विपक्षियों की रुदन गाथा एक काल्पनिक कथा है जिसका सत्य से…
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
रुदन गाथा…
लंका में रावण युग का अंत हो चुका था। सारे राक्षस मारे जा चुके थे। नगर के अंदर राक्षसियां विलाप कर रही थीं, और बाहर युद्धक्षेत्र में सियार। हर ओर हुई हुई हुई हुई की ध्वनि पसरी हुई थी। पर जीवन तो नहीं रुकता न? विभीषण जी का राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने व्यवस्था सम्भाल ली। लंका के धार्मिक जन ने अत्याचारी शासन के अंत और धर्म की स्थापना पर प्रसन्नता जताई और उत्सव मनाने लगे। इस तरह राक्षसियों का विलाप मंद पड़ गया।
अगले दिन राक्षसियों और सियारों का एक प्रतिनिधिमंडल महाराज विभीषण के पास गया, जिसकी अध्यक्षता सुपनेखिया की फुफेरी बहन कर रही थी। युद्ध के दिनों में पलंग के नीचे छिप कर जान बचा लेने वाले कुछ राक्षस भी उनके साथ थे। कुछ कुंभकर्ण आदि राक्षसों के यहाँ चीलम भरने वाले नौकर चाकर भी थे। उन्होंने प्रार्थना पूर्वक कहा- हे महाराज, हमने अपने प्रियजनों को खोया है। हम विलाप करना चाहते हैं। हमारा रोंआ रोंआ रो रहा है, पर आपके सैनिकों के भय से हम रो नहीं पा रहे हैं। हमें रोने की इजाजत मिले।
विभीषण दयालु व्यक्ति थे, उन्हें इन राक्षसियों पर दया आ गयी। उन्होंने कहा, “हे डंकिनी, पिशाचिनी, हिरिया-जिरिया, फुलिया- फुलेसरी आदि राक्षसियों और किरोधन, गणचटका, मुँहलेंढ़ा आदि राक्षसों! मैं तुम्हारी पीड़ा समझता हूं। पर अभी इस उल्लास के क्षण में तुम्हे रोने की इजाजत नहीं दे सकता। पर मैं तुम्हे वरदान देता हूँ कि तुम्हें विलाप का मौका फिर मिलेगा। कलियुग के प्रथम चरण में जब अयोध्या की पुण्यधरा पर प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनने का समय आएगा, तब तुम लोग पुनः जन्म लोगे। तुममें से कोई पत्रकार होगा, कोई कवयित्री होगी, कोई इतिहासकार होगा… तुमलोग अलग अलग समाचार चैनलों के लिए काम करोगे। जब मन्दिर में प्राणप्रतिष्ठा होगी, तब तुमलोग अपने प्रियजनों को याद कर के जी भर के रोना, कोई तुम्हे नहीं रोकेगा। तब तुम्हारी हर इच्छा पूरी होगी।
एक राक्षसी ने शंका जाहिर की, “हम तो घोर गंवार हैं महाराज! हम और कविता? यह कैसे सम्भव होगा?”
महाराज ने कहा, “तुमलोग तब भी गोबर ही लिखोगे। इतना बकवास कि तुम्हारी किताबें सौ लोग भी नहीं पढ़ेंगे। लेकिन तब के राक्षस देशों से मिलने वाले उत्कोच से तुम्हारा पोषण होता रहेगा और तुम्ही लोग इतिहासकार, कवि, लेखक, प्रकाशक आदि कहलाओगे।”
सारे राकस राकसी प्रसन्न हो कर लौटे। युग बीता, और….
( यह एक काल्पनिक कथा है जिसका सत्य से….)
साभार: सर्वेश कुमार तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)