अभिनेता मनोज वाजपेयी को उनके जन्मदिन पर हार्दिक बधाई
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
मेरे प्रिय अभिनेता मनोज वाजपेयी का जन्म-दिन है । हार्दिक बधाई हो मनोज बाबू !
अभिनय की कविता और निर्देशन की पेंटिंग का कोलाज देखना हो तो अलीगढ़ देखिए। अविरल अभिनेता हैं मनोज वाजपेयी। अलीगढ़ उन के अभिनय की , उन के फिल्मोग्राफ़ी की सर्वोत्कृष्ट फ़िल्म है। मन जैसे भीग-भीग जाता है अलीगढ़ में उन का अभिनय देख कर । अलीगढ़ में उन के अभिनय की नदी इतने पड़ाव और इतने डाईमेंशंस लिए हुई है कि अंतत: वह एक नदी से जीवन की नदी में तब्दील होती जाती है । अलीगढ़ में प्रोफ़ेसर सिरस के अकेलेपन की नदी है यह । और इस में समाई औचक समलैंगिकता जैसे समाज से विद्रोह का एक पाठ है । ख़ामोश विद्रोह के पाठ की अविकल नदी है यह । अकेलेपन की आग में भीगी विद्रोह की नदी ।
एक वृद्ध प्रोफ़ेसर के अकेलेपन की यातना के पर्वत से फूटी यह नदी दिखने में बहुत शांत , बहुत मंथर और बहुत क्लांत दिखती है । लेकिन इस नदी के भीतर-भीतर शोर बहुत है । अकेलेपन का शोर , अपमान और उपेक्षा का शोर । यूनिवर्सिटी में चलने वाली प्राध्यापकीय राजनीति का शोर । दिल्ली से अलीगढ़ , अलीगढ़ से इलाहबाद , नागपुर तक का शोर । लेकिन यह भीतर-भीतर अपनी पूरी ताक़त से मुंह उठाने वाला शोर मनोज वाजपेयी के अभिनय में इतना आहिस्ता से दाखिल होता है , इतनी संजीदगी और इतनी शाइस्तगी से सिर उठाता है कि मन हिल जाता है । अकेलेपन की शांत नदी में जैसे बाढ़ आ जाती है । जिस पृथ्वी पर बहती है यह नदी उस पृथ्वी में भूकंप आ जाता है । जिस समुद्र से मिलने को आकुल है यह नदी उस समुद्र में सुनामी आ जाती है । अपने आप में रहने-जीने वाला यह आदमी प्रोफ़ेसर सिरस एक ख़बर बन जाता है । जलती हुई ख़बर । बहुत मंथर गति से बहती इस अकेली नदी के अकेलेपन में कई सारे शोर , कई सारे लोग गुज़रने लगते हैं । लेकिन इस बासठ साल के प्रोफ़ेसर श्रीनिवास रामचंद्र सिरस का अकेलापन और-और बढ़ जाता है ।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)