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मुर्गियों को बचाने के लिए अनंत अम्बानी का ख़ूब मखौल उड़ाया जा रहा है

-सुशोभित की कलम से-

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Positive India: Sushobhit:
अनंत अम्बानी का ख़ूब मखौल उड़ाया जा रहा है कि उन्होंने एक ट्रक भरकर चिकन बचाने की कोशिश की। यक़ीनन, एक ऐसी दुनिया में जहाँ हर मिनट 1 लाख 40 हज़ार चिकन का क़त्ल किया जाता है (फिर से पढ़ें, हर मिनट 1 लाख 40 हज़ार चिकन का क़त्ल!), वहाँ इस तरह की कोई भी कोशिश नासमझी ही कहलाएगी।

किन्तु कम से कम उसने कोशिश तो की? कम से कम उस धनकुबेर के पुत्र के मन में यह तो आया कि इन पक्षियों को बचा लूँ? अब आप इसे नौटंकी कहें, गिमिक कहें, तमाशा कहें- किन्तु बचाने का हर जेस्चर मेरे लिए मारने की कोशिशों के बरअक़्स ज़्यादा मूल्यवान है।

यक़ीनन, इसके बाद भी वो चिकन मरने से नहीं बचेंगे, क्योंकि वो स्वाभाविक पक्षी नहीं हैं। उनकी ब्रीडिंग ही मांस के लिए की जाती है और उनका जीवनकाल छोटा होता है। वो अन्य पक्षियों की तरह स्वतंत्र कर दिए जाने पर अपना जीवन नहीं चला सकते। किंतु कम से कम अनंत के मन में यह भावना तो आई कि इनके लिए कुछ करूँ? यह भावना क्या बेमोल है?

जिस दुनिया में करोड़ों-अरबों लोग इन पक्षियों को देखकर सोचते हैं कि इन्हें मार डालूँ, इन्हें नोच दूँ, इन्हें खा जाऊँ, तब कोई यह सोचे कि इन्हें बचा लूँ तो यह चलन से विपरीत बात ज़रूर होगी। लेकिन क्या यह मूढ़ता भी कहलाएगी?

बड़े-बड़े बुद्धिमानों ने भाँति-भाँति के आक्षेप लगाए। एक ने कहा, जियोमार्ट में भी मांस बेचा जाता है। बेचा जाता होगा, किंतु अनंत अम्बानी उसका चेयरमैन नहीं है। वह उसके पिता की कम्पनी है, उसकी नहीं है। अगर उस कम्पनी के रोज़मर्रा के ऑपरेशंस में उसका दख़ल होता तो मुझे उम्मीद है वह अवश्य मांस जैसी घृणित वस्तु को नहीं बेचने का निर्णय लेता।

किसी और ने कहा, वनतारा में जंगली जानवरों को क्या ढोकले खिलाए जाते हैं? यक़ीनन, वहाँ जंगली जानवरों को मांस ही खिलाया जाता होगा। लेकिन वे जंगली जानवर हैं। वे सोच नहीं सकते, निर्णय नहीं ले सकते। मनुष्य सोच सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं। मनुष्य और जंगली जानवरों में सबसे बड़ा अंतर ही यही है कि मनुष्यों ने प्रकृति के नियमों को तोड़कर सभ्यता के नियम बनाए हैं। प्रकृति में यह प्रणाली नहीं थी कि कोई वस्त्र पहने, पक्की ईंटों के घर बनाकर उनमें रहे, भोजन पकाकर खाए, क़ानून बनाए, संस्कृति रचे, पुस्तक लिखे, नैतिकता के सिद्धांतों को गढ़े। मनुष्य-सभ्यता की समूची यात्रा ही स्वयं को जंगली जानवरों से अलगाने की रही है। किंतु मांसभक्षण के नाम पर मनुष्य इन्हीं जंगली जानवरों से अपनी तुलना करके स्वयं को बचा लेना चाहते हैं?

यूट्यूबर ध्रुव राठी ने कहा, “मैं स्वयं शाकाहारी हूँ, लेकिन इन मुर्गियों को बचाने की कोई तुक नहीं है। उनके मांस की डिमांड तो इससे ख़त्म नहीं हो जाएगी?” प्रश्न यह है कि मुर्गियों के मांस की डिमांड कम हो, इसके लिए उन शाकाहारी यूट्यूबर महाशय ने कोई प्रयास किया? नहीं किया तो क्यों नहीं किया? अगर कोई व्यक्ति कहता है कि मैं अपराधी नहीं हूँ, किंतु कोई और अपराध करे तो मुझे आपत्ति नहीं तो यह भी एक अपराध है! जैसे अपराध करने की अनुमति किसी को नहीं, उसी तरह पशुओं-पक्षियों के साथ क्रूरता करने की अनुमति भी किसी को नहीं होनी चाहिए।

चूँ​कि अनंत अम्बानी के पिता का सम्पर्क एक राजनैतिक दल के नेता से प्रचारित है, इसलिए लिबरल समुदाय उनका मखौल उड़ाता है। यह तो कोई विवेक वाली बात न हुई। स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने अपने चर्चित शो में अनंत के डील-डौल का मखौल उड़ाया। बॉडी-शेमिंग! यह कबसे लिबरल समुदाय का काम हो गया, यह तो दक्षिणपंथी लोग करते हैं ना? कामरा ने अपने शो में महिलाओं को अपमानित करने वाली गालियाँ भी बकीं। किंतु आज का माहौल ऐसा है कि सारे पाप धुल जाते हैं, बशर्ते आप अपनी राजनीति स्पष्ट कर दें कि आप किस तरफ़ हैं।

अनंत अम्बानी ने ​कुछ मुर्गियों की जान बचाने की कोशिश की, मैं इस बात को मूल्य देता हूँ। मैसेज का महत्त्व है। समाज को क्या संदेश दिया गया, इस बात का महत्व है। क्या आपको पता है, चिकन दुनिया की सबसे एब्यूज़्ड जाति है? एक दिन में दो करोड़ चिकन की हत्या की जाती है! स्थिति यह है कि ‘चिकन’ शब्द सुनकर आपके दिमाग़ में भोजन का विचार आता है, किसी जीवन का नहीं! जबकि यह बहुत बुद्धिमान और संवेदनशील पक्षी है। चिकन चेहरों को याद रख सकते हैं। वे सपने देखते हैं। वे ट्रिक्स सीख सकते हैं। वे बहुत क्यूरियस होते हैं। उनकी अपनी पसंद-नापसंद होती है। और वे बहुत सोशल होते हैं। उनकी बुद्धिमत्ता का स्तर एक मनुष्य के शिशु जितना होता है! इन मासूम बच्चों को हर रोज़ निर्ममता और उदासीनता से कुचल देना क्या बुद्धिमानी है? और कोई उन्हें बचाने की सोचे तो वह मूर्ख है?

एक कहानी मुझे याद आती है। एक राज्य में युद्ध छिड़ा हुआ था। मोर्चों पर सैनिक तैनात थे। एक बार एक गाँव से कुछ सैनिक अपने साथ एक मसखरे को भी ले आए कि मन-बहलाव होगा। मसखरे से कह दिया कि एक बहुत मज़ेदार खेल चल रहा है, चल तुझको दिखाते हैं। वह ख़ुशी-ख़ुशी आया। जब सैनिक बंदूक़ें लेकर अपनी खंदकों में लेटे और गोलीबारी शुरू ही होने को थी कि अचानक मसखरा खंदक से निकला और ज़ोरों से चिल्लाते हुआ दौड़ने लगा कि- “बंदूक़ मत चलाना, सामने भी कुछ इंसान हैं, उन्हें गोली लग जाएगी!”

दोनों पक्षों के बु​द्धिमानों ने ठहाका लगाया और उस मसखरे का मखौल उड़ाया।

किन्तु सच में ही मूर्ख कौन था? वो- जो हत्याएँ कर रहे थे? या वो- जिसने जान बचाने की निरर्थक ही सही, कोशिश तो की?

Courtesy:Sushobhit-(The views expressed solely belong to the writer only)

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