Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
अब तो ऐसा लग रहा है कि राजनीति के सामने कोरोना की नही चली । खूब राजनीति की जा रही हैं । इससे इस महामारी का क्या फर्क पड़ेगा, किसी को कोई लेना-देना नहीं है । सबको जनता की चिंता है पर सिर्फ राजनीति के लिए । आज हम चतुर्थ लाॅकडाउन में है । पर यह लाॅकडाउन कितना उपयोगी साबित होगा कहना मुश्किल है; क्योकि इस लाॅकडाउन में व्यापार में छूट दी गई हैं । कुछ व्यापारिक संस्थान तीन दिन कुछ व्यापारिक संस्थान दो दिन खुले रहते हैं । यह दुकानें शाम पांच बजे तक खुले रहते है। इस लाॅकडाउन में शराब की भी छूट दे दी गई हैं ।
पर सबसे ज्यादा मजदूरों को उनको अपने घर पहुंचाने का काम भी शुरू हो गया है । पूरे देश में श्रमिकों के लिए ट्रेन भी चालू हो गई हैं । विशेष बस भी चालू हो चुकी हैं । इस बीच मजदूर अपने अपने सुविधा से घर जा रहे है । पर इन सबके बीच हम इस तरह के लाॅकडाउन का कैसे पालन करेंगे, यह यक्ष प्रश्न है ।
पर जैसा हमने यूरोप में देखा कि थोड़ी सी लापरवाही से ये विकसित देश भी इस महामारी के सामने घुटने टेक दिए । वहीं अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी कोरोना के सामने नतमस्तक हो गया । वहां एक लाख से ज्यादा मौत भी हो चुकी है । हमारे यहाँ शुरू में तो कोरोना के खिलाफ़ लड़ा गया, वो काफी काबिले-तारीफ था । यह स्थिति करीब दो लाॅकडाउन तक तो ठीक थी । पर इसमे राजनीति भी घर कर गई ।
मजदूरों को हथियार बनाने का खेल भी चालू हो गया है । दिल्ली से शुरू हुआ यह खेल अभी तक चालू है । दुर्भाग्य से लोगों में धैर्य की कमी है। सरकार के प्रयासों की प्रतीक्षा नही कर पा रहे हैं । राजनीति के चलते मजदूर भी जाने अनजाने में उनके इस खेल का हिस्सा बनते चले गए । राज्य शासन को जो जिम्मेदारी निभानी चाहिए उनहोंने नही निभाई । दुर्भाग्य से उनहे विश्वास में नही लिया गया ।
जिस तरह का आधा अधूरा लाॅकडाउन चल रहा है, उसकी जो गंभीरता लोगो में होने चाहिए, वो दिख नही रहा है । वही मीडिया के भी जो रिपोर्ट आ रहे हैं उसमे भी सोशल डिसटेंसिंग की हर जगह कमी नजर आ रही हैं । भले हम अपनी पीठ थपथपा ले, पर जैसा यह वायरस फैल रहा है और हम अब एक लाख पार कर गये, देश को आगाह करने के लिए यह काफी हैं । हमारे यहाँ जनसंख्या के कारण भीड़ भाड़ एक आम बात है । किसी भी बाजार चले जाओ चाहे राईट का हो या लेफ्ट का, खुले सब धरा का धरा रह जाता है । कम समय के लिए खुलने वाले बाजार में भीड़ आम बात है । कुल मिलाकर इसकी गंभीरता तो सबको मालूम है,पर इसके लिए जो सावधानियाँ लेनी चाहिए उसकी कमी नजर आती है ।
अब ऐसा लगने लगा है कि इससे हम जब वैक्सीन बन जायेगी, तभी शायद लड़ने में सक्षम होंगे । जब तक प्रथम, द्वितीय जैसे लाॅकडाउन लागू नही होगा तब तक इस पर नियंत्रण की कल्पना करना सिर्फ दिव्य सपने से कम नही है । अभी भी हमें सचेत रहने की आवश्यकता है । बस इतना ही ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर