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क्या भारत आज ताजमहल के गर्भगृह से सत्य को छान सकता है ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
तनिक कल्पना कीजिए। मुल्क में लोकतंत्र नहीं है। कानून-व्यवस्था जैसी कोई चीज नहीं है। तानाशाही हुकूमत है। आपके घर-मंदिर में कोई डेड बॉडी लेकर पहुंच जाता है। आपको मालूम है आप विरोध नहीं कर पाएंगे। संविधान-कानून से आप पहले ही निराश हो चुके हैं। गर्भ गृह में उस डेड बॉडी को लेकर दफनाया जाने लगता है। आप को कितनी तकलीफ होगी, कितना दर्द होगा!

ठीक यही तो हुआ तेजो महालय के साथ। पीएन ओक के अनुसार 12वीं सदी में ताजमहल बना। इस महल में 400 साल बाद एक डेड बॉडी लाकर दफना दिया गया और मंदिर को सदा के लिए मजार घोषित कर दिया गया। कुतुबमीनार मतलब विष्णु स्तंभ हो या ज्ञानवापी अथवा ईदगाह मस्जिद, हर जगह किसी न किसी प्रकार से अतिक्रमण हुआ। उसके बाद जब देश में बाबा साहेब का संविधान आया तब संसद के रहनुमाओं ने 1991 में पूजा स्थल कानून पास कर दिया कि जो जैसा है अब वैसा ही रहेगा।

एक वक्त को ऐसा लगा कि अब सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। अब कुछ नहीं हो सकता। मंदिर, सड़क, सुरक्षा, शिक्षा सब कुछ बेनाम हो गया। देश की संस्कृति उजड़ गई। लेकिन सत्य की एक खासियत तो है ही, जितना देर से बाहर आता है उतना ही दुरुस्त आता है। जो भारत आज ताजमहल के गर्भगृह से सत्य को छान सकता है, उस भारत को अब बदलने से शायद कोई ताकत रोक नहीं सकती।

साभारः विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)1

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