Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
देश मे इतने न्यूज चैनल है कि समाचारों के अलावा अपने चैनल को रोचक बनाने के लिये या दर्शको को बांधे रखने के लिए लगभग सभी चैनल तत्कालीन विषयों पर बहस रखते हैं । पर जिस विश्वास के साथ दर्शक बैठते है, तो दूर दूर तक उस विषय से वंचित रहते है । अफसोस है कि हर चैनल मे कुछ लोग है कि जो घूम घूम कर बहस की खुले आम दुकान दारी कर रहे है । बहस का स्तर इन लोगों ने इतना गिरा दिया है कि आप इसे अब परिवार के साथ भी नहीं देख सकते । इन लोगों की खासियत यह है कि किसी बहस को कैसे खराब किया जाए, इसमे इनकी महारथ हासिल है । आप किसी भी बहस को उठाकर देख लो इससे दर्शक को फायदा होते नही दिखता ।
वहीं इन व्यवसायिक वक्ताओ में एक बात जरूर है कि अगर वो इस विषय में जहां पिछड़ते दिखते है, तो इनका चीखना चिल्लाना चालू हो जाता है, जिससे यह बहस डिरेल हो जाती है । विगत दिनों एक चैनल में कोरोना पर बहस थी । पैनल के एक वक्ता ने कोरोना की खून जांच की बात की तो ऐंकर को कहना पड़ा कि कोरोना की जांच खून से नही स्वाब से होती है; जबकि वो एक राष्ट्रीय चैनल में आकर कोरोना पर बहस कर रहा था । ऐसे लोगों के बहस का स्तर कितना सार्थक होगा कहना मुश्किल है । उक्त बंदा तो सिर्फ़ कोरोना के राजनीतिक व धार्मिक एंगल पर ही बहस को ले जाना चाहता था ।
एक चैनल में तो एक पैनल के वक्ता के विरोध का स्तर जहां असंसदीय था, वहीं गालियो के गुच्छों से आच्छादित भी था । उल्लेखनीय है कि उक्त बहस में कुछ महिला पैनलिस्ट भी थी । ऐंकर को भी असहज महसूस होने लगा। उसने कार्यक्रम की गरिमा बनाए रखने के लिए उक्त महिला वक्ता से माफी मांगी और अपने दर्शकों से भी खेद के साथ माफी मांगी । वहीं उस वक्ता को अब किसी भी बहस में न बुलाने की बात की गई है ।
यही हाल राजनीतिक विश्लेषकों का भी है, जो बहस में अपने राजनीतिक दल के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने के लिए मुद्दे से इतर जोर जोर से चीखते है, चिल्लाते हैं और जबरदस्ती अपनी बातों को थोपने की कोशिश करते है। ये जनता है सब जानती है ।