पर पृथ्वी पर दुबारा जन्म नहीं लेना चाहती : लता मंगेशकर
-दयानंद पांडेय द्वारा मई,1995 में लता जी से लिया गया इंटरव्यू-
Positive India:Dayanand Pandey:
किसी के दिल को लुभाना हो, दुलराना हो या फ़िर दिल की या किसी भी तकलीफ़ की तफ़सील मे जाना हो लता मंगेशकर कि आवाज हर मोड़ पर मुफ़ीद जान पड़ती है। राज्य सभा में नामित होने तथा भारत रत्न से सम्मानित लता मंगेशकर ने गायकी से अभी भी संन्यास नहीं लिया है। गायकी का अनंत आकाश रचने वाली लता मंगेशकर से मिलना और बतियाना सचमुच एक अनुभव से गुजरना है। उम्र के इस पड़ाव पर भी लता मंगेशकर की आवाज़ में खिलखिलाहट अनायास ही समाई रहती है। बहुतेरे सवालों का जवाब वह या तो ‘भगवान की कृपा है’ कह कर देती हैं या मुसकुरा कर सवाल ही पी जाती हैं। पर खिलखिलाहट उन की अवाज़ से फिर भी नहीं जाती। कुछ बरस पहले जब उनसे दिल्ली में मिला था तो बहुत कुरेदने पर उन्होंने अपनी दिली तमन्ना बताई थी कि, ‘दिलीप कुमार के लिए गाना (प्ले बैक) चाहती हूं।’ और जब दिलीप कुमार से लता मंगेशकर कि यह ख्वाहिश बताई तो वह छूटते ही बोले,’ओह लता!’ ’भारत रत्न’ तो उन्हें इधर मिला है। इसके पहले लखनऊ मे उन्हें ’अवध रत्न’ से सम्मानित किया गया था। तभी एक इक्सक्लूसिव इंटरव्यू मे दयानंद पांडेय ने लता मंगेशकर को दिलीप कुमार के लिए गाने वाली बात याद दिलाई तो वह बोलीं, ‘मैं ने यह तो कहा था कि दिलीप कुमार के लिए गाना चाहती हूं। पर यह संभव कहां है?’
●क्यों फ़िल्मों में सिचुएशन क्रिएट की जा सकती है। कई नायकों ने फ़िल्मों मे ’महिला’ बन कर गाने गाए हैं।
-’मुझे पता नहीं।’ लता मंगेशकर बोलीं ’पर दिलीप कुमार जी ऐसी भूमिका करेंगे। मैं नहीं समझती।’ उन्हों ने जोड़ा, ‘मैं नहीं समझती कि मेरी ये तमन्ना पूरी होने वाली है।’
●माना जाता है कि अपने गायन के जरिए आप ने हिंदी को जो सम्मान और प्रचार दिलाया है, वह अविरल है। आप क्या सोचती हैं इस बारे में?
– मैं ने अपनी भाषा में भी गाया है। और भी बहुत सी भाषाओं में गाया है। पर हिंदी को सम्मान और प्रचार मैं ने दिलाया है, यह बात मेरी ज़्यादा तारीफ़ करने के लिए आप कह रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ मैं ने किया है।
●यह तो आप का बड़प्पन है।
– नहीं, मैं सच कह रही हूं।
●अच्छा, जो आप गायिका न होतीं तो क्या होतीं ?
– मालूम नहीं। वह बड़ी मासूमियत से खिलखिला कर सवाल टालती है।
●फ़िर भी?
– कहा न मालूम नहीं।
●वह तो ठीक है। फिर भी क्या होतीं, ऐसी कोई कल्पना ही कर लीजिए?
– ‘ हो सकता है बड़ी डाक्टर होती।’ वह अपनी खोल से थोड़ा बाहर निकलीं, ‘हो सकता है कोई बड़ी रिसर्च करती।’
●उम्र के इस मोड़ पर गायकी का शिखर छू लेने के बाद क्या करने का मन होता है?
-इस बारे में तो कुछ सोचा ही नहीं।
● ऐसा तो हो नहीं सकता?
– ‘आप ने पूछा क्या करने का मन होता है यह तो बता सकती हूं।’ वह जोड़ती हैं, ’गाने का ही मन होता है। पर जो आप ने पूछा कि गायकी का शिखर छूने के बाद वाली बात! तो यह बात मेरी समझ में आती नहीं। मुझे नहीं लगता कि मैं ने कोई शिखर छू लिया हो।’
● फिर आखिर ऐसा क्यों है कि हम और हमारे जैसे लोग आप की गायकी के भक्त हो जाते हैं, आप के प्रति भक्ति भाव मन मे रच-बस जाता है? कुछ लोग तो आप को लगभग पूजने सा लग जाते हैं?
– इतनी बड़ी महान नहीं हूं कि लोग मुझे पूजें।
●पर सच्चाई तो यही है।
– ‘नहीं, मैं ने कहा न, मैं इतनी बड़ी महान नहीं हूं।’ वह खिलखिलाती हैं,’आप बात को बढ़ा कर कह रहे हैं।’ वह जोड़ती हैं,’फ़िर भी ऐसा है तो भगवान की मुझ पर कृपा है। जरूर यह मेरे पिछले जन्म के कर्मों का फल है। क्यों कि इस जन्म में तो मैं ने ऐसा कुछ किया नहीं कि लोग मुझे पूजें। मेरे प्रति भक्ति भाव रखें।’ वह फ़िर दोहराती हैं, ‘यह पिछले जन्म के कर्मों का सुफ़ल है।’
●तो क्या आप पुनर्जन्म में विश्वास करतीं हैं?
– हां, मैं हिंदू हूं। विश्वास करती हूं पुनर्जन्म में।
●तो क्या अगले जन्म में गायिका बनना चाहेंगी? या कुछ और?
– मैं अगला जन्म लेना ही नहीं चाहती हूं।
●क्यों?
– बस नहीं।
●अभी आप ने कहा आप पुनर्जन्म में विश्वास करतीं हैं। और भगवान आप को पुनर्जन्म दें तो?
– मैं इस पृथ्वी पर फ़िर जन्म नहीं लेना चाहती। बस।
●तो क्या देवलोक में जन्म लेना चाहेंगी?
– यह मैं नहीं जानती,पर पृथ्वी पर दुबारा जन्म नहीं लेना चाहती। बस!
●आप ने अपनी ज़िंदगी में इतना संघर्ष किया है, महिलाओं की बुरी स्थिति पर बराबर चिंता भी जताती रहती हैं। ख़ास कर बालिकाओं की दर्दनाक ज़िंदगी पर। अपनी फ़िल्म ‘लेकिन’ का कैसेट भी आप ने बालिकाओं को समर्पित किया है। बाबा आम्टे के कुष्ठ निवारण अभियान में भी आप ने बड़ी मदद की है। आप को क्या लगता है इस से कुछ सुधार या बदलाव आया है बालिकाओं या कुष्ठ रोगियों की ज़िंदगी में?
– मैं कुछ ठीक-ठीक नहीं कह सकती। पर जैसे -जैसे मौका मिलता है मैं यह सब करती रहती हूं। प्रोग्राम के ज़रिए। कितना किया है याद भी नहीं।
●इन दिनों जो फ़िल्मी गानों की हालत है उस पर आप कुछ टिप्पणी करना चाहेंगी?
– मौजूदा हालत जो फ़िल्मी गीतों की है, वह आहिस्ता-आहिस्ता बदल जाएगी। यह माहौल बहुत दिन तक रहने वाला नहीं है। बदलेगी हालत और ज़रूर बदलेगी।
●मतलब आप खुश नहीं हैं आज कल के गानों से?
– बिल्कुल नहीं।
●तो दोषी किसे पाती हैं?
– दोषी किसे बताएं ? प्रोड्यूसर कहते हैं कि पब्लिक चाहती है। और वेस्टर्न सभ्यता इतनी घुस गई है हमारे जीवन में, कि क्या कहें? हमारे बच्चे जो हैं उन्हें भी वेस्टर्न सभ्यता पसंद है।
●इन दिनों तो तमिल फ़िल्मी गीतों के रीमेक का चलन चल गया है, इस पर कुछ टिप्पणी करेंगी आप?
– रहमान का म्युज़िक काफ़ी अच्छा है। ताजगी है उन के संगीत में। पर तमिल धुनों की कॉपी हिंदी में ठीक नहीं है। चाहे किसी भाषा की धुन हो उस की पूरी की पूरी कॉपी करना ठीक नहीं है पर आज कल यही सब हो रहा है। बड़े वल्गर वे में।
●आप अपने को इस त्रासदी में कहां खड़ी पाती हैं?
– कोई चीज़ दुनिया में कायम नहीं रहती। अच्छी चीज़ें भी दुनिया से चली जाती हैं और बुरी चीज़ें भी दुनिया से चली जाती हैं। इस लिए मैं कह रही हूं कि मौजूदा हालत बहुत दिन तक रहने वाली नहीं है।
●आप के इस कहने के पीछे आधार क्या है? तर्क क्या है?
– एक पिक्चर आई है ’हम आप के हैं कौन?’ उस ने, उस के गानों ने काफ़ी माहौल बदला है उस में एक भी गाना वल्गर नहीं है। और आप कुछ दिन बाद पाएंगे कि वल्गर गाने चले जाएंगे। क्यों कि कोई चीज़ दुनिया में हरदम कायम नहीं रहती।
● ’का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया’ गीत याद है आप को? राज कपूर की फ़िल्म संगम के लिए आप ने गाया था?
– हां याद है!
●उस गीत को किस खाने में डालेंगी आप?
– हां उस गाने को गाने के लिए मैं आज भी शर्मिंदा हूं। और सोचती हूं कि कैसे गा दिया वह गाना। शायद राज जी को मना न कर पाने का संकोच था। कह नहीं सकती। हांलाकि वह गाना खूब चला। पर मेरे सबसे खराब गानों में पहला गाना है और जो मेरा वश चले तो मैं कह दूं कि वह गाना मैंने नहीं गाया। पर अफ़सोस कि मेरे नाम पर वह चस्पा हो गया है।
●अपने सब से ख़्रराब गाने का ज़िक्र तो आप ने कर दिया। अपने सबसे अच्छे गाने के बारे में भी बताएंगी ?
– हां, ‘आएगा, आएगा। आएगा आने वाला।’
●यह तो आप के बिलकुल शुरुआती दौर का गाना है।
– हां! सोचिए, ’महल’ फ़िल्म का यह गाना जब रेडियो पर बजता था उन दिनों तब रिकार्ड पर हमारा नाम नहीं होता था। बिना हमारे नाम के ही वह गाना बजता था। बाद में श्रोताओं ने चिट्ठी लिख-लिख कर रेडियो वालों से गाने वाली का नाम पूछा। हमें याद है तब रेडियो पर खास तौर पर यह बताया गया था कि इस गाने की गायिका का नाम लता मंगेशकर है।
●आरोप है कि आप ने अपने समय की कई गायिकाओं और संगीतकारों के कॅरियर में रोड़ा डाला और उन्हें खा गईं?
– सब झूठ है। यह आरोप लगाने वालों की बुद्धि पर तरस आता है।
●पर एक नहीं, कई नाम हैं।
– यह सब बेसिर पैर की बातें हैं। आप बताइए कि किसी के रोकने से कोई रुकता है? लोंग अपनी कमजोरी छुपाने के लिए व्यर्थ के बहाने ढूंढ लेते हैं।
●पर आरोप है कि आप ने अपनी बरगदी छांव में किसी को पनपने ही नहीं दिया। कई प्रतिभाओं को खा गईं आप? क्यों कि तब आप का सिक्का चलता था और चूंकि आप की गायकी का डंका बजता था, इस लिए कोई चूं तक नहीं करता था ।
– अब क्या कहूं मैं। पर अगर ऐसा था तो जब मैं गाने आई थी, आज मैं क्या हूं, मुझ से बहुत बड़ी- बड़ी गायिकाएं तब मौजूद थीं, जिन को मैं आज भी छू नहीं पाई हूं। उन के आगे मुझे कैसे मौका मिल गया? उन्होनें मुझे क्यों नहीं खा लिया? वह तो मेरे कॅरियर में रोड़ा नहीं बनीं? मैं नहीं मानती। अब कहने को आप या कोई कुछ भी कहे।
●अभी कुछ समय पहले एक नेता नाना जी देशमुख के कहा कि अगर उन्होनें ने शादी की होती तो उन की ज़िंदगी ज़्यादा सुखी होती और कि समाज में वह और ज़्यादा अच्छे काम करते, और ज़्यादा कामयाब होते। आप क्या सोचती हैं कि अगर आप ने भी शादी की होती तो आप के साथ भी वैसा ही होता?
– ऐसा तो मैं नहीं कह सकती।
●फ़िर भी?
– मुझे मालूम ही नहीं कि वह ज़िंदगी कैसी होती है। मैं उस ज़िंदगी से, शादीशुदा ज़िंदगी से परिचित नहीं हूं।
●पर यह तो बता सकती हैं कि आप ने शादी क्यों नहीं की?
– जो लिखा होता है,वही होता है। मैं ऐसा ही मानती हूं। मैं मानती हूं कि शादी और बहुत सारी बातें इंसान के हाथ में नहीं होतीं। और फिर इस बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहती। कुछ और पूछिए!
●जब आप को दादा साहब फालके पुरस्कार दिया गया था तो आप ने दो ही बात कही थीं। कि एक तो मैं बहुत खुश हूं। दूसरे, भगवान कि कृपा है। अब आप को अवध रत्न सम्मान दिया गया है। आप क्या कहेंगी?
– वही जो तब कहा था।
●क्या?
– भगवान की कृपा है।
●लखनऊ आप को कैसा लगा?
– मैं अभी तक लखनऊ देख ही नहीं पाई।
●क्यों?
– समय ही नहीं मिला। लोगों से मिलने और डिनर वगैरह में ही सारा समय निकल गया।
●पर सम्मान के दिन तो स्टेज पर आप कह रही थीं कि लखनऊ आने और उसे देखने का बड़ा मन था आप का।
– लखनऊ न सही, लखनऊ के लोगों को तो देखा।
●कैसे?
– स्टेज से ही। जिस उमंग, उत्साह और मन से आप लोगों ने मुझे सम्मान दिया, लखनऊ और यहां के लोगों को जानने के लिए यह काफ़ी नहीं है?
●पर ऐसा सम्मान तो आप को पूरी दुनिया में हर जगह मिलता ही है।
– हां पर लखनऊ जैसा नहीं। लखनऊ की बात ही कुछ और है।
●मुलायम सिंह यादव से आप मिलीं । कैसे व्यक्ति लगे आप को?
– बहुत भले इंसान हैं। पहली बार मिली हूं।
●मुलायम सिंह यादव अकसर हिंदी की बात करते रहते हैं?
– अच्छा! मैं नहीं जानती।
●आप से हिंदी की बात नहीं चलाई?
– नहीं,बात तो उन्होनें हिंदी में ही की। पर जैसा आप पूछ रहे हैं ’हिंदी की बात’ वैसी कोई बात उन्होनें ने मुझ से नहीं की।
●मोती लाल बोरा के बारे में क्या कहेंगी?
– वह भी बहुत अच्छे इंसान हैं। उन से भी पहली बार मिली हूं।
●कोई बुरा इंसान भी मिला आप को?
– नहीं, हमें तो कोई बुरा नहीं मिला। सभी अच्छे मिले।
●दुनिया का सब से अच्छा इंसान कौन है?
– अब मैं क्या कहूं। सभी सब से अच्छे हैं।
●आप का, सब से अच्छा संगीत निर्देशक आप की राय में?
– तुरंत कैसे कहूं। मुश्किल है।
●अच्छा, पसंदीदा संगीत निर्देशक कौन है आप का?
– तुरंत किसी का भी नाम लेना मुश्किल है।
●आप का, पसंदीदा फ़िल्म निर्देशक?
– जो अभी हैं, ढूंढ़ना पड़ेगा।
●पुरानों में?
– विमल दा, गुरुदत्त, राज कपूर। नए में यश चोपड़ा, सूरज बड़जात्या।
साभार:दयानंद पांडेय द्वारा मई,1995 में लता जी से लिया गया इंटरव्यू।