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दरकते पहाड़ , सिसकती जिंदगी

-पुरुषोत्तम मिश्रा की कलम से-

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Positive India:Purshottam Mishra:
जोशीमठ का धसना प्रकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित त्रासदी है। पूरे क्षेत्र को सिंकिंग जॉन करार दे दिया गया है, क्योंकि जोशीमठ शहर का जमीन में समाने का खतरा हर घंटे बढ़ता जा रहा है। विकास की अंधी दौड़ में हमारे राजनेताओं ने हमारी सांस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहर को एक तरह से स्वाहा कर दिया। हमारे भू वैज्ञानिकों ने 50 वर्ष पूर्व भी जोशीमठ की त्रासदी की चेतावनी जारी कर दी थी, उसके बावजूद भी केंद्र तथा राज्य सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी तथा बड़ी-बड़ी इमारतें, सड़कों का जाल अनवरत बढ़ता गया। विकास का यह जाल इतना बढ़ गया कि जोशीमठ की धरती इसको वहन करने में असमर्थ हो गई। सरकारों को यह मालूम था कि जोशीमठ शहर ग्लेशियर भूमि पर स्थित है जो हिमालय के कच्चे पहाड़ का एक हिस्सा है और यहां पर कंक्रीट का जाल नहीं टिक पाएगा उसके बावजूद पहाड़ों की छाती को चीर कर, उसे डायनामाइट लगाकर उड़ाया गया ताकि ऑल वेदर रोड बनाई जा सके , टनल बनाई जा सके , जिसका खामियाजा आज जोशीमठ शहर के निवासी भुगत रहे हैं।
जोशीमठ के साथ ही नैनीताल, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, तथा चंपावत के आसपास के इलाके भी भू धंसाव की जद में आ चुके है । हालांकि केंद्र सरकार ने एनडीआरएफ की टीमें तथा राज्य सरकार ने एसडीआरएफ की टीम में तैनात कर दी है, पर क्या आपदा प्रबंधन की ये टीमें जोशीमठ तथा उसके साथ लगते क्षेत्रों को बचा पाएंगे? कदापि नहीं।

जिस तरह से पहाड़ों का सीना छलनी किया गया, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया गया, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की गई ,अब प्रकृति उसका बदला ले रही है।
जोशीमठ तो धसेगा ही, उसके साथ ही नर एवं नारायण पर्वत भी आपस में टकरा कर ध्वस्त हो जाएंगे जिस से बद्रीनाथ धाम का मार्ग हमेशा के लिए अवरुद्ध हो जाएगा।

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