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इतनी खामोशी क्यों है भाई ?

-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
28 सितंबर 2015 को उत्तरप्रदेश के दादरी गांव में अपने पड़ोसी का बछड़ा चुरा कर उसे काट के खा गए बछड़ाचोर गौहत्यारे अख़लाक़ की गांव वालों द्वारा की गयी भयंकर पिटाई के कारण मौत हो गयी थी। उस बछड़ा चोर की हत्या के बाद दिल्ली की लुटियन मीडिया का मेला दादरी में लग गया था। दादरी से 24 घंटे, रात दिन नॉन स्टॉप लाइव रिपोर्टिंग का हुड़दंग इस हद को पार कर गया था कि गांव की महिलाओं के लिए रात में भी शौच के लिए जाना असंभव हो गया था। इसका परिणाम यह हुआ था कि दादरी गांव की महिलाओं ने तीसरे दिन अपने हाथों में मोटे मोटे लट्ठ उठा लिए थे। “लट्ठ बजाओ, लट्ठ बजाओ” के नारे के साथ उन महिलाओं के हाथों के वो लट्ठ दिल्ली के उस मीडियाई झुंड की पीठ और नितंबों पर बरसने लगे थे जो एक बछड़ा चोर गौहत्यारे की मौत पर अपने मातम का सर्कस 2 दिनों से दादरी से लाइव दिखा रहे थे। दादरी की लट्ठधारी महिलाओं ने उन मीडियाई झुंड को गांव से 2 किमी दूर तक खदेड़ दिया था। बछड़ाचोर गौहत्यारे की मौत का मातम का सर्कस दिखा रहे मीडियाई झुंड के खिलाफ दादरी गांव समेत अगल बगल के गांव के लोग भी लामबंद हो गए थे। मीडियाई झुंड को पीने के पानी के लाले पड़ गए थे। परिणामस्वरूप लुटियन दिल्ली का मीडियाई झुंड दादरी से सिर पर पैर रखकर भागा था। लेकिन लुटियन मीडिया का वही झुंड पिछले 3 दिनों से मुर्दों की तरह खामोशी का कफ़न क्यों ओढ़े हुए है.?
तीन दिन पहले शनिवार को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हत्या हुए 72 घंटे बीत चुके हैं। इसके बाद कपूरथला के गुरुद्वारे में हुई एक और हत्या को 48 घंटे बीत चुके हैं। दोनों हत्याकांड दर्जनों सीसीटीवी कैमरों और सैकड़ों की भीड़ के सामने की गई है। लेकिन पंजाब की कांग्रेसी सरकार और उसकी पुलिस देश को अभीतक यह भी नहीं बता रही है कि दोनों हत्याकांडों में मरने वाले 2 आदमी कौन थे.? उन दोनों को मारने वाले हत्यारे कौन हैं.? पंजाब की कांग्रेसी सरकार और उसकी पुलिस इस सच को पूरे देश से क्यों छुपा रही है.? किसे बचाने के लिए छुपा रही है.?
तीन दशक पहले तक खालिस्तानी आतंकवाद की आग में झुलसते रहे देश तथा इस वर्ष लालकिले की प्राचीर पर खालिस्तानी गुंडों के तांडव की पृष्ठभूमि में उपरोक्त सवाल बहुत गम्भीर हैं। देश की सुरक्षा से जुड़े हुए हैं। लेकिन लुटियन मीडिया खामोश है। वो लुटियन मीडिया खामोश है जो अख़लाक़, तबरेज, पहलू की मौत पर आगबबूला हो जाती है। किसी शराबी द्वारा एक चर्च की खिड़की पर फेंके गए पत्थर पर पूरे देश में कट्टरता साप्रदायिकता फैल जाने के झूठ का ढोल बजाती है।
अपवाद के रूप में केवल अंग्रेजी वाले रिपब्लिक और टाइम्स नाऊ चैनल ने अमृतसर और कपूरथला में हुए हत्याकांडों पर तीखे सवाल जरूर पूछे हैं।

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साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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