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कांग्रेस और वामपंथियों का कंधा आप को सिर्फ़ अमानुष और वोट बैंक बनाता है

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
भारत में अगर हिंदू-मुस्लिम भाई चारा जो सचमुच होता , गंगा-जमुनी तहज़ीब का जो अस्तित्व होता तो अयोध्या में राम जन्म-भूमि , काशी में विश्वनाथ मंदिर , मथुरा में कृष्ण जन्म-भूमि जैसे विवाद चुटकी बजाते ही खत्म हो जाते। पर यह भाई-चारा , गंगा-जमुनी तहज़ीब जैसे शब्द हिप्पोक्रेसी के हिमालय हैं , एकतरफा हैं। इस लिए यह समस्याएं न सिर्फ विवाद के भंवर में पड़ती हैं बल्कि देश के अमन-चैन में ख़ासा खलल डालती हैं। अयोध्या में तो पुराना अब कुछ रहा नहीं पर जब था , तब मैं गया हूं कई बार । पूरा ढांचा मंदिर ही की तरह था। चारो तरफ मंदिर ही मंदिर। सीता रसोई , कनक भवन , हनुमान गढ़ी वगैरह। तमाम सारे साक्ष्य चीख-चीख कर बताते थे कि यह मस्जिद नहीं , मंदिर है। वजू करने के लिए वहां कोई कुआं भी नहीं था , जो अमूमन मस्जिद के बगल में हुआ करता था। पुरातत्व की खुदाई में भी तमाम तथ्य सिद्ध हुए , मंदिर के पक्ष में। बहरहाल वह विवाद सुप्रीम कोर्ट की रौशनी में अब समाप्त है।

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खैर , आप अब भी जब कभी मथुरा जाइए और कृष्ण जन्म-भूमि पर जाइए तो पाएंगे कि मंदिर और मस्जिद की दीवार एक है। पूरा मंदिर एक छोटा सा दड़बा है। जिस में एक बेड भी नहीं रख सकते। और बगल में विशाल मस्जिद। दिल्ली के जामा मस्जिद के मानिंद। तो क्या कंस की जेल इतनी छोटी थी ? जो भी हो , तथ्य चीख-चीख कर बताते हैं कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई गई है। जो भी हो अब यह मामला भी अदालत में है। सारे साक्ष्य मंदिर के पक्ष में हैं। फ़ैसला जब आएगा , तब फिर यह दिखेगा ही।

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आप जाइए न काशी में कभी विश्वनाथ मंदिर। वहां तो मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद के गुंबद भी मंदिर वाले दीखते हैं। भीतर भी सब कुछ मंदिर सरीखा ही है। पूरी मस्जिद चीख-चीख कर कहती है , मैं मंदिर हूं , मैं मंदिर हूं। लेकिन भाईचारा और गंगा-जमुनी तहज़ीब के अलंबरदार और इस की हिप्पोक्रेसी के सरताज लोगों को कुछ नहीं दीखता। दीखता है तो संघ , हिंदुत्व और भाजपा की साज़िश।

तो क्या कश्मीर में लाखों कश्मीरी पंडितों को बेघर करने , उन की स्त्रियों के साथ बलात्कार , हत्या , लूटपाट और तमाम मंदिरों को तोड़ कर नदियों में बहा देने में भी क्या यही हिंदुत्ववादी , भाजपाई और संघी थे ? लेकिन सवाल यहां यह भी ज़रूर मौजू है कि फ़्रांस में कौन सा संघ , हिंदुत्व और भाजपा है। जहां एक टीचर की हत्या उस का एक विद्यार्थी कर देता है। असहिष्णुता एक कार्टून पर बौखला जाती है। फ़्रांस ही क्यों , पूरे यूरोप , अमरीका , चीन , आदि-इत्यादि समेत इस्लामिक देशों में भी हर जगह यह सिलसिला जारी है। मतलब है कोई ज़रूर जो न सिर्फ भारत में बल्कि समूची दुनिया में भाई-चारा और गंगा-जमुनी तहज़ीब को निरंतर न सिर्फ तार-तार कर रहा है बल्कि दुनिया में अमन-चैन के लिए मुसलसल खतरा बना हुआ है।

अब से सही इस समाज को अपनी कट्टरता , जहालत और हिंसा से छुट्टी ले कर पूरी दुनिया की मुख्य धारा में शामिल हो जाना चाहिए। हिंसा और कट्टरता पूरी तरह दुनिया के लिए ठीक नहीं है। इस बात को जितनी जल्दी हो सके समझ लेना चाहिए और मनुष्यता में यकीन करना सीख लेना चाहिए। किसी न किसी बहाने पूरी दुनिया को हिंसा के अंगार पर झुलसाए रखना गुड बात नहीं है। मनुष्यता को गाय की तरह काटना और खाना बंद भी कीजिए। अपनी आस्था के साथ-साथ दूसरों की आस्था और मनुष्यता का सम्मान करना भी सीखिए। बहुत हो गया कबीलाई संस्कृति में जीना , मारना और काटना। तालिबानी होना मनुष्यता का दुश्मन होना है। सो अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा होना भी सीखिए और गलतियों को सुधारना भी। इस लिए भी कि आप की पहचान में अब हिंसा और कट्टरता ही शुमार है।

कांग्रेस और वामपंथियों के चढ़ाने पर हरगिज मत चढ़िए। क्यों कि उन का कंधा आप को सिर्फ़ अमानुष और वोट बैंक बनाता है। कुछ और नहीं। वोट बैंक और अमानुष होने से फुर्सत लीजिए। सच को सच की तरह स्वीकार करना सीखिए। इस लिए भी कि कट्टरता और हिंसा मनुष्यता के दुश्मन हैं। जितनी जल्दी संभव बने इस तथ्य को स्वीकार कर लें। दुनिया और भारत की मुख्य धारा में शामिल होइए। सिर्फ़ वोट बैंक नहीं हैं आप। हाड़ और मांस का लोथड़ा भर नहीं हैं आप। मनुष्य हैं आप। मनुष्य की तरह जीना सीखिए। जानवर की तरह नहीं। तुलसीदास लिख ही गए हैं :

बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा।।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाई न जेहिं परलोक सँवारा।।

गरज यह कि मनुष्य जीवन बहुत भाग्य से मिला है। यह देवताओं को भी दुर्लभ है, इस लिए वो भी मानव शरीर प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। यह मोक्ष का द्वार है क्यों कि हम साधना कर के मुक्ति तक की यात्रा मानव योनि में ही कर सकते हैं। अगर ऐसा दुर्लभ मानव जन्म पा कर भी जीव अपना परलोक नहीं सुधारता है तो उस का ये दिव्य जन्म व्यर्थ हो जाएगा।

साभार-दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

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