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छत्तीसगढ़ के लोक गीत-नृत्यों में धर्म-दर्शन और अध्यात्म निहित.

राज्यपाल एमआईटी यूनिवर्सिटी पुणे द्वारा ऑनलाइन आयोजित विज्ञान, धर्म और दर्शन की छठवें अंतर्राष्ट्रीय संसद में हुई शामिल

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पॉजिटिव इंडिया:रायपुर;03 अक्टूबर 2020

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छत्तीसगढ़ की संस्कृति भी अत्यंत समृद्ध है, जो यहां के पारम्परिक लोकगीत एवं लोकनृत्य में दिखाई देती है। यहां की समस्त सांस्कृतिक गतिविधियों में धर्म, दर्शन और अध्यात्म का मणिकांचन योग झलकता है। यहां के लोकनृत्य एवं जनजातीय नृत्य पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। अगर आप गौर करेंगे तो लोक गायन और लोक नृत्यों में धर्म, दर्शन और अध्यात्म को निहित पाएंगे, जिसका उद्देश्य समाज में शांति स्थापित करना है। जब मैंने छत्तीसगढ़ राज्यपाल का पद संभाला और उसके बाद लोगों से मिली और कार्यक्रमों में गई तो, आप विश्वास नहीं करोगे कि यहां के गीत और संगीत में इतनी मधुरता है, एक भावना है, जिसे आप सुनते हैं तो आपके दिल को छू लेती है। इस तरह गीतों के भाव और गाने की शैली, सहजता और सरलता मैंने प्रदेश के लोगों में पाया है। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जयंती के अवसर पर एमआईटी यूनिवर्सिटी पुणे द्वारा ऑनलाइन आयोजित विज्ञान, धर्म और दर्शन की छठवें अंतर्राष्ट्रीय संसद को संबोधित करते हुए कही।
राज्यपाल ने कहा कि अध्यात्म और विज्ञान दोनों सृजन के मूलमंत्र से जुड़े हैं। दोनों बाहरी जगत और अंतरात्मा को जोड़ने का काम करते हैं। अध्यात्म हमें मन से जोड़ता है और विज्ञान ये बताता है कि बाहरी जगत का हमारे मन और शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है। अध्यात्म और विज्ञान दोनों ही सत्य की खोज करते हैं, हमें प्रकृति से जोड़ते हैं, मानवता से जोड़ते हैं और दोनों का उद्देश्य हमारे जीवन को बेहतर बनाना है। अध्यात्म और विज्ञान दोनों समाज के कल्याण के लिए काम करते हैं, शरीर को स्वस्थ रखने के लिए यदि वैज्ञानिक खोजों की जरूरत होती है, तो मन को स्वस्थ और सुंदर बनाने के लिए अध्यात्म के नियमों का पालन जरूरी होता है। अध्यात्म और विज्ञान मिलकर स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करते हैं। अध्यात्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक तभी हो सकते हैं, जब अध्यात्म को अंधविश्वास से न जोड़ा जाए और विज्ञान का प्रयोग विनाश के लिए न हो। अध्यात्म और विज्ञान द्वारा जनहित में की गई हर खोज उन्हें एक-दूसरे के करीब ले आती है।
उन्होंने कहा कि अध्यात्म हमें वैज्ञानिक तरीके से सोचने की प्रेरणा देता है और विज्ञान हमें अध्यात्म के रहस्य बताता है। अध्यात्म वैदिक धर्मग्रंथों में विश्वास करता है और विज्ञान का आधार है सही तर्क और नई खोज। दोनों ही अपनी बात ठोस आधार पर करते हैं। विज्ञान बाहरी जगत की सच्चाई की खोज का माध्यम है और अध्यात्म अंतर्मन को जानने-समझने का जरिया। दोनों ही मार्ग हमें ज्ञान की राह पर ले जाते हैं और हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं। हां, दोनों के रास्ते जरूर अलग हैं। विज्ञान भौतिक रास्ते से जाता है और अध्यात्म अभौतिक के रास्ते से।
राज्यपाल उइके ने कहा कि संत विनोबा भावे का कहना था कि धर्म और राजनीति का युग बीत गया, अब उनका स्थान अध्यात्म और विज्ञान ग्रहण करेंगे। विनोबा जी के आध्यात्मिक चिंतन में सबसे महत्वपूर्ण बात अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की कल्पना है। विनोबाजी ने वैज्ञानिक युग में विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय पर बल दिया। उन्होंने कहा ‘‘आगे की दुनिया में विज्ञान और आत्मज्ञान ही रहेगा सियासत और मजहब खत्म होंगे। क्योंकि राजनीति आदमी को जोड़ने की बजाय तोड़ने का कार्य करती है’’। स्वामी विवेकानंद जी भी अध्यात्म और विज्ञान को एक-दूसरे का विरोधी नहीं मानते थे। उनका विचार था कि पाश्चात्य विज्ञान का भारतीय वेदांत के साथ समन्वय करके, विश्व में सुख-समृद्धि एवं शांति स्थापित की जा सकती है। विज्ञान ने मानव जीवन को अनेक कष्टों से मुक्त किया है तथा जीवन की अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में योगदान दिया है। परन्तु वेदांत के अभाव में यही विज्ञान विनाशकारी भी बन सकता है।
उन्होंने कहा कि आज हम देखते हैं कि विश्व में विभिन्न देशों के मध्य कहीं कहीं अशांति का वातावरण है और आतंकवाद का भी साया है। यदि हम विश्व में शांति स्थापित करना चाहते हैं तो अध्यात्म के रास्ते पर चलना होगा और अध्यात्म का रास्ता भारत देश से ही निकलेगा। आज सत्य, प्रेम, अहिंसा, भाईचारे और पारस्परिक सहयोग के मार्ग पर चलने की जरूरत है। वस्तुतः शांति हाथों या पांवों में नहीं बसती अपितु मन में बसती है। किसी व्यक्ति के हाथ पांव बांध देने पर भी वह मन से बुराई सोच सकता है, इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि विश्व के मन से अशांति का विचार हटाकर उसमें शांति एवं श्रद्धा उत्पन्न की जाए।
राज्यपाल ने कहा कि मुझे बताया गया है कि आम संस्था द्वारा विश्व राजबाग, लोनी कालभोर, पुणे में दुनिया के सबसे बड़े गुंबद, दार्शनिक संत ज्ञानेश्वर विश्व शांति पुस्तकालय एवं विश्व शांति प्रार्थना हाल की स्थापना की गई है, वह सराहनीय है।

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