बाग़ तो गाँधी के सामने ही घटित हुआ था ।
क्रांतिकारियों को कुचलने में भारतीयों की ही भूमिका रही । झाँसी को कुमाऊँ रेजीमेंट ने फ़तेह किया था , सिख रेजीमेंट ने अंग्रेजों के आने तक इलाहाबाद क़िले पर फ़िरंगी ध्वज फहराये रखा और जलियाँवाला बाग़ में निहत्थों पर गोलियाँ गुरखा रेजीमेंट ने चलाईं थी । भगतसिंह को फाँसी उनके साथी हंसराज बोहरा और जयगोपाल की गवाही पर हुई और चंद्रशेखर आज़ाद की मुखबिरी वीरभद्र तिवारी ने की थी ।
गाँधी के सत्याग्रही सिपाहियों को स्वजनों की ग़द्दारी का कोई भय नहीं था । ग़द्दार उनका क्या बिगाड़ लेते ? जेल जाने को वे तैयार रहते थे , लाठी डंडा खाना उनके लिए सामान्य बात थी । बस एक ज़िद थी कि अंग्रेजों का क़ानून नहीं मानेंगे, अंग्रेज़ी मिलों का कपड़ा नहीं पहनेंगे और उनके साथ हर तरह का असहयोग करेंगे । स्वराज्य की जो अवधारणा उनके आने से पहले कांग्रेस के प्रबुद्ध वर्ग तक सीमित थी उसमें उन्होंने जन जन को भागीदार बनाया । स्वतंत्रता की मशाल देश के कोने कोने तक पहुँचा दी ।
निस्संदेह देश की आज़ादी में लाखों करोड़ों लोगों का सहयोग रहा लेकिन श्रेय लीडर को ही मिलता है । वह लोगों के पुरुषार्थ को सही दिशा में ले जाता है । गाँधी के सत्याग्रह को अपना कर ही मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में काले लोगों के विरूद्ध बने क़ानून ख़त्म कराये । नेलसन मांडेला ने दक्षिण अफ़्रीका से रंगभेद दूर कराया ।
भारत को आज़ादी मिली तो अंग्रेजों के हाथ से भारतीय सेना भी निकल गई जिसके शौर्य से उन्होंने दो दो विश्व युद्ध जीते थे और जिसके सहारे दुनिया में उनका साम्राज्य टिका हुआ था । उस साम्राज्य को तो बिखरना ही था तो धीरे-धीरे अंग्रेजों को सभी उपनिवेशों को छोड़ना पड़ा ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)