भ्रष्ट नेता और दल्ले वकीलों में राज्य सभा की जुगलबंदी
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India: Dayanand Pandey:
भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की जैसे ख़ुराक़ बन गई है बड़े और दल्ले वकीलों को राज्य सभा में भेजना। इस लिए भी कि खग जाने खग ही की भाषा। अपराधी राजनेताओं ख़ास कर भ्रष्टाचार में चौतरफा घिरे राजनीतिज्ञों की कमज़ोरी रही है कि किसी न किसी बड़े वकील की शरण में रहने का। भारी फीस के अलावा गुरुदक्षिणा में राज्य सभा सदस्यता से नवाजने का। सोचिए कि आधा घंटा के लिए पचास लाख से एक करोड़ रुपए तक की फीस है , ऐसे वकीलों की। जाहिर है जजों का हिस्सा अलग से देना होता है। जजों और मुअक्किलों के बीच यह वकील ही दलाल बनते हैं। तभी तो आधी रात भी यह सुप्रीम कोर्ट खुलवा लेने की क्षमता रखते हैं। भले ही वह किसी आतंकी का ही मामला क्यों न हो। अभी तुरंत-तुरंत का मामला देख लें। अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों ही को ई डी ने एक ही एक्ट पी एम एल ए में गिरफ्तार किया है। चुनाव प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी है। ठीक इसी ज़मानत के बाद , इसी आधार पर हेमंत सोरेन भी सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मांगने पहुंचे। पर उन्हें ज़मानत देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया।
क्यों ?
इसलिए कि अभिषेक मनु सिंघवी उन के वकील नहीं थे। या कहिए कि हेमंत सोरेन का वकील अभिषेक मनु सिंघवी की तरह सुप्रीम कोर्ट में सेटिंग नहीं कर पाया।
याद कीजिए कि मायावती जब गले तक भ्रष्टाचार में धंस गईं तो उन्हों ने सतीशचंद्र मिश्रा को पकड़ा। सतीश मिश्रा ने जैसे अघोषित ठेका ले लिया कि वह किसी सूरत मायावती को जेल नहीं जाने देंगे। मायावती ने बहुत पहले सतीश चंद्र मिश्रा को न सिर्फ़ राज्य सभा भेजा , लगातार भेजती रहीं। पार्टी में भी सतीश मिश्रा को ससम्मान रखा हुआ है। जाने कितने लोग आए और गए पर सतीश मिश्रा को कोई सूत भर भी नहीं हिला सका। आज तक सतीश मिश्रा और मायावती की बांडिंग बनी हुई है। इन दोनों के फेवीकोल में फ़र्क़ नहीं पड़ा। मायावती के ही रास्ते चलते हुए लालू प्रसाद यादव ने राम जेठमलानी को राज्य सभा में अपनी पार्टी से भेजा। पर जेठमलानी लालू को जेल जाने से नहीं बचा सके। फिर जेठमलानी दिवंगत हो गए। अब तो लालू सज़ायाफ्ता हैं। जेल आते-जाते रहते हैं। स्वास्थ्य के आधार पर पेरोल और ज़मानत का खेल खेलते रहते हैं।
मुलायम सिंह यादव ने भी जेल जाने से बचने के लिए वर्तमान में भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया के पिता वीरेंद्र भाटिया को राज्य सभा में भेजा था। वीरेंद्र भाटिया ने भी मुलायम को जेल जाने से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जेल जाने से बचने के लिए मुलायम सिर्फ़ वकील के भरोसे ही नहीं रहे। मुलायम पहले कांग्रेस के आगे फिर भाजपा के आगे भी दंडवत रहे मुलायम। अपनी ज़ुबान पर भी लगाम लगाए रखा। जब कि लालू की ज़ुबान मुसलसल बेलगाम रही है। जैसे कि इन दिनों अरविंद केजरीवाल की ज़ुबान मुसलसल बेलगाम है। अटल जी एक समय कहा करते थे , चुप रहना भी एक कला है। जो लालू या केजरीवाल जैसे लोग नहीं जानते और भुगत जाते हैं। ख़ैर , अब अखिलेश यादव ने भी पुराने कांग्रेसी कपिल सिब्बल को सपा की तरफ से राज्य सभा में बैठा रखा है ताकि जेल की नौबत न आए। जानने वाले जानते हैं कि कपिल सिब्बल वकालत कम , अपनी दलाली के लिए कुख्यात रहे हैं। अभी-अभी वह सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए हैं। राम मंदिर मामले को अपनी दलाली और कुतर्क के मार्फ़त ही सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल लटकाए रखने के लिए परिचित हैं।
इसी तरह पवन खेड़ा जैसों अराजक को खड़े-खड़े अभिषेक मनु सिंघवी ने एफ आई आर होने के बाद कुल दो घंटे में ही सीधे सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत दिलवा दिया। कांग्रेस में चिदंबरम , सलमान खुर्शीद , अभिषेक मनु सिंधवी समेत अनेक वकीलों की फ़ौज सर्वदा से रही है। रहेगी। सोनिया , राहुल , रावर्ट वाड्रा की हिफाजत के लिए। ग़ौरतलब है कि यह तीनों भी ज़मानत पर बाहर हैं। अलग बात है कि भाजपा में जेल जाने वालों की सूची ऐसी नहीं रही फिर भी अरुण जेटली , सुषमा स्वराज , रविशंकर जैसे अनेक वकीलों की फ़ौज भाजपा ने बनाए रखी। हर छोटी-बड़ी पार्टी के पास इसी तरह वकीलों का फ़ौज-फाटा बना रहता है। वकील पार्टियों को दूहते हैं , पार्टियां इन को। ज़िक्र ज़रूरी है कि रविशंकर ही वह वकील थे जिस ने पटना हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ते हुए चारा घोटाले में सज़ा दिलवाई थी। अयोध्या में राम मंदिर का मुकदमा भी रविशंकर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जीता था। सकारात्मक , नकारात्मक बहुत से ऐसे उदाहरण हैं। जैसे कि हरीश साल्वे भी एक वकील हैं जो इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में सिर्फ़ एक रुपए की फीस पर कूलभूषण जाधव का मुकदमा लड़ कर जीत लिया था और वह एक रुपया भी नहीं लिया। पर यही हरीश साल्वे सलमान ख़ान जैसे हत्यारे को आनन-फानन मुंबई हाईकोर्ट से ज़मानत दिलवा देते हैं। याद कीजिए मुंबई में हिट एंड रन केस। सड़क की फुटपाथ थके-हारे पर सोए मज़दूरों को शराबी सलमान ख़ान ने अपनी कार से कुचल कर मार दिया था। पर सलमान ख़ान पैसे वाला अभिनेता है। मुंह मांगा पैसा खर्च कर बच जाता है। समय बीत जाने के बाद भी देर शाम तक कोर्ट बैठी रही सलमान ख़ान को ज़मानत देने के लिए। इधर लोवर कोर्ट ने सज़ा घोषित की उधर हाथोहाथ मुंबई हाईकोर्ट ने ज़मानत दी।
तो अनायास ?
बहरहाल अब भ्रष्टाचार के ढेर सारे कुएं खोद लेने के बाद अरविंद केजरीवाल को भी किसी ऐसे वकील की दरकार पड़ गई है जो उन्हें जेल आदि संकटों से मुक्ति दिलाने का ठेका ले ले। सोमनाथ भारती जैसे छुटभैए वकील बेअसर साबित हुए हैं। अभिषेक मनु सिंघवी में केजरीवाल को अपनी ज़रुरत पूरी होती दिख रही है। अभिषेक मनु सिंघवी राज्य सभा में रह चुके हैं। एक बार मुख मैथुन का लाभ लेते हुए एक महिला वकील को जस्टिस बनाने का वायदा करते हुए कैमरे में कैप्चर हो गए तो दुकान फीकी पड़ गई। उस समय वह आलरेडी राज्य सभा में थे भी। बहुतों को जस्टिस बनवा चुके थे। बाद में भी बनवाते रहे पर सार्वजनिक रूप से उस वीडियो के बाद राज्य सभा का फिर रिनुवल नहीं हुआ। कांग्रेस की राजनीति में भी साइडलाइन कर दिए गए। पर कांग्रेस के प्रति निष्ठां बनी रही। अलग बात है यूट्यूब से उस मुख मैथुन वाले वीडियो को सुप्रीम कोर्ट से आदेश दिलवा कर हटवा दिया।
अभिषेक मनु सिंघवी के पिता लक्ष्मीमल सिंघवी भी बड़े वकील रहे थे। वह राज्य सभा में भी रहे। उन की बड़ी प्रतिष्ठा रही है। एक भी दाग नहीं लगा कभी उन पर। दिल्ली के साऊथ एक्सटेंशन में उन के घर पर मेरी उन से अच्छी मुलाक़ात भी रही है। कई बार। लेखकों , पत्रकारों को भी बहुत पसंद करते थे। ख़ुद भी लेखक थे। सरल और विनम्र व्यक्ति थे। अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने पिता से क़ानूनी दांव पेंच तो सीख लिया पर शुचिता और नैतिकता बिसार गए हैं। प्रतिष्ठा गंवा दी है। अभी हिमाचल में कांग्रेस विधायकों की पर्याप्त संख्या होने के बाद भी भाजपा के दांव में फंस कर राज्य सभा की सीट जीतते-जीतते हार गए। वह कहते हैं न कि क़िस्मत अगर ख़राब हो तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है। अभिषेक मनु सिंघवी के साथ भी लगभग यही हो गया। सो भाजपा से वह खार खाए बैठे ही थे कि केजरीवाल शराब घोटाले की जद में आ गए। अभिषेक मनु सिंघवी ने यह अवसर बढ़ कर दोनों हाथ से लपक लिया। बीच चुनाव में अरविंद केजरीवाल को अंतरिम ज़मानत दिलवा कर उन्हों ने भाजपा से अपना हिसाब न सिर्फ़ हिसाब बराबर कर लिया बल्कि राज्य सभा में जाने का सौदा भी केजरीवाल से कर लिया। सुप्रीम कोर्ट का वकील वैसे ही तो नहीं , अरविंद केजरीवाल के लिए लोवर कोर्ट में बहस करने पहुंच जाता है। यह आसान नहीं था। एक समय ऐसे ही कन्हैया कुमार के लिए कपिल सिब्बल पैरवी के लिए पहुंच गए थे। अलग बात है कुछ वकीलों ने कन्हैया कुमार को इस तरह घेर कर मारा कि उन की पेंट ख़राब हो गई। मामला ही ऐसा था। भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा कन्हैया कुमार ने जे एन यू में लगाया था। कन्हैया कुमार अभी फिर माला पहन कर थप्पड़ खा गए हैं। केजरीवाल की तरह।
अरविंद केजरीवाल ने अभिषेक मनु सिंघवी को राज्य सभा भेजने में थोड़ी नहीं ज़्यादा हड़बड़ी दिखा दिया। सामंती ऐंठ दिखा दी। स्वाति मालीवाल अभी ताज़ा-ताज़ा राज्य सभा सदस्य बनी हैं। रिपीट तो संजय सिंह भी हुए हैं। पर केजरीवाल को राजनीतिक रूप से सब से ग़रीब , कमज़ोर और अनुपयोगी स्वाति मालीवाल ही लगीं। इस लिए उन्हें ही शिकार बनाया। सुनीता केजरीवाल को सौतिया डाह था ही , सामंती रवैया दिखाते हुए स्वाति मालीवाल को डिक्टेशन दे दिया गया। आप जिस को लेडी सिंघम कहते रहे हों उसे कीड़े-मकोड़े की तरह ट्रीट करेंगे तो एक बार तो कीड़ा-मकोड़ा भी तन कर खड़ा हो जाएगा , अपने अपमान से आजिज आ कर। फिर यह तो स्वाति मालीवाल ठहरी। राज्य सभा की सदस्य ठहरी। राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष ठहरी।
स्वाति का एक नाम तारा है और एक नक्षत्र का भी नाम भी स्वाति है। जाने कौन भारी पड़ा अरविंद केजरीवाल पर कि आए थे हरिभजन को , ओटन लगे कपास वाली दुर्गति हो गई। टेकेन ग्रांटेड ले लिया स्वाति मालीवाल को केजरीवाल ने। अपने दरबार की बांदी मान बैठे। अभ्यस्त थे वह इस के। एक से एक कद्दावर प्रशांत भूषण , योगेंद्र यादव , कुमार विश्वास , आशुतोष , आनंद कुमार आदि-इत्यादि तो छोड़िए , गुरु अन्ना हजारे तक को निपटा चुके थे अपनी अराजक शैली में। तो यह स्वाति मालीवाल क्या चीज़ थी। पर यहीं केजरीवाल गच्चा खा गए। उन की अराजकता की खेती स्वाति मालिवाल नीलगाय बन कर एक रात में चर गई। उन को पता ही नहीं चला। सुबह हुई तो पता चला भी पर सामंती अकड़ और अहंकार में अपने पालतू बिभव कुमार को ले कर लखनऊ आ गए। स्वाति मालीवाल भड़क गई इस बिंदु पर। अभिषेक मनु सिंघवी और केजरीवाल की खिचड़ी जल गई। केजरीवाल चुनाव प्रचार तो छोड़िए , अब पूरी पार्टी को जेल भेजने के लिए आंदोलनरत हो गए हैं। बिभव की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ आंदोलनरत हो गए। क्यों कि बिभव उन के तमाम राज जानता है और स्वाति मालीवाल सिर्फ़ बिस्तर के राज।
बिलकुल अभी 2 जून को जेल तो खैर केजरीवाल जाएंगे ही पर अभिषेक मनु सिंघवी भी राज्य सभा ज़रूर जाएंगे। क्यों कि अभिषेक मनु सिंघवी की ज़रूरत अब केजरीवाल को लंबे समय तक पड़नी है। और नियमित पड़नी है। पैसा तो बहुत है केजरीवाल के पास अभिषेक मनु सिंघवी को देने के लिए। करोड़ो रुपए दे रहे हैं। देते रहेंगे। पर अभिषेक मनु सिंघवी का ईगो मसाज करने के लिए उन्हें राज्य सभा का सम्मान कहिए , ख़ुराक़ कहिए देनी ही है। अब देखना है कि केजरीवाल किस को बलि का बकरा बनने के लिए चुनते हैं। और कि वह भी आसानी से इस्तीफ़ा दे कर अभिषेक मनु सिंघवी के लिए सीट छोड़ता है कि नहीं। आम आदमी पार्टी के राज्य सभा में पर्याप्त सदस्य हैं।
राज्य सभा सदस्य होना वैसे तो सभी पार्टियों में सर्वदा से महत्वपूर्ण रहा है। आम आदमी पार्टी में तो बहुत ही ज़्यादा। कुमार विश्वास और आशुतोष गुप्ता का तो आम आदमी पार्टी से मोहभंग हुआ ही इस एक राज्य सभा की सदस्यता ख़ातिर। हालां कि यह दोनों ही आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ कर हार चुके थे और चाहते थे कि राज्य सभा मिले। पर केजरीवाल ने दोनों की ठेंगा दिखा दिया। आशुतोष तो अभी भी आम आदमी पार्टी के लिए के ख़िलाफ़ कभी खुल कर नहीं बोलते। भाजपा विरोध और सेक्यूलरिज्म की आड़ में अकसर कोर्निश बजाते रहते हैं। आम आदमी पार्टी से अपने प्यार का इज़हार जताते रहते हैं। लेकिन कुमार विश्वास जब भी कभी अवसर मिलता है अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। प्रशांत भूषण , आनंद कुमार , योगेंद्र यादव जैसे लोगों को भी चूहे की तरह कुतर कर रख दिया।
याद कीजिए कि पीटने को तो प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण भी कई बार पिटे हैं। अपने ही चैंबर में पिटे हैं। आम आदमी पार्टी में रहते हुए हैं। पर उन के लिए पक्ष या विपक्ष में कोई इस तरह नहीं खड़ा हुआ। पिटे बड़े वकील राम जेठमलानी भी थे। चंद्रशेखर के लोगों ने पीटा था। चंद्रशेखर के घर पर ही पीटा था। स्पष्ट है कि चंद्रशेखर की शह पर पीटे गए थे। पर चंद्रशेखर से जब इस जेठमलानी की पिटाई के बाबत पूछा गया तो वह बोले , मुझे इस बारे में नहीं मालूम। पर अगर जेठमलानी जी की पिटाई अगर हुई है तो यह निंदनीय है। मैं इस की निंदा करता हूं। तब जब कि जेठमलानी चंद्रशेखर के घर धरना देने पहुंचे थे कि वह प्रधान मंत्री पद की दावेदारी से अपना नाम वापस ले लें। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने हफ़्ता भर बीत जाने के बाद भी एक बार भी अपने ही शीश महल में स्वाति मालीवाल की पिटाई की निंदा नहीं की है। उलटे स्वाति मालीवाल की पिटाई करने वाले बिभव कुमार के पक्ष में आंदोलनरत हो गए हैं।
यह कौन सी संसदीय परंपरा है भला ! तब जब कि राज्य सभा को उच्च सदन का दर्जा दिया गया है। स्वाति मालीवाल उसी राज्य सभा की सदस्य हैं। यह कहां आ गए हैं हम ?
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)