कनवर्टेड कौम और चावल की बोरीवाले लोग अपनी कौम से गद्दारी कभी नहीं करते
-तत्वज्ञ देवस्य की कलम से-
Positive India:तत्वज्ञ देवस्य:
भाई के चैनल को प्रमोट करने पर,
मोहम्मद जुक्करुद्दीन अल बगदादी द्वारा
आईडी की रीच मार दी गई है…
सोच रहा हूं,सबकी तरह,पुरुष और महिलाओं पर,पति और पत्नियों,पति पत्नी और प्रेमी/प्रेमिका पर
लिखना आरंभ कर दूं🤔
फिर मुझे मणिपुर,हिमाचल,झारखंड और पश्चिम बंगाल की घटनाएं दिख जाती हैं..
ये देख कलम मुझसे कहती है,
रीच आती जाती रहेगी,
जो आवश्यक मुद्दा है,उसे उठाओ..
ट्रेंड के पीछे मत भागो,
अपना स्वयं का ट्रेंड बनाओ..
जब भूमि ही अपनी नहीं रहेगी,जब धर्म ही अपना नहीं रहेगा,तो पति पत्नी प्रेमी प्रेमिका का क्या वजूद होगा?
प्राथमिकता किसकी है,ये विवेकशील लोग समझेंगे..
बाकी इसी में भिड़े रहेंगे,और शत्रु उन पर हंसते रहेंगे.,
नित्य नए जाल बुनते रहेंगे..
और वो क्या करेंगे?
वो हिंदू हैं,हिंदू मूर्ख बनते रहेंगे..
कभी देखा है किसी कनवर्टेड कौम वाले को हिंदुओं के जाल में फंसते हुए?कभी देखा है किसी चावल की बोरी वाले को हिंदुओं के जाल में फंसते हुए?उत्तर है नहीं..
क्यों नहीं?क्योंकि हिंदुओं को हिंदुओं के लिए जाल डालना आता है,शत्रुओं के लिए नहीं,शत्रुओं के लिए वो बस जाल में फंसने वाला शिकार बनना चुनते हैं…
कनवर्टेड कौम और चावल की बोरीवाले लोग,अपनी कौम के प्रति,ईमानदार और वफादार होते हैं,सबसे गद्दारी कर लेते हैं,पर अपनी कौम से गद्दारी कभी नहीं करते,और दूसरी तरफ़ हिंदू है,जो शत्रुओं को नहीं छल पाता,पर अपने धर्म से अवश्य छल करता है।
हिंदुओं को जब पता होता है,कोई इंस्टीट्यूट,कोई संस्था,कोई स्कूल,कोई मॉल,कोई प्रोडक्ट,विधर्मी का है,तो क्यों उसके ग्राहक बनते हो?क्यों अपने बच्चों को उसका शिकार बनाते हो?जब तुम मूर्खता करने को इतने आतुर हो,तो सामने वाला शत्रु तुम्हें क्यों न फंसाए?और फिर सरकारें तुम्हें कितना बचाएं?
ऐसे समझो,एक बच्चा है,वो रोज़ गांव में एक गड्ढा ढूंढता है,और उसमें कूद जाता है,फिर चिल्लाता है,लोग आते हैं उसे बचाते हैं,अगले दिन वो फिर वही करता है,कभी गड्ढा नहीं मिला तो तालाब में कूद जाता है,कभी तालाब न मिला तो कुएं में कूद जाता है,उसके रोज़ ऐसे व्यवहार से गांव वाले परेशान हो जाते हैं,और फिर निर्णय लेते हैं कि उसे इग्नोर किया जाए,खुद समझ जाएगा,लड़का फिर एक गड्ढे के कूदता है,कोई बचाने नहीं आता,वो पड़ा रहता है,चिल्लाता रहता है,कोई नहीं आता,वो खुद गड्डे से निकलता है और अगले दिन,वो गांव की बरसाती नदी में कूद जाता है,बहाव तेज होता है,
और वो चिल्लाते हुए बह जाता है..
अब उसे घर वाले दोष गांव वालों को देते हैं,जिन्होंने न बचाने का निर्णय लिया था,पर स्वयं की गलती नहीं देखते जो उस बच्चे को किसी भी तरह समझा सकते थे ऐसा न करने से,या रोक सकते थे।
वो बच्चा और उसके परिवार की मासिकता ही बहुसंख्यक हिंदुओं की मानसिकता है।
इस पटल पर भी उनकी कमी नहीं,अधिकतर अपने रचाए एक बुलबुले में जी रहे हैं,एक ऐसा बुलबुला जो उन्हें लगता है कभी फूटेगा नहीं,वो सुरक्षित रहेंगे..
इसलिए वो अनावश्यक मुद्दों को उठाते हैं,और जो आवश्यक मुद्दे हैं,उनसे नज़रें चुराते हैं..
क्योंकि ट्रेंडिंग नहीं है,ट्रेंडिंग होगा,विवादास्पद होगा
तभी तो रीच आएगी।
रीच आएगी,रीच जाएगी..
आप और आपका वंश ही न रहा,तो इसका आचार डालेंगे?
वैसे आप आचार को भी मुद्दा बना सकते हैं..
बनाइए और लाशों पर सिके पराठों संग बड़े शौक से खाइए,
क्योंकि क्या पता वो आपका आखिरी भोजन हो..
एंजॉय..👍🏻
✒️ तत्वज्ञ देवस्य-(ये लेखक के अपने विचार हैं)