दीवाली के पटाखों के विरुद्ध चिन्ता का पाखण्ड दूषित और हिन्दू हिंदुत्व विरोधी षड़यंत्र मात्र है।
-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-
Positive India:Satish Chandra Mishra:
दीवाली के पटाखों के विरुद्ध चिन्ता का पाखण्ड दूषित है। दोगला है। द्वेषपूर्ण है। गिरगिटी है और हिन्दू हिंदुत्व विरोधी षड़यंत्र मात्र है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) की रिपोर्ट यह बताती है कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख लोगों की मौत होती है। अर्थात 3287 मौतें प्रतिदिन। इन मौतों में साल में एक दिन दीवाली पर कुछ घण्टों के लिए होनेवाली आतिशबाजी की कितनी बड़ी भूमिका है या हो सकती है इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
वर्ष के शेष 364 दिनों के दौरान वायु प्रदूषण के कारण देश में प्रतिदिन होनेवाली 3287 मौतों का जिम्मेदार कौन है.?
इसके लिए सुप्रीमकोर्ट ने अबतक कितने कितने प्रतिबन्ध किस किस पर कब कब लगाए.?
दीवाली की रात पटाखों के खिलाफ गला फाड़ फाड़कर चिल्लाने वाले नेता और बॉलीवुड के भांड़ शेष 364 दिन किस नशे में धुत्त रहते हैं.?
किसी NGO या अन्य निजी संगठन/संस्था की नहीं बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) की ही एक अन्य रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में प्रतिवर्ष 10 लाख लोग तम्बाकू के सेवन के कारण मौत के घाट उतर जाते हैं। अर्थात भारत में तम्बाकू रोजाना लगभग 2740 लोगों की जान ले लेती है। इसी तरह राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट यह बताती है कि देश में प्रतिवर्ष होनेवाली सड़क दुर्घटनाओं में 1 लाख 34 हज़ार लोगों की मृत्यु हो जाती है, जिसमें से 70% अर्थात लगभग 94 हज़ार लोगों की मौत शराब के नशे के कारण हुई दुर्घटनाओं से होती है। यानि शराब रोजाना लगभग 257 लोगों की मौत का कारण बनती है। शराब के कारण होने वाली बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या भी लगभग 2 लाख है। केवल लिवर सिरोसिस के कारण डेढ़ लाख लोगों की और शराब के कारण होने वाले कैंसर से 40 हजार लोगों की मौत हो जाती है।
अतः देश यह भी जानना चाहता है कि प्रतिवर्ष 10 लाख लोगों को कत्ल कर देनेवाली तम्बाकू और लगभग 3 लाख लोगों को कत्ल कर देनेवाली शराब पर भी प्रतिबंध लगाने की सुप्रीमकोर्ट ने कभी क्यों नहीं सोची.?
सिगरेट और शराब में ऐसी कौन सी जीवनदायी चिकित्सकीय खूबियां है कि उन पर प्रतिबंध नहीं लग सकता.?
क्या तम्बाकू शराब से मरने वालों की जान की कोई कीमत नहीं है.?
क्या दीवाली के अलावा साल के शेष 364 दिनों में वायु प्रदूषण के कारण प्रतिदिन मरनेवाले 3287 लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है.?
इसीलिए मेरा मानना है कि मानव रक्षा की आड़ में पर्यावरणीय प्रदूषण के बहाने दीवाली के पटाखों के विरुद्ध चिन्ता का पाखण्ड दूषित है। दोगला है। द्वेषपूर्ण है। गिरगिटी है और हिन्दू हिंदुत्व विरोधी षड़यंत्र मात्र है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)