भारतीय राजनीति में असामाजिक तत्वों का योगदान
हर पार्टी ने अपने काम साधने के लिए असामाजिक तत्वो को खुलकर पनाह दी हुई है।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
अब समय आ गया है पार्टी के कार्यकर्ताओं नेताओं की जिम्मेदारी प्रत्यक्ष रूप से इन दलो को लेनी होगी । अभी तक हर पार्टी मीठा मीठा गपगप व कड़वा कड़वा थू थू के सिद्धांत पर चल रही है । हर पार्टी ने अपने काम साधने के लिए असामाजिक तत्वो को खुलकर पनाह दी हुई है । यही कारण है “सैयया भये कोतवाल तो डर काहे का”, इसलिए खुलकर गुंडागर्दी हो रही है। वहीं प्रशासन असहाय की स्थिति मे मूकदर्शक बनकर अपनी भूमिका निभा रहा है । देश के किसी भी प्रदेश को देख लो। सबमें बहुत ज्यादा नही उन्नीस बीस का ही अंतर है । इसलिए कुछ लोग तो माननीय भी बन गये है । ये लोग अपने साथियो से जब जेल के अंदर मिलने जाते है तो कहीं भी किसी कोने मे शर्म हया नाम कोई चीज़ दिखाई नही देती । ऐसा महसूस होता है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से मिलकर आ रहे है । एक बाहुबली नेता को अभी लाॅ एंड आर्डर की स्थिति के चलते जब उत्तरप्रदेश से गुजरात शिफ्ट किया जा रहा था तो उसके उपर पुष्पो की वर्षा की जा रही थी । हालात तो ये हैं राजनैतिक दल भी समय आने पर उनके पक्ष मे खड़े होते है और उनके रक्षा मे उतर आते है तब इनके साफ सुथरा राजनीति की कहानी उजागर होने लगती है । कमोबेश यही स्थिति हर दलो की है । यही कारण है कि सबको दूसरे के दलो के असामाजिक तत्व दिखाई तो देते है पर अपने दिखाई नही देते । समस्या निवारण कैसे हो ये समझ से परे है। आज जिधर देखो अफरा-तफरी का ही माहौल है पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तरप्रदेश व बिहार मे खुलकर तलवार लहराये जा रहे है। कट्टे का खुलकर उपयोग हो रहा है। सिर्फ बंगाल मे ही चुनाव के दरमियान इतनी हत्याऐं हुई हैकि लोकतंत्र के लिए शर्म की बात है । पर जवाबदेही आज तक तय नही हुई है, न होगी। आज के समय में असामाजिक तत्वो के लिए राजनीति तो एक बेहतर व सम्मान जनक रोजगार है । इसके चलते प्रत्यक्ष रूप से प्रशासन मे भी पकड़ बनी रहती है । फिर किसकी हिम्मत की उसके कालर मे हाथ डाले ? फिर क्या कहने, वो अपनी समानांतर सरकार चलाता है,आगे चलकर उनके दरबार भी सजते है । संसद मे तो जब भाषण देते है तो चिंता तो व्यक्त होती है पर जमीनी रूप मे कोई काम नही होता। जब काश्मीर जैसे प्रदेश मे स्थानीय पापार्टियाँ ही पत्थरबाजो के रक्षा के लिए सामने आऐ तो हालात समझे जा सकते है । कुछ नही अगर सख्त कानून हो, चुनाव आयोग दबाव रहित हो तो परिणाम दिखने लगेंगे । ऐसे मे इन दलो की मान्यता ही खत्म हो जानी चाहिए। यही लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत होंगे ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)