कामरेड , रुस के उक्रेन युद्ध पर भी लब क्यों नहीं खोल रहे ?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
कामरेड , रुस के उक्रेन युद्ध पर भी लब खोल दो न ! कहां गुम है वह दिल्ली यूनिवर्सिटी वाली लड़की , जिसे युद्ध पसंद नहीं था। तुम्हारे कंधे पर बैठ कर ऐसा ज्ञान दे रही थी। कि सारी संवेदना का विस्फोट आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर ही मुमकिन होता है। किसी सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक पर ही मुमकिन होता है। अपनी हिप्पोक्रेसी की हिप पर लात मार कर ही सही , लब खोल दो ! बोल दो कि लब आज़ाद हैं ! फ़ैज़ को गा दो न :
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुत्वाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक तेरी है
देख कि आहन-गर की दुकाँ में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
खुलने लगे क़ुफ़्लों के दहाने
फैला हर इक ज़ंजीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक़्त बहुत है
जिस्म ओ ज़बाँ की मौत से पहले
बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहना है कह ले
खोल दो लब कि फ़ैज़ की आत्मा को शांति मिलेगी। आख़िर किस की गुलामी में लब सिल गए हैं , रुस-यूक्रेन युद्ध पर।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)