Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
छत्तीसगढ शासन ने इस वर्ष से हरेली मे राजकीय अवकाश घोषित कर दिया है । हरेली का सीधा संबंध सावन के हरियाली से ही है । वैसे शहरो में ये दिन आम दिनो जैसे ही रहता है । पर आज भी कम से कम गांव मे यह संस्कृति और त्योहार मे उत्साह बहुत रहता है । हालात यह हो जाते है सड़क मे तो शाम को कोई नही दिखता । वहीं गांव से बाहर भी कोई नही निकलता । इसके पीछे यह उद्देश्य रहा होगा कि कम से कम एक दिन तो हर कोई गांव मे उपलब्ध रहे जिससे भाई चारा सदृढ हो सके ।
पर कहते है अच्छे उद्देश्य मे पलीता लगाया जाता है, वो इसके साथ हुआ । कुछ लोगो ने सबकी उपलब्धता के कारण इसे अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी निकलाने का ही मौके मे तब्दील कर दिया । इसलिए कुछ समय से कुछ छुटपुट घटनाये सुनने को मिलती है । जो दुर्भाग्यजनक है और त्योहार को खराब भी कर देता है । वही कुछ लोग इसे अंध श्रद्धा से भी जोड़ देते है । किसी समय ये भ्रांतिया रही होगी, अब टीवी मोबाइल ने पूरी दुनिया ही बदल दी है । लोगो मे जागरूकता आ गई है । अब शिक्षा ने समाज मे बहुत परिवर्तन ला दिया है । जहां शिक्षित होने से नौकरी के कारण या व्यवसाय के कारण लोग गांव से बाहर निकलने लगे है वहीं आधुनिकता अब उनमे आ गई है, इसलिए गांव का माहौल बहुत बदल गया है । आवागमन की सुविधा और स्वंय के वाहन होने से सोच मे भी बहुत परिवर्तन आया है । इस सबके चलते सामाजिक विकास देखने को मिल रहा है । जो अच्छे संकेत है । कुछ धर्म अपने को श्रेष्ठ दिखाने के लिए वही अपने गुप्त ऐजेंडा मे काम करने के लिए इस तरह के विकास और बदलाव उनके गले के नीचे नही उतर रहा है । इसलिए लिए यह तबका ज्यादा परेशानी मे है । कहीं भी दुर्भाग्य से अति पिछड़े इलाके मे दिख जाये तो ये प्रगतिशील तबका वहाँ पहुंच जाता है और अपने ऐजेंडा पर काम करता है और उनके पुराने मान्यता पर चोट करने लगता है । इस दुनिया मे काम करने वाले तथाकथित संगठन भी इनके पीछे हो लेते है । दुर्भाग्य से ये बुद्धिजीवी इनके हाथ का मोहरा बन जाते है । बस अपनी सामाजिक गतिविधिया दिखाने के लिए ये दिन और पिछड़ापन के प्रचार से ये प्रदेश व देश को पिछड़ा दिखाने मे क्यो कर रहे है इसका उत्तर इन्ही के पास है । पर यह भी किसी से छुपा नही है यह अंधविश्वास बहुसंख्यक समुदाय के साथ अल्पसंख्यक समुदाय मे भी है । पर इसके बारे मे बोलने का कोई नैतिक साहस नही करता ।
सामाजिक मान्यता को अंधविश्वास से जोड़ना भूल है और धर्म के साथ छलावा भी है । सात दशक में सामाजिक परिवर्तन और अपने अधिकार के लिए हर बंदा सजग है । अब भूत,प्रेत,टोनी,डायन यह सब गुजरे दिन की बात हो गई । अब हम नये भारत मे रह रहे है इसलिए इनसे कभी हमारी या पूर्वजो की सामाजिक भूल कह सकते है । पर अब वो चेतना आ गई है ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)