Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आयुर्वेद के विकास के लिए बहुत बात हुई । यहां के शिक्षक पूर्व मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह से पता नही इस पंद्रह साल मे कितने बार आयुर्वेद के समस्याओ के नाम से मिले, उसका कोई लेखा जोखा नही है। पुराने संबंधो की दुहाई देकर पूर्व मुख्यमंत्री जी ने भी मिलने के लिए हर समय दरवाजे खोल रखे हुए थे । इन लोगो से इस दरमियान हमारा प्रतिनिधि मंडल कई बार मिला । हर बार मुद्दा आयुर्वेद विकास का था । पर इन पंद्रह साल मे आयुर्वेद ने कितना विकास कर लिया ? पहले जहां था, वहां आज भी है और आने वाले सालो बाद भी वैसे ही रहेगा ।
आयुर्वेद के विकास के नाम से ये सिर्फ शिक्षको के विकास तक ही सीमित रहते थे । यह भी सत्य है डा. रमन सिंह ने इनकी मांगे पूरी कर दी। पर क्या इन्होंने अपना दायित्व निभाया ? महाविद्यालय मे गोल्डन जुबली इयर हुआ था । पूरे ताम झाम से इसका आयोजन किया गया था । जिसके मुख्यअतिथि पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जी ही थे । लंबे चले अनवरत स्वागत समारोह, हास्य परिहास फिर कुछ अपनी भी समस्याये, पर जमीनी स्तर पर काम करने वाले चिकित्सकको को उनके समस्या के लिए मुख्यमंत्री से निवेदन करने से रोक दिया गया; क्योंकि समय नही है । आप अपनी समस्या बंद दरवाजे के अंदर रख सकते है । मतलब साफ है, आप स्टेज मे नही गा सकते, आप बाथरूम मे गा सकते है । या हम आपको बंद दरवाजे देते है भोंकते रहिये । मांग भी क्या? धन्वंतरि पुरस्कार की जिस दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री ने घोषणा की, उसी दिन साफ हो गया था । ये धन्वंतरि पुरस्कार आहाते से बाहर नही जाने वाला था । पहले पुरस्कार के घोषणा के बाद से ही वरिष्ठता की तलवार खीच गई थी , जिसे दूसरे साल एडजस्ट किया गया । फिर बात के साल मे तो जिस बंदे ने धन्वंतरि पुरस्कार के लिए आवेदन ही नही किया था, सम्मानित निर्णायको ने उसे ही सम्मानित कर दिया ! इसे कहते है पारदर्शिता!! मुख्यमंत्री जी नाराज हुए और किसी भी शासकीय सेवक के पुरस्कार लेने से बंदिश लगा दी, तो इन्होंने उसका भी तोड़ निकाल लिया; तू डाल डाल मै पात पात की तर्ज पर । इन्होंने धन्वंतरि के पुरस्कार राशि को सेवानिवृत्त अनुग्रह राशि मे तब्दील कर दिया । जिन लोगो ने आज तक कभी कोई मरीज देखा नही वे इसके हकदार बनते जा रहे है । वही योग्य लोग राजनीति के शिकार बनते जा रहे है । चालीस साल का मेरे जैसे अनगिनत चिकित्सको का दर्द है, आज मै बयां कर रहा हू । लेख बड़ा हो रहा है आगे भी क्रमशः जारी रहेगा ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ( ये लेखक के अपने विचार हैं)