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चंद्रयान-3 ने चंद्रमा पर फहराया तिरंगा

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
लगभग पचहत्तर लाख लोग एक साथ देख रहे थे केवल इसरो के यूट्यूब चैनल पर। इतनी बड़ी भीड़ का एक साझे लक्ष्य पर दृष्टि गड़ाना अपने आप में अद्भुत है। मुझे पता है, अंतिम के दस मिनट तक सबकी धड़कने मेरी ही तरह बहुत बढ़ गयी होंगी। और फिर इसरो के उस हॉल में बैठे उन देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों की भीड़ जब उछल कर तालियां बजाती हैं, तो लगता है जैसे जग जीत लिया हो।
मैं उछल पड़ा हूँ। मोबाइल फेंक कर चिल्ला उठा हूँ, “हर हर महादेव!” प्रचंड उल्लास के क्षणों में केवल ईश्वर याद आते हैं। रौंगटे खड़े हो गए हैं, गला भर आया है, आंखें बहने लगीं हैं। मैं जानता हूँ, यही दशा सबकी हुई होगी। पूरे देश की… ऐसी उपलब्धियां, ऐसे क्षण एक झटके में पूरे देश को एक सूत्र में बांध देते हैं।
मेरे बच्चे आश्चर्य से मेरा मुँह देख रहे हैं। वे छोटे हैं, इस उपलब्धि का मूल्य नहीं जानते। सावन के महीने में धरती की राखी लेकर भाई के पास पहुँचे उस संवदिया का चंद्रमा पर उतरना उन्हें याद रहे न रहे, अपने पिता का उछल पड़ना सदैव याद रहेगा। बड़े होने पर समझेंगे वे इस क्षण का मूल्य, कि कैसे हजार वर्षों के संघर्ष से मुक्त होने के सत्तर वर्ष बाद ही इस पुण्यभूमि ने अपने गौरवशाली अतीत की चमक दुबारा बिखेरनी शुरू कर दी थी।
चंद्रयान की ओर टकटकी लगा कर देखते लोगों में अधिकांश को विज्ञान की अधिक समझ नहीं है, पर इस उपलब्धि ने सबकी छाती चौड़ी कर दी है। चंद्रयान के चनरमा तक पहुँचने से मिलने वाली जानकारियों का हिसाब किताब वैज्ञानिक देखें, हम तो केवल यह सोच कर उछल पड़े हैं कि देश सफल हुआ है। हम आपस में भाषा, क्षेत्र, रूप या जाति को लेकर भले हजार बार सहमत-असमत होते रहे हों, बात जब राष्ट्र की आती है तो हम एक होते हैं। यही हमारा मूल चरित्र है।
संसार की इस सबसे प्राचीन सभ्यता के ध्वज का चंद्रमा के उस अनजान भाग तक पहुँचना केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि इस ऐतिहासिक सत्य का नवीनतम प्रमाण है कि इस ब्रम्हाण्ड को सबसे पहले हमने पहचाना था। ग्रहों से सबसे पुराना नाता हमारा है, सितारों का चरित्र सबसे पहले हम समझे थे। वो तो घर में बार बार घुस आते डकैतों से उलझने में देर हो गयी, वरना अपनो से नाता हमसे अधिक कोई क्या ही निभाएगा।
पिछली असफलता के बाद यह सफलता प्रमाण है कि असफलताएं एक सामान्य घटना भर होती हैं। सभ्यता का रथ असफलता के ठोकरों पर नहीं रुकता, वह दौड़ता रहता है। असफलता सफलता को थोड़ी दूर भले कर दें, पर उसके बाद मिलने वाले उल्लास को उतना ही बढ़ा भी देती हैं।
इसरो ने एक बार फिर देश को गौरवान्वित किया है। उसके सारे वैज्ञानिकों को बधाई। और बधाई इस पुण्यभूमि के हर व्यक्ति को, कि जिनके बच्चों ने आज लपक कर चांद को छू लिया है।

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साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार है)
गोपालगंज, बिहार।

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