विलुप्त होने की कगार पर आम नागरिक
Analyasis of common man and the power of social media.
Positive India:Raipur;29 April 20:
भारत के सविधान मे आम नागरिको को 6 मौलिक अधिकार प्राप्त है। और इनमे से मुझे 19 (1) (क) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेहद पसंद है । हो भी क्यूँ न, ये हमारे विचारों और बातों को सरकार के समक्ष हो या लोगो के समक्ष रखने का अवसर प्रदान करता है । हाल ही मे एक आई.ए.एस. अधिकारी ने भी इस्तीफ़ा दिया और बाद मे अपनी सफाई मे जम्मू-कश्मीर के लोगो की इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीनने की बात रखी।
मुझे लगता है कि आजादी के बाद यदि हमने इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग किया है तो वह है सोशल मीडिया के मंच पर ।
जी हां, सोशल मीडिया ने लोगों को प्लेटफॉर्म दिया जहां लोग अपनी बात,अपनी सोच,अपने विचार रखते हैं । पर हाल ही कुछ दिनों में इस स्वतंत्रता का नाजायज फायदा भी उठाया जा रहा है, जो किसी आम नागरिक के आम नागरिक होने का प्रमाण छींनते जा रही है ।
आज सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर या किसी सार्वजनिक जगह पर, यदि आम नागरिक अपने विचार ,बात या अपने दृष्टिकोण रखकर किसी पार्टी,धर्म, जाति की तारीफ या बुराई कर दे, तो उसके विपरीत पक्ष वाले उसे उस का चाटुकार कहेंगे या उसके सपोर्ट मे आने लग जाते है। और आम नागरिक जो कि अब विलुप्त होते जा रहे हैं वह भी पूरी बात को जाने-समझे बिना उस पक्ष-विपक्ष का एजेंट मानने लग जाएंगे और ना पढ़ और बोल पाने वाली बात सुना देते है।
आज के दौर में आम नागरिकों को अपनी बात रखने से डर लगने लगा है कि कही उसने कुछ बोला तो उस पर किसी पार्टी, धर्म , जाति के समर्थन करने का ठप्पा ना लग जाए। और इसी कारण समाज मे ना जाने कितनी बुरी और भयानक मानसिक परंपराओं ने अपने पैर जमा लिये है ।
इस प्रकोप से सरकारी अमला,व्यापारी वर्ग,पत्रकार साथी,न्यायालय,न्यायपालिका,फिल्म उद्योग भी अछूता नहीं रहा है। उन्हें भी अब दो नजरियों से देखा जा रहा है; एक देशद्रोही और दूसरे देश भक्त । कुछ लोग देश के नागरिक ना होकर भी देशभक्त कहला रहे हैं, और कुछ लोग जो इस देश की पैदाइश होकर भी इस देश की नागरिकता साबित करने में पसीना बहा रहे हैं ।
पहले लोग राजनीति,धर्म,जाति को इतना महत्व नहीं देते थे । पर आज के आधुनिक और दिखावे भरे युग में लोग चाहे परिवार मे,दोस्त,रिश्तेदार हो हर जगह पर राजनीति की बातें,धर्म,जाति जैसे बेहद महत्व विहीन बातो पर चर्चा करने लगे है, जिसकी वजह से आपस में अब लड़ाई-झगड़ा, मनमुटाव बढ़ने लगे हैं और उसी परिवार के लोग भी दो हिस्सों में बट जाते हैं, एक पक्ष और दूसरा विपक्ष!
आज लोग इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस कदर नाजायज फायदा उठाने लग गए हैं कि प्रधानमंत्री ,मुख्यमंत्री और ना जाने कितने संवैधानिक पद को यूं ही अपने पोस्ट में या अपने किसी चर्चा वाले स्थान पर यूं ही अपशब्द , अपमानजनक बात या भला-बुरा आसानी से कह देते है । हलाकि कुछ पर कार्यवाही होती है, पर यह ठीक नही है ।
आज हमारा समाज किस ओर जा रहा है। हमें अपने समाज को दो गुटों में या किसी पक्ष-विपक्ष मे बटने से रोकना होगा ।
यह वह भारत नहीं जिसका सपना हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, क्रांतिकारियों ने देखा था । उनका सपना इसे विश्वगुरु बनाना था, ना की आपस पार्टी , धर्म ,जाति के नाम में लड़ने वाले।
शायद यही वजह रही है कि संविधान बनाने वालों ने हमें मतलब आम नागरिकों को सबसे बड़ी ताकत कहा है , हमें ही सर्वोच्च कहा है, *जनता ही जनार्दन है* कहा है ।
आपको आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, पर अपनी मर्यादा का ख्याल रखें और अपने रिश्तो का भी । और सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमें आम नागरिकों को विलुप्त होने से बचाना है क्योंकि वो कहते हैं ना
*डोंट अंडरएस्टीमेट ऑफ द पॉवर ऑफ कॉमन मैन*
लेखक: गजेंद्र साहू उर्फ विक्की-रायपुर ।