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कोरोना की दवा कोरोनिल ने आयुष मंत्रालय तथा राजनेताओं के बीच मचाई खलबली

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आनंद पिक्चर का आखिरी क्षण जब राजेश खन्ना अपनी आखिरी सांस लेते रहता है, तब अभिताभ बच्चन, जो उसका इलाज करते रहता है और अंत में वो इस गंभीर स्थिति में भी होम्योपैथी के चिकित्सक से दवाई लाने जाता है; जबकी उसको अंदर से मालूम रहता है कि सब प्रयास बेकार है । यह आदमी ही है जो किसी भी बीमारी के सामने तबतक हार नहीं मानता, जबतक उसकी सांस रहती है । चलो विषय पर आया जाये ।

कोरोना के कारण पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है । पाश्चात्य देशों मे कोरोना से मृत्यु ने प्रश्न चिन्ह ही खड़े कर दिए है । आज पूरा विश्व इस बिमारी से लड़ने के लिए दवाई के ईजाद मे लगा हुआ है । पर आशातीत सफलता नहीं मिली है । इसी बीच स्वामी रामदेव के पतंजलि संस्थान की रिसर्च टीम और जयपुर के हॉस्पिटल के चिकित्सको के सहयोग से ” कोरोनिल ” दवा के आविष्कार की उन्होंने पत्रकार वार्ता में घोषणा की । बस फिर क्या था! हाहाकार ही मच गया!! इस दवाई के प्रामाणिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लगने लगे ।

यह जरूर है कि स्वामी जी को आयुष मंत्रालय से
कोरोना की दवा बनाने से पहले अनुमति लेनी चाहिए थी । पहले उन्हे वो पूरी औपचारिकता पूरी करनी थी, जो किसी नई दवाई के लिए अपेक्षित है । पर मुझको लगता है कि इस विषय पर थोड़ा इंतजार करने की आवश्यकता थी । वैसे भी आज कोरोना का इलाज सिंपटोमेटिक ही चल रहा है । इसमे कैप्सूल डाकसोसायकलिन टैबलेट हाइड्रोकसीकलोरोकविन टेबलेट, रेबिमिपिसिन और अब डेकसामेथाजोन तक ही सीमित है । प्लाज्मा थेरेपी पर अभी भी मुहर नही लगी है । कुल मिलाकर पूरा इलाज चिकित्सक अपने तरफ से सिर्फ लक्षण देखकर ही तय करता है ।

आज हर आदमी चाह रहा है कि कोरोना की दवा, इसका वैक्सीन निकले और इलाज भी शत प्रतिशत हो । मरीजो को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो किस पैथी से ठीक हो रहा है । उसे आराम मिलने से मतलब है । आज हम माडर्न मेडिसिन पर ज्यादा निर्भर है । पर इसके पहले तो हम आयुर्वेद पर ही निर्भर थे । पांच हजार साल पहले लक्ष्मण जी के मूर्च्छित होने पर संजीवनी बूटी का भी जिक्र है । यह जरूर है कि इस पर उतना ध्यान नहीं दिया गया, जिसके कारण यह विधा हाशिये पर आ गई ।

स्वामी रामदेव जी ने योग और आयुर्वेद का लोहा मनवाने के लिए बाध्य कर दिया । यह वही देश है जहां जब तक पाश्चात्य देशों ने अपनी मुहर योगा के लिए नहीं लगा दी, तब तक इस देश ने इसे खुलकर नही स्वीकारा । यहां तो यह हाल है कि अमेरिका के न्यूयार्क से हर साल, जब तक जीवित रहे तब तक, अपने देश से प्यार के चलते, रोटरी क्लब के सौजन्य से अपनी निःशुल्क सेवायें देने के लिए आने वाले प्रख्यात प्लास्टिक सर्जन पद्मश्री स्व.डा.शरद कुमार दीक्षित पर भी यहां के कुछ लोगों ने प्रश्न चिन्ह ही खड़े कर दिए थे । उल्लेखनीय है, डा. दीक्षित व्हील चेयर मे बैठकर सर्जरी करते थे । दुख होता है ऐसे निस्वार्थ सेवा करने वाले को अगर आप सलाम नहीं कर सकते तो कम से कम उनके इस ज्ञान पर प्रश्न चिह्न खड़ा करने का कोई हक भी नहीं था । फिर स्वामी रामदेव जी कहां लगे ? स्व . डा.दीक्षित ने पता नहीं कितनी लड़कियों की शादी, चेहरे मे कुछ विकृतियों के कारण जो नहीं हो पा रही थीं, उनकी विकृतियों को ठीक कर शादी के योग्य बनाया । उसके बावजूद लोग प्रश्न करने से नहीं चूके । कुछ नहीं यह एक व्यवसाय है, जो शायद यह सब करने को मजबूर करता है । दुर्भाग्य से यह अविश्वास बहुतायत में देखा जाता है जिसे मै बाद मे उल्लेख करूंगा ।

पुनः विषय पर, वो स्वामी रामदेव, जिसनें इन मल्टी नेशनल कंपनियों को बबूल व नीम जैसे हर्बल औषधियों को अपने पेस्ट में मिलाने को मजबूर कर दिया, आज उन्हीं के विरुद्ध आयुष मंत्रालय खड़ा हो गया। यही वो लोग थे जो इन औषधियों की खिल्ली उड़ाने से बाज नहीं आते थे । इन सभी लोगों को पटखनी देते हुए, आज स्वामी रामदेव जी स्वदेशी ब्रांड के महानायक बन गये है ।

लेख बड़ा हो रहा है। कल आगे इस पर जरूर लिखूं गा । क्योकि अभी मूल मुद्दे पर आया ही नहीं गया है । यह दुर्भाग्य है कि ये स्वामी रामदेव जी का विरोध कर रहे है या आयुर्वेद का ? बस इतना ही क्रमशः आगे
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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