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चीन की प्रशासनिक उदासीनता का परिणाम-कोरोना वायरस

China is behind the spread of Corona Virus.

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Positive India:Vineet Dubey:चीन की प्रशासनिक उदासीनता का परिणाम ही है कोरोना वायरस, जिसने पूरी दुनिया को संकट में डाल दिया है।
वैश्विक मंच पर चीन ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की है ,इसमें कोई दो राय नहीं है। मजबूत राजनीतिक और आर्थिक शक्ति के बल पर चीनियों ने सफलता का एक अद्भुत संसार रचा है। वैश्विक मंच से अलग-अलग देश के प्रतिनिधियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि चीन की व्यापारिक सफलता का श्रेय वहां के कुशल राजनीतिज्ञों को जाता है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग को ‘उम्दा नेता’ का खिताब दिया है , जबकि पूर्व न्यूयॉर्क शहर के मेयर माइकल ब्लूमबर्ग का कहना है कि चीन के प्रशासन को तानाशाह भले ही न कहा जाए, लेकिन सुशासन भी नहीं कहा जा सकता।उनका मानना है कि कुछ मामलों में राजनेताओं के तानाशाही रवैये के कारण चीन सहित समूचे विश्व को बड़े खतरे का सामना करना पड़ सकता है, जिसका ताजा उदाहरण कोरोना वायरस है।

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कोरोना वायरस की पहली दस्तक 1 दिसंबर को चीन के वुहान शहर में दर्ज की गई थी। दिसंबर खत्म होते-होते वहां के कई डॉक्टरों ने सोशल मीडिया के सहारे लोगों में इस वायरस के प्रति जागरूकता फैलाई । उस वक्त जब ऐसा दौर चल रहा था, तब संबंधित स्वास्थ्य विभाग को इस वायरस से निपटने के लिए कोई निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन वायरस के खिलाफ कोई कार्यवाही ना करके, कार्यवाही उन लोगों के खिलाफ की गई, जो जन जागरूकता फैला रहे थे। सोशल साइट ‘वीचैट’ के जरिए इस बीमारी को लेकर जानकारी दे रहे डॉक्टरों पर कम्युनिस्ट पार्टी ने भ्रामक प्रचार करने का आरोप लगाया और कार्यवाही की धमकी दी। इतना ही नहीं प्रशासन के द्वारा उन डॉक्टरों को अफवाह फैलाने के आरोप में ना सिर्फ पकड़ा गया बल्कि बेतरह प्रताड़ना भी दी गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 31 दिसंबर को कोरोना वायरस की पुष्टि कर दी थी, तब भी चीन के प्रशासन ने जनता को अंधेरे में रखा। जब हालात बेकाबू हो गए,तब 23 जनवरी को वुहान शहर पूरी तरह बंद कर दिया गया, लेकिन तब तक 50 लाख लोग शहर छोड़ कर जा चुके थे। फलस्वरूप, यह खतरनाक कोरोना वायरस दूसरे देशों और शहरों में भी फैल गया। विश्व रैंकिंग में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने वाले चीन के विषय में समय-समय पर यह बताया जाता रहा है कि वहां पत्रकारिता ,सोशल मीडिया, गैर सरकारी संस्थाओं और विधिक मामलों जैसे अन्य संस्थाओं का पराभव हो रहा है। वहां की जनता ने भी इस विषय में कई बार अपनी आवाज उठाई है ,लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को कुचलते हुए चीनी प्रशासन ने एेसे सभी आन्दोलनों को दबा दिया। यदि समय रहते उन आठ चीनी डॉक्टरों की बात सुन ली गई होती, तो आज समूचा विश्व कोरोना नामक वायरस से जूझ ना रहा होता।

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यह पहली बार नहीं है ,जब चीन अपने तानाशाही रवैए के चलते किसी वायरस के आगे मात खा गया। इससे पहले 2018 में भी स्वाइन फ्लू नामक बीमारी ने समूचे चीन के सुअर मांस उद्योग को तहस-नहस कर दिया था, जिसके कारण पूरी दुनिया के एक चौथाई सूअरों को मार दिया गया।

यह सत्य है कि चीन की व्यापारिक और आर्थिक नीतियां प्रशंसा के योग्य है ,लेकिन इसके साथ ही यह भी सत्य है कि वह कोरे लाभ पर आश्रित हैं और इतिहास साक्षी है कि लाभ और लोभ पर आधारित शासन टिकाऊ नहीं होता। चीन के विषय में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वहां एक आत्ममुग्ध तानाशाह है ,जिसके कुशासन का परिणाम ना केवल चीनी जनता को ,बल्कि पूरे विश्व को झेलना पड़ रहा है।

विनीत दूबे-एडवोकेटइलाहाबाद हाई कोर्ट, प्रयागराज

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