Positive India:Kanak Tiwari:
असाधारण गांधी का लोकप्रिय बाजारभाव उनकी हत्या के बाद संसार ने तय किया। मौलिक अनोखे प्रयोगों की गठरी उठाए, चर्चित शिगूफे छेड़ते आजादी के आंदोलन की धुरी बने गांधी को हत्या ही नसीब में मिली। उनकी राजनीति का सड़क संस्करण, दलित, पीड़ित और उपेक्षित लोगों को ही नहीं अमीरों और अंगरेजों तक को भौंचक्का करता था। गांधी शुरू में सियासत के बड़े किरदार नहीं थे। उनमें असलियत थी लेकिन अदाकारी नहीं थी। इन्सान की मजबूरी और शिकस्त की गुत्थियों को सुलझाने के गांधी कीमियागर थे। उन्हें लेकर भविष्यवाणी और अंदाज़ लगाना दोनों कठिन होता था। विरोधाभासों, विसंगतियों और असंभावनाओं और सात्विक जिद को गांधी से ज्यादा किसी ने अवाम की आवाज़ नहीं बनाया। बाईस वर्ष के दक्षिण अफ्रीकी प्रवास के बाद गांधी 1915 में भारत लौटे। विदेशी गांधी के लिए भारत उतना परिचित नहीं था। छियालीस वर्ष होने तक उनका काफी जीवन देश के बाहर बीता था। ढीलेढाले, विनयशील, संकोची, दब्बू और एकाकी दीखते गांधी आत्मा में मनोविज्ञान की तरकीबें सहेज लाए थे। वे करोड़ों इन्सानों के जीवन की धड़कन बनने की अनजान तैयारी में थे।
1925 के आसपास हिन्दू महासभा, कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मुस्लिम लीग वगैरह ने जन्म लिया। 1885 में कांग्रेस जन्मी। 1931 क्रांतिवीरों भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत की वजह से इतिहास का सबसे घुमावदार मोड़ हो गया। उस शहादत ने गांधी के अहिंसा विचार याने अदमतशद्दद को उसकी अव्यावहारिकता के कारण तहस नहस कर दिया था। कांग्रेस का वामपंथी दीखता धड़ा जवाहरलाल और सुभाष बोस सहित क्रांतिकारियों के मामले में गांधी से अलग थलग था। 1942 के प्रसिद्ध ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ में अहिंसा के आह्वान को युवकों के जोश के कारण संदिग्ध और असफल भी होना पड़ा। भारत पाक विभाजन और हिंदुत्व के बढ़ते आक्रोश के मुहाने पर गांधी का कत्ल भी किया गया।
गांधी से असहमत पार्टियां जनमत को बरगलाकर आज सत्ता के केन्द्र में आने में सफल हो चुकी हैं। गांधी ने लचीले हिन्दू धर्म, इस्लाम और ईसाईयत जैसे विदेशी तथा हिन्दू धर्म से छिटके बौद्ध, जैन और सिक्ख मान्यताओं को शामिलशरीक कर दिया। गांधी में कबीर का सेक्युलर फक्कड़पन भी था। यह इतिहास की इबारत को सांप्रदायिक चश्मे से पढ़ने वाले समझ नहीं पाते हैं। हिंसा बनाम प्रतिहिंसा, जनविरोध बनाम पुलिसिया सुरक्षात्मक या जवाबी सरकारी कार्यवाही के गांधी खिलाफ थे। आज हिन्दुस्तानी अपनी फलसफाई अंदाज़ के कारण हिंसक खंूरेजी के मुकाबिल पुश्तैनी दब्बू लगते रहे हैं। सदियों की गुलामी भी बीच बीच में ढोई। गांधी ने पस्तहिम्मत कही जाती कौम को कत्ल करने के बदले कुर्बानी का जज्बा सिखाया। बदला लेने के बदले बदल देने का गुर जनता को सिखाया। गांधी ने अवाम के चरित्र में अपराजेय सात्विक जिद इंजेक्ट कर दी। यह तिलिस्म अंगरेज के लिए अबूझा था कि हुकूमत केवल रजामंद लोगों पर ही की जा सकती है। गांधी ने यह ताबीज प्राचीन भारतीय ग्रंथों के हवाले से देश के गले बांध दी।
कूटनीतिक महारत के गुर गांधी ने काठियावाड़ी बनियाई से लिए थे। वीतराग का भाव समवयस्क शिक्षक, जैन विचारक श्रीमद्राजचंद्र से सीखा। विचारों को एकीकृत कर गांधी ने धर्मनीति में कूटनीति और कूटनीति में धर्मनीति का प्रयोग कर अंगरेज हुक्काम को बार बार भौंचक कर धूल चटाई। अद्भुत पढ़ाकू गांधी की सहज अभिव्यक्ति पर आॅक्टोपस पकड़ थी। शब्दों का सम्मान करते सरल, छोटे, पारंपरिक घरेलू शब्दों को उन्होंने कालजयी बनाया। जनसंवाद प्रवचन से कहीं बेहतर है-यही गांधी ने सिखाया। महानता जैसे दंभी शब्द का कचूमर निकाला। बूढ़े और अशक्त गांधी में भी आत्मिक श्रेष्ठता का जोश लगातार पुरअसर रहा। कई मसलों और मुद्दों को लेकर वे इतिहास की सही लेकिन अल्पमत की जगह पर भी रहे। उन्होंने साधारण मनुष्य को असाधारण होने का अहसास दिया।
कांग्रेसी यह सब कितना जानते हैं? केवल मोदी सरकार की आलोचना करने भर से कांग्रेस की जनस्वीकृति का सेंसेक्स कैसे उछलेगा? बकरी, चरखा, गांव, नमक, नील, स्वदेशी, खादी, अंतिम व्यक्ति, सर्वधर्म समभाव, सत्याग्रह, स्वैच्छिक गरीबी, मद्यनिषेध, हरिजन, गंगा, गीता, सविनय अवज्ञा, भारत छोड़ो, हे! राम जैसी अभिव्यक्तियां मरी हुई छिपकलियां नहीं हैं। ऐतिहासिक आंदोलन के बीजाणु हैं। गांधी ने इंसानियत की प्रयोगशाला में इन्हीं शब्दों को हथियार बनाया था। सूट बूट की सरकार, काॅरपोरेट, गुजरात माॅडल, अल्पशिक्षित शिक्षा मंत्री, बुलेट ट्रेन, छद्म धर्मनिरपेक्षता, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप, जयश्रीराम, राष्ट्रवाद, पंद्रह लाख, हिन्दुत्व, घर वापसी, पाकिस्तान जाओ, लव जेहाद वगैरह के मुकाबले गांधी की अभिव्यक्तियों की उपरोक्त टीम के विश्व कप विजेता खिलाड़ियों को कौन तैयार करेगा? कांग्रेस के भ्रष्ट पदाधिकारी, उसके जातिवादी मंत्री या त्यागपत्रित नेता?
साभार:कनक तिवारी