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मोदी युग में कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई

2019 का चुनाव, बीजेपी को छोड़कर सभी दलो के लिए वाटर लू साबित क्यो हुआ?

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
2019 का चुनाव,बीजेपी को छोड़कर सभी दलो के लिए वाटर लू साबित हो गया है । अब तो इन्हे सत्ता के बदले, अस्तित्व की लड़ाई लड़ने का समय आ गया है । हाल तो यह है प्रधानमंत्री का स्वपन देखने वाले बमुश्किल दहाई के आंकड़े मे आये है । वहीं मुख्य विपक्षी दल की हालत यह है प्रतिपक्ष के नेता के लिए लोकसभा के पूर्ण सदस्यो का दस प्रतिशत होना चाहिए, जो कांग्रेस के पास नही है । इसलिए कांग्रेस को प्रतिपक्ष के नेता का पद नही मिलेगा ।
जो दल पूरे देश मे एक क्षत्र राज्य कर रहा था, आज प्रतिपक्ष के नेता के पद के लिए अयोग्य है । राजनीति मे इससे ज्यादा दुर्दशा क्या हो सकती है । पर अभी भी हार की समीक्षा अधूरी हो रही है । अंत मे राहुल गांधी ने कहा ही कि पुत्र मोह के चलते इस चुनाव मे नुकसान हुआ है । यहां तक तो बात ठीक ही है, पर यही वजह उन पर भी लागू होती है,पर कहने वाला ही कोई नही है। आज पूर्ण कांग्रेस के इस हाल का जिम्मेदार राहुल जी ही है । अगर जीत के सेहरा के नायक राहुल जी बने थे तो इसके जिम्मेदार भी वही बनेंगे । पूरे चुनाव मे मुद्दा विहीन राजनीति व अशोभनीय संबोधन ने रही सही लुटिया भी डूबा दी । वहीं, रागदरबारियो ने भी कम आतंक नही मचाया । जिस साध्वी को भगवा आतंकवाद का चेहरा बनाया था, जनता ने उसे ही खारिज कर दिया । बार बार सबूत मांगने से भी लोगो मे रोष था।
मोदी जी के लिए सम्मान जनक शब्दो के बदले मर्यादा विहीन शब्दो के बौछार ने लोगो को काफी जहां निराश किया, वही लोग इससे क्षुब्ध भी थे । बड़बोले प्रवक्ताओ ने भी पार्टी के लिए कम गढ़ा नही खोदा । तुष्टिकरण की राजनीति ने यह हाल कर दिये कि राहुल गांधी को अपनी परंपरा गत सीट तक को खोना पड़ा, जहां उन्हे गठबंधन का भी सहयोग मिला हुआ था। उसके बाद भी यह हाल ?
दुर्भाग्य से कांग्रेस पार्टी मुखर विहीन नेताओं वाली हो गई है । सिर्फ नेताओं के आगे पीछे वालो को ही तरजीह के कारण जमीनी कार्यकर्ताओं से यह दल पूर्णतः महरूम हो गया है । इसलिए चुनाव के समय इसकी बहुत कमी महसूस की गई । हर चुनाव मे समीक्षा होती है उस पर गौर नही किया जाता । ऐंथोनी ने भी 2014 के चुनाव के समय हार के जो कारण बताए थे उसके बाद भी चुनाव मे वही रवैया अपनाया गया । अल्पसंख्यक वोटो के लिए तो ऐसी तलवार खीची थी कि ये खंदक की लड़ाई से कम नहीं लग रही थी । इन वोटों पर जहाँ गिद्ध जैसी नजर थी वहीं इसी वोटों के चलते ही यह आपस मे लड़ बैठे। अब इनके कुछ नेता यह कहते है की हिंदू वोटो ने हराया। इन्हे पहले अपने गिरेबान मे झाँकना चाहिए कि तुम लोगो ने वोटो को क्यो धर्म मे बांट दिया? जैसी राजनीति की गई है वैसे ही फल मिला है ।
कांग्रेस को अपनी राजनीति की साख के लिए नये सिरे से लगना होगा और गंभीरता से राजनीति मे आचरण को लाना होगा। यह काफी नामुमकिन है क्योंकि अभी तक ये लोग फलदार वृक्ष मे ही बैठे हुए थे, जहाँ के पूरे फल खत्म हो गये है । पुनश्च से वृक्ष लगाने के लिए मेहनत करनी होगी ।

लेखक: डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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