जम्मू कश्मीर की सीटों का परिवर्तन अब्दुल्ला और मुफ़्ती के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द सिद्ध होगा
जम्मू कश्मीर में परिवर्तन अब्दुल्ला और मुफ़्ती पर ज्यादा बड़ी गाज बन कर गिरेगा।
Positive India:Satish Chandra Mishra:
जम्मू कश्मीर की सीटों के चरित्र और चेहरे में होने वाला यह परिवर्तन अब्दुल्ला और मुफ़्ती के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द सिद्ध होगा…
कल अपनी पोस्ट में मैंने जम्मू कश्मीर में परिसीमन के बाद सीटों की संख्या में होने वाले उस उलटफेर का उल्लेख किया था, जो अब्दुल्ला और मुफ़्ती को कतई रास नहीं आएगा। इसके अलावा परिसीमन की प्रक्रिया जम्मू कश्मीर की चुनावी राजनीति की बिसात की दशा और दिशा को भी पूरी तरह बदल देगी।
ज्ञात रहे कि अनुच्छेद 370 की आड़ लेकर जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण का कोई नियम लागू नहीं होता था। विधानसभा की 87 सीटों में से केवल 7 (8%) सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं। यह सभी सीटें जम्मू क्षेत्रं में हीं थीं। मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर घाटी की सभी 46 सीटें किसी भी प्रकार के आरक्षण से पूरी तरह मुक्त थीं। जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजाति की अधिकृत संख्या 12% है। हालांकि अनाधिकारिक तौर पर उनकी संख्या लगभग 20% बतायी जाती है। लेकिन उनके लिए विधानसभा में एक भी सीट आरक्षित नहीं है। इसके ठीक विपरीत जम्मू कश्मीर से सटे राज्य पंजाब में (29%) तथा हिमाचल प्रदेश में भी (29%) सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं। देश की संसद में भी 21% सीटें आरक्षित हैं। लेकिन जम्मू कश्मीर में अब होने जा रहे परिसीमन के पश्चात यह खेल पूरी तरह खत्म हो जाएगा। कम से कम 20 से 25 सीटें आरक्षित की श्रेणी में शामिल होँगी। इन आरक्षित सीटों के दायरे से कश्मीर घाटी अछूती नहीं रहेगी।
जम्मू कश्मीर की सीटों के समीकरण के चरित्र और चेहरे में होने वाला यह परिवर्तन अब्दुल्ला और मुफ़्ती के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द सिद्ध होगा। राज्य की अनुसूचित जनजातियों में बकरवाल और गुर्जर जनजाति का ही बाहुल्य है। दोनो ही जनजातियां पूरी तरह भारत समर्थक रही हैं। विशेषकर बकरवाल जनजाति तो आतंकवाद के खिलाफ जंग में भारतीय सेना की भरपूर मददगार सिद्ध होती रही है। कश्मीर में तैनात रहे किसी सैन्य अधिकारी या जवान से बात करिए तो वह इस तथ्य की पुष्टि कर देगा। यही कारण है कि कश्मीर की तुलना में पाकिस्तान से सटी जम्मू की सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ और उनको शरण देने के मामलों की संख्या लगभग नगण्य होती है। राज्य में सीटों की संख्या में परिवर्तन के अलावा राज्य की 20-25 प्रतिशत सीटों के चरित्र चेहरे में होने जा रहा यह परिवर्तन अब्दुल्ला और मुफ़्ती पर ज्यादा बड़ी गाज बन कर गिरेगा।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)