नेतन्याहू द्वारा यूएन असेम्बली में लहराए गए दो पोस्टर ‘ब्लेसिंग’ और ‘कर्स’ बताया हुए वायरल
-सुशोभित की कलम से-
Positive India:Sushobhit:
बेंजमिन नेतन्याहू ने यूएन जनरल असेम्बली में दूध का दूध और पानी का पानी करने वाली 34 मिनटों की जो स्पीच दी है, उसे पूरी दुनिया को ध्यान से सुनना चाहिए। उसमें मध्य-पूर्व में वर्तमान में निर्मित हालात का कच्चा चिट्ठा है। नेतन्याहू ने कहा मैं इस बार यहाँ आने नहीं वाला था, क्योंकि मेरा देश एक जंग में मुब्तिला है, लेकिन जब मैंने इस मंच से बोले जा रहे झूठ को सुना तो ख़ुद को रोक नहीं पाया। मैं यहाँ पर सच सुनाने आया हूँ। और सच यह है कि इज़राइल शांति से जीना चाहता है, लेकिन इस शांति की कुछ शर्तें हैं। युद्ध आज ही समाप्त हो सकता है, बशर्ते हमास हथियार डाल दे और हमारे बंधकों को लौटा दे। लेकिन हमास तो न केवल गाज़ा पर नियंत्रण क़ायम किए हुए है, बल्कि हम गाज़ा वालों की मदद के लिए जो भोजन-सामग्री भेजते हैं, उसे भी वह चुरा लेता है और उसकी कालाबाज़ारी करके पैसा कमाता है। जो लोग यह कहते हैं कि हमास से सुलह कर लो, उन्हें नहीं मालूम कि वे वैसी ही बात करते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद नात्सियों से सुलह करके उन्हें फिर से जर्मनी में हुकूमत चलाने का मौक़ा दिया जाता। यह ना तब मुमकिन था, ना अब मुमकिन है। हमास को जाना होगा। उसके बाद ही हम गाज़ा में किसी नई हुकूमत के बारे में बात कर सकते हैं, जो इज़राइल के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में यक़ीन रखती हो।
नेतन्याहू ने असेम्बली में दो पोस्टर लहराए और हज़रत मूसा की तर्ज़ पर उनमें से एक को ‘ब्लेसिंग’ और दूसरे को ‘कर्स’ बताया। ‘ब्लेसिंग’ में भूमध्य-सागर से अरब सागर तक का इलाक़ा था, जिसमें इज़राइल अपने सहयोगियों के साथ मिलकर समृद्धि चाहता है, लेकिन ‘कर्स’ में ईरान और उसके भाड़े के टट्टुओं (गाज़ा में हमास, लेबनान में हिज़बुल्ला, यमन में हूती, इराक-सीरिया में शिया मिलिशिया और जूदा-समारिया के फिलिस्तीनी) का नाम शुमार है, जो मध्य-पूर्व को अंधकार भरे, मध्ययुगीन, जहालत के दिनों में ले जाना चाहते हैं। नेतन्याहू ने कहा कि हम पर सात मोर्चों से हमला किया जा रहा है। जब इज़राइल और सऊदी अरब के बीच क़रारनामा होने ही वाला था, तब 7 अक्टूबर 2023 की घटना घटी, जिसमें हमास के आतंकवादियों ने इज़राइल पर हमला बोलकर 1200 लोगों- जिनमें औरतें और बच्चे भी थे- का क़त्ल कर दिया और 250 को बंधक बना लिया। अगले ही दिन 8 अक्टूबर को लेबनान से हिज़बुल्ला ने मिसाइलें दाग़ीं और हज़ारों इज़रायलियों को अपना शहर छोड़ने को मजबूर कर दिया। अब तक वह हम पर 8000 मिसाइलें दाग़ चुका है। नेतन्याहू ने यह स्पीच देने के फ़ौरन बाद अमेरिका से ही बेरूत में सीधे कार्रवाई करने का हुक्म दिया और हिज़बुल्ला के सरगना हसन नसरल्ला को मार गिराया। हमास ने 7 अक्टूबर को धावा बोला था, उसका सरगना इस्माइल हनीये मारा गया है। हिज़बुल्ला ने 8 अक्टूबर को धावा बोला था, उसका सरगना हसन नसरल्ला अब हलाक़ हो चुका है। शुरुआत उन्होंने की थी, ख़त्म इज़राइल कर रहा है- हमेशा की तरह। और नेतन्याहू ने यूएन के मंच से घोषणा की- “हम जीत रहे हैं!”
जिस तरह से नेतन्याहू ने यूएन में पोस्टर दिखाए, उसी तरह से अतीत में एक स्पीच के दौरान वो अरब-दुनिया का नक़्शा भी दिखा चुके हैं, जो मध्य-पूर्व से उत्तरी-अफ्रीका तक फैली हुई है और जिसमें इज़राइल एक अंगूठे जितना नन्हा-सा मुल्क है। फिलिस्तीनियों द्वारा अकसर एक नारा बुलंद किया जाता है और इस नारे को इस्लाम के पिट्ठू लिबरलों और फ़ेमिनिस्टों द्वारा जस का तस दोहरा दिया जाता है- ‘फ्रॉम द रिवर टु द सी’। नेतन्याहू ने उस नक़्शे पर दिखाया कि जोर्डन नदी कहाँ पर है और भूमध्य सागर कहाँ पर है और उन दोनों के बीच में इज़राइल कहाँ पर मौजूद है। ‘फ्रॉम द रिवर टु द सी’ का मतलब है जॉर्डन नदी से भूमध्य सागर तक फैले इज़राइल के समूचे-क्षेत्र का समूल-नाश। पूरे का पूरा ख़ात्मा। यह हमास का घोषित मक़सद है और इस नारे को बुलंद करने का मतलब है दुनिया के इकलौते यहूदी-राष्ट्र और उसमें रह रहे 95 लाख लोगों का क़त्लेआम। यह मानवद्रोह इतने घोषित तरीक़े से अमल में नहीं लाया जा सकता, तब तक नहीं जब कि इज़राइल है और इज़राइल वहाँ से कहीं जाने नहीं वाला।
नेतन्याहू ने अपनी स्पीच में अब्राहम अकॉर्ड की बात को फिर से दोहराया, जो कि यूएई और बहरीन के साथ यहूदी-राष्ट्र का क़रारनामा था और जिसमें अब सऊदी अरब भी जुड़ने जा रहा है। ईरान की नज़र में यह खटकता है और सुन्नी-अरबों पर अपने शिया-गठजोड़ का सिक्का जमाने के मक़सद से वह अपने गुर्गों के ज़रिये गाज़ा, लेबनान, सीरिया, यमन को बरबाद कर रहा है। नेतन्याहू ने अपनी स्पीच में ईरान के नापाक इरादों का पर्दाफ़ाश किया है और दुनिया के तरक़्क़ीपसंद लोगों, ख़ासकर मुसलमानों से अपील की है कि मिल-जुलकर, गंगा-जमुनी तहज़ीब से रहना सीखें, इसी में सबकी भलाई है। दहशतगर्दी और ख़ूँरेज़ी का ज़माना लद गया। और अगर अतीत के घावों को ही कुरेदना है तो बात न केवल फिलिस्तीन, बल्कि पर्शिया, मेसोपोटामिया, अनातोलिया, लेवान्त, ईजिप्त, बिज़ान्तिन, मग़रीब, सिंध तक जाएगी, जहाँ रशीदुन ख़लीफ़ाओं के अरेबियन-कॉन्क्वेस्ट ने अनगिनत लोगों को हलाक़ किया था, स्थानीय तहज़ीबों को नेस्तनाबूद किया था और उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा जमा लिया था। 1948 में यहूदियों ने अपने हिस्से की थोड़ी-सी- अरब-वर्ल्ड में एक अंगूठे जितनी- ज़मीन ही छीनी थी- दुनिया की दूसरी तहज़ीबें अपनी ज़मीनें छीनने पर आमादा हो गईं तो क़यामत हो जावेगी। नेतन्याहू की बातों को सुनें, समझें, जहालत छोड़कर तरक़्क़ी करना सीखें और अमन से मिल-जुलकर रहने की तैयारी दिखाएँ तो फिलिस्तीन-समस्या का हल भी सम्भव है। वरना, जैसा कि नेतन्याहू ने कहा, “हम आप पर हमला नहीं बोलेंगे, लेकिन आप हम पर हमला करोगे तो हम आपको छोड़ेंगे नहीं!” उम्मा को एक ज़ायोनिस्ट सोव्रेन-स्टेट की यह शपथ गाँठ बाँध लेनी चाहिए।
Writer:Sushobhit-(The views expressed solely belong to the writer only)