Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आयुष्मान भारत की रिपोर्ट के मुताबिक गर्भाशय निकालने मे छत्तीसगढ पुनः प्रथम । मात्र 7 महीनों में 3658 महिला मरीजों के गर्भाशय निकाल दिए गए । छत्तीसगढ़ इस मामले मे प्रथम इसलिये है क्योकि पूरे देश में गर्भाशय निकालने का यह 21.2%; 18.9% उत्तर प्रदेश में, झारखंड में 12.3%,गुजरात में 10.8%, महारास्ट्र में 9% तथा कर्णाटक में 6.6%कुल ओप्रेशन का 94.5% प्राइवेट अस्पतालों में हुआ है। मात्र 0.5% सरकारी अस्पतालों में । इसी तथ्य से ये अन्दाजा लगाया जा सकता है कि निजी अस्पताल किस हद तक महिला के सेहत से खिलवाड़ कर रहे है। इस विषय पर कैसे प्रतिक्रिया दी जाये यह समझ मे भी नही आ रहा है । यह स्थिति छत्तीसगढ़ की ही नही कमोबेश सब जगह की है । पिछले कुछ समय पहले ऐसी ही खबरे महाराष्ट्र के नंदूरवार से आई थी । क्यो ऐसा होता है समझ से परे है । इसके पहले भी इसकी अनुगूंज छग मे काफी जोरो से हुई थी । सशक्त लाॅबी सशक्त राजनीतिक पहुंच हर मामले को कमजोर बना देता है । इसके दुष्प्रभाव क्या होंगे इससे किसी को मतलब नही है । कमजोर प्रशासनिक माहौल का कोई क्यो नही फायदा उठायेगा ? कुछ हुआ तो दूसरे रास्ते निकलने के मौजूद है । वही दुर्भाग्य से कौरव के सभा मे हर समय द्रौपदी का चीरहरण हो रहा है और पूरी सभा खामोश है। सब मूकदर्शक बनकर अपनी भूमिका निभा रहे है ।
छत्तीसगढ़ आईएमए के अध्यक्ष डॉक्टर राकेश गुप्ता का कहना है कि इन सभी का जिम्मेदार स्टेट नोडल एजेन्सी है। इसके गाईडलाईन को सरकार ने क्यो हटाया? गाईडलाईन का पालन क्यो नही किया गया?
मानवता, नैतिकता आज के समय तैल लेने गई हुई है । वहीं इसके लिए वो पीड़िता भी कम जिम्मेदार नही है । जैसे मैंने देखा है,इनके बीच गया हूँ तो ऐसा महसूस होता है कि इस तरह के अनावश्यक शल्य चिकित्सा को ये स्वंय ही आमंत्रित करते है । जैसे मैंने देखा है जिसकी भी सर्जरी होती है वो बंदा ता जिंदगी के लिए कमजोर हो जाता है । उसे घर मे वी आई पी ट्रीटमेंट मिलती है । फिर महिला हो तो क्या कहने। इस तथाकथित कमजोरी से घर के काम से छुट्टी, फिर यहा से इसके दुष्परिणाम चालू हो जाते है । यह हिचगापारी(जलन) के कारण दूसरी महिला ऐसे हालात पैदा कर देती है और ऐसा माहौल बना देती है कि ये लोग भी इसी शारीरिक बिमारी से पीड़ित है । फिर इसमे सोने मे सुहागा कि इन बिमारियों पर जेब से कुछ नही जा रहा है तो फिर निजात पाने मे सोचना भी नही पड़ता । वही ये महिलाये जाने अन्जाने में इसके दुष्प्रभाव को बाद में भुगतती है। खैर यह अलग विषय है, इस पर कभी और।
ऐसे चालू होती है तथाकथित गर्भाशय की समस्या। अगर किसी चिकित्सक ने मना किया तो दूसरे चिकित्सक का रूख करेंगे । जब तक ये गर्भाशय निकाल न ले तब तक ये चिकित्सक दम नही लेंगी । कुल मिलाकर उसको निकलना ही है । बाद में आराम तलब की जिंदगी, जो बाद मे दुष्परिणाम के रूप मे सौगात मे मिलती है ।
ऐसे हालात से निपटने के लिए पहले तो इनमे सामाजिक जागरूकता पैदा करने की नितांत आवश्यकता है । दूसरा निर्णय शासन को लेना है । इस शल्य चिकित्सा को शासकीय सुविधाओ से मुक्त कर दिया जाना चाहिए । जिससे जब स्वंय का पैसा लगेगा तो दस बार बंदा सोचेगा । वही जिसमे इस सर्जरीकी नितांत आवश्यकता है, तो पैनल बनाकर स्मार्ट कार्ड की अनुमति मिलनी चाहिए। यह पूरा खेल नैतिकता पर ही आधारित है । यह आलेख किसी के खिलाफ नही है । एक जागरूक नागरिक और एक चिकित्सक की राय मात्र है ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)