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दिल्ली में पानी के प्राचीर

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
दिल्ली शहर में पानी का प्रलय देख कर रामदरश मिश्र के उपन्यास पानी के प्राचीर की याद आ रही है। पानी के प्राचीर गोरखपुर के गांवों में आई बाढ़ और बाढ़ की विभीषिका और यातना को बांचता है। वर्ष 1978 में जब दिल्ली शहर में पानी घुस आया तो रामदरश मिश्र तब दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे और मॉडल टाऊन में रहते थे। मॉडल टाऊन में तब नाव चलने लगी थी। तमाम घर डूब गए थे। लोग छतों पर रहने लगे थे। रामदरश मिश्र ने तब सारिका में एक रिपोर्ताज लिखा था , पानी के प्राचीर फिर। रामदरश मिश्र अब 99 वर्ष के हैं। उत्तम नगर , वाणी विहार , दिल्ली में रहते हैं। जल्दी ही अपने जीवन की शताब्दी मनाने वाले हैं। पर दिल्ली की यमुना में हर साल पानी के प्राचीर लिखा जाता है। दिल्ली की विभिन्न सरकारें कांग्रेस , भाजपा और आप आज तक इस पानी के प्राचीर को रोक या तोड़ नहीं पाई हैं। आगे भी ख़ैर क्या रोकेंगी।

अभी तो दिल्ली की जनता 200 यूनिट फ्री बिजली , मुफ्त पानी , महिलाएं मुफ्त बस का लुत्फ़ ले रही हैं। बुद्धिजीवी कसीदे लिख रहे हैं , वर्तमान मुख्य मंत्री के। सब कुछ ठीक चल रहा है। लाल क़िला समेत तमाम जगह नाव चलें तो इन बुद्धिजीवियों की बला से। मुख्य मंत्री ने तो शरणार्थी बांग्लादेशियों , रोहिंग्याओं के लिए बाढ़ से बचाने के लिए पलक पांवड़े बिछा दिए हैं। अत्याधुनिक टेंट लगवा दिए हैं। बसें लगा दी हैं। दिल्ली के मूल निवासी , मवेशी बहते हैं तो बह जाएं , इस बाढ़ में , अपनी बला से। दिल्ली के गांव की ख़बर न केंद्र को है , न प्रदेश को। पानी के प्राचीर से यही लोग लेकिन ज़्यादा जूझ रहे हैं। पूरी दिल्ली कहीं नदी , कहीं झील , कहीं लहरों की नगरी बन गई है। देवेंद्र कुमार के एक गीत का एक अंतरा याद आता है :

नदी, झील, सागर से
रिश्ते मत जोड़ना
लहरों को आता है
यहां-वहां छोड़ना।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

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